भारत में धार्मिक आज़ादी, सहिष्णुता और एक दूसरे धर्मों के प्रति लोगों के रवैये के रोचक तथ्य सामने आए हैं। लोगों के रवैये में ग़ज़ब का विरोधाभास है। सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, सभी धर्मों के अधिकांश भारतीय महसूस करते हैं कि उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता है, वे धार्मिक सहिष्णुता को महत्व देते हैं, और सभी धर्मों के सम्मान को भारत का केंद्रीय तत्व मानते हैं। ऐसी भावना होने के बावजूद वे कुछ चीजें स्वीकार नहीं करते हैं। सभी प्रमुख धार्मिक समूहों में अधिकतर लोग अलग-अलग धर्म के लोगों के बीच मेलजोल, दोस्तों का सर्कल, अंतरधार्मिक शादी और दूसरे धर्म के पड़ोसी को स्वीकार नहीं करते हैं।
प्यू के सर्वे के परिणाम भारत के मौजूदा हालात के बीच काफ़ी रोचक हैं। ऐसा इसलिए कि हाल के वर्षों में ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि देश में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ी है। लेकिन काफ़ी विश्वसनीय और ख्यात अमेरिका के वाशिंगटन डीसी स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था प्यू रिसर्च सेंटर का सर्वे रोचक तथ्य पेश करता है।
शोध का परिणाम क्या है, इससे पहले यह जान लें कि यह सर्वे का आधार क्या है। प्यू सर्वे की रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई। प्यू रिसर्च का यह शोध 30 हजार लोगों से बातचीत पर आधारित है। इसके लिए 2019 के आखिरी और 2020 के शुरुआती महीनों में लोगों से बातचीत की गई थी। यानी यह कोरोना महामारी से कुछ पहले की बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें 17 भाषाओं के लोग शामिल किए गए थे।
प्यू सर्वे में कहा गया है कि ज़्यादातर लोगों ने कहा कि वे अपने अपने धर्मों के पालन को लेकर स्वतंत्र हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि 91% हिंदुओं ने महसूस किया कि उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता है, जबकि उनमें से 85% का मानना था कि सभी धर्मों का सम्मान करना 'सच्चे भारतीय होने के लिए' बहुत अहम था। अधिकांश हिंदुओं के लिए, धार्मिक सहिष्णुता न केवल एक नागरिक का गुण है, बल्कि एक धार्मिक मूल्य भी है। 80% ने कहा कि अन्य धर्मों का सम्मान करना 'हिंदू होने' का एक अभिन्न पहलू है। दूसरे धर्मों के लोगों ने भी क़रीब-क़रीब ऐसे ही विचार व्यक्त किए। 89 फ़ीसदी मुसलमानों और ईसाइयों ने कहा कि वे अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र महसूस करते हैं, 82 फ़ीसदी सिख, 93 फ़ीसदी बौद्धों और 85 फ़ीसदी जैनियों ने ऐसी ही बात कही।
धार्मिक सहिष्णुता के सवाल पर, 78% मुसलमानों ने महसूस किया कि यह भारतीय होने का एक अनिवार्य पहलू है, जबकि 79% ने इसे मुसलमानों के रूप में अपनी धार्मिक पहचान का एक हिस्सा माना। अन्य धार्मिक संप्रदायों के लोगों ने धार्मिक सहिष्णुता पर ऐसे ही विचार रखे।
सर्वेक्षण ने कई साझा मान्यताओं को भी उजागर किया जो सभी धर्मों में हैं। 77% हिंदुओं ने कहा कि वे कर्म में विश्वास करते हैं, क़रीब-क़रीब समान प्रतिशत में मुसलमानों ने भी ऐसा कहा। 32% ईसाई और 81% हिंदुओं ने गंगा की पवित्रता की शक्ति में विश्वास किया है।
सभी प्रमुख धर्मों में ज़्यादातर लोगों ने कहा कि बड़ों का सम्मान करना उनके धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उत्तर भारत में 12 फ़ीसदी हिंदू, 10 फ़ीसदी सिख और 37 फ़ीसदी मुस्लिम सूफीज्म में विश्वास करते हैं।
सभी धर्मों में इस तरह के साझा विचार रखने के बावजूद उन धर्मों में कई ऐसी चीजें हैं जो उन्हें अलग करती हैं। प्यू के सर्वे में यह बात सामने आई कि बड़े धर्मों के ज़्यादातर लोग कहते हैं कि उनका धर्म दूसरे से अलग है, एक धर्म के लोगों के दोस्तों के सर्कल में दूसरे धर्म के लोग नहीं हैं, अंतरधार्मिक शादी को समर्थन नहीं करते हैं और किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति को पड़ोसी के तौर पर नापसंद करते हैं।
सर्वे किए गए लोगों में से 13 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि उनके दोस्तों के सर्कल में अलग-अलग धर्म के लोग हैं।
47 फ़ीसदी हिंदुओं ने कहा कि उनके क़रीबी दोस्तों में सभी उनके धर्म के मानने वाले लोग ही हैं। मुसलिम धर्म सहित दूसरे धर्म के लोगों ने भी कुछ ऐसे ही विचार रखे।
पंजाब के लुधियाना के माछीवाड़ा में हिंदू जोड़ों का कन्यादान मुसलिम दंपत्ति ने किया। फ़ाइल फ़ोटो
क़रीब 36 प्रतिशत यानी एक तिहाई हिंदू कहते हैं कि उन्हें मुस्लिम पड़ोसी स्वीकार नहीं हैं। जैन धर्म के लोगों में यह संख्या 54 प्रतिशत है जो मुसलमान पड़ोसी नहीं चाहते। मुसलमानों में हिंदू पड़ोसी को लेकर आपत्ति कम थी। सिर्फ़ 16 प्रतिशत मुसलमानों ने कहा कि उन्हें हिंदू पड़ोसी स्वीकार नहीं होगा। हिंदू पड़ोसी के तौर पर 92 प्रतिशत जैनियों को कोई दिक्कत नहीं थी।
हालाँकि दो तिहाई जैन और लगभग 50 प्रतिशत सिख कहते हैं कि हिंदू धर्म के साथ उनकी बहुत समानताएँ हैं। 66 फ़ीसदी हिंदू कहते हैं कि उनका धर्म इस्लाम से एकदम अलग है। 64 प्रतिशत मुसलमान भी ऐसा ही मानते हैं।
प्यू के सर्वे में कहा गया है कि ज़्यादातर धर्मों के लोग एक दूसरे के धर्म में शादियों के ख़िलाफ़ हैं। 67 प्रतिशत आबादी कहती है कि औरतों को दूसरे धर्मों में शादी से रोका जाना चाहिए। 67 प्रतिशत हिंदू, 80 प्रतिशत मुसलमान और 66 प्रतिशत जैन अपने-अपने धर्म की औरतों को दूसरे धर्मों में शादी करने से रोकने के पक्षधर हैं। 59 फ़ीसदी सिख, 46 फ़ीसदी जैन और 37 ईसाई भी ऐसा ही मानते हैं।
सर्वे के अनुसार 65 प्रतिशत आबादी कहती है कि पुरुषों को दूसरे धर्म में शादी करने से रोका जाना चाहिए। इनमें सबसे ज़्यादा मुस्लिम हैं। 76 फ़ीसदी मुसलिम और 65 प्रतिशत हिंदू पुरुषों के दूसरे धर्म में शादी के ख़िलाफ़ हैं।
दिलचस्प बात यह है कि सर्वेक्षण में पाया गया कि 2019 के चुनावों में जिन हिंदुओं ने बीजेपी को वोट दिये थे, वे अपने पड़ोस में धार्मिक अल्पसंख्यकों को कम स्वीकार करते थे। बीजेपी को वोट देने वाले हिंदुओं में से केवल आधे ने कहा कि वे एक मुस्लिम (51%) या एक ईसाई (53%) को पड़ोसी के रूप में स्वीकार करेंगे, जबकि अन्य पार्टियों को वोट देने वालों की संख्या अधिक क्रमशः 64 फ़ीसदी और 67 फ़ीसदी है।