पहलू ख़ान को सरेआम पीट-पीट कर मार दिया गया। लिन्चिंग का वीडियो बना। पहलू ने मौत से पहले पीटने वालों के नाम बताए। पहलू के दो बेटे प्रत्यक्षदर्शी थे। लेकिन जिन 6 लोगों को अभियुक्त बनाया भी गया वे सभी घटना के दो साल बाद बरी हो गए। है न ताज्जुब की बीत फ़ैसला सुनाते समय कोर्ट को भी ताज्जुब हुआ।
राजस्थान की अदालत ने जिस फ़ैसले में पहलू ख़ान के सभी छह अभियुक्तों को बरी किया है उसमें कोर्ट ने यह आश्चर्य व्यक्त किया है कि जिन वीडियो और तसवीरों के आधार पर अभियुक्तों की पहचान की गई थी उनको रिकॉर्ड पर ही नहीं लिया गया। कोर्ट ने पुलिस की जाँच में गंभीर खामियाँ पाईं। इसने इस पर सख्त टिप्पणी भी की, लेकिन आख़िरकार मौजूद सबूतों के आधार पर फ़ैसला हुआ। एक ऐसे मामले में फ़ैसला जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।
गो तस्करी के शक में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डाले गए हरियाणा के नूँह के निवासी पहलू ख़ान मामले में अलवर की ज़िला अदालत ने बुधवार को ही फ़ैसला सुनाया। 1 अप्रैल, 2017 को 55 वर्षीय पहलू ख़ान जयपुर से पशु ख़रीदकर ला रहे थे तब बहरोड़ में कथित गो रक्षकों ने उन्हें गो तस्करी के शक में बुरी तरह पीटा था जिसके दो दिन बाद अस्पताल में उनकी मौत हो गई थी। पहलू ख़ान की हत्या के बाद पूरे देश में बवाल हुआ था और राजस्थान की तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार की देशभर में काफ़ी आलोचना हुई थी। अब आरोपियों के बरी होने पर भी वैसे ही कई सवाल खड़े हो रहे हैं। कोर्ट ने भी अपने फ़ैसले में ही इन पर कई सवाल खड़े किए हैं।
‘वीडियो, तसवीरें रिकॉर्ड में नहीं लिए गए’
अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीश सरिता स्वामी ने फ़ैसले में लिखा कि चूँकि खान, उनके बेटों और उनके साथियों द्वारा पुलिस को दिए गए शुरुआती बयानों में छह अभियुक्तों के नाम नहीं थे, इसलिए अभियुक्तों के ख़िलाफ़ मोबाइल फ़ोन पर शूट किए गए वीडियो से तैयार तसवीरों के आधार पर आरोप लगाए गए थे। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, अदालत ने अपने फ़ैसले में लिखा है, ‘इस तरह इस मामले में, अभियोजन पक्ष के अनुसार, अभियुक्तों की पहचान मोबाइल पर शूट किए गए घटना के दो वीडियो के आधार पर की गई। लेकिन हैरानी की बात है कि रमेश सिनसिनवार (जाँच अधिकारी) द्वारा ज़िक्र किए गए वीडियो और इससे तैयार की गई तसवीरों को रिकॉर्ड में नहीं लिया गया था और न ही उस मोबाइल को ज़ब्त किया गया था जिसमें वीडियो को बनाया गया।’
'वीडियो की जाँच ही नहीं कराई गई'
सिनसिनवार अलवर ज़िले के बहरोड़ थाने के तत्कालीन एसएचओ थे और मामले में पहले जाँच अधिकारी थे। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, अदालत को दिए अपने बयान में सिनसिनवार ने कहा था कि उन्हें एक मुखबिर से एक वीडियो मिला था, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने वीडियो को फ़ोरेंसिक साइंस लैब (एफ़एसएल) को नहीं भेजा था। उन्होंने यह भी माना किया कि अभियुक्त के कॉल डिटेल के लिए उन्हें नोडल अधिकारी से प्रमाणपत्र नहीं मिला था, और न ही उसे किसी से सत्यापित कराया गया था।
उन्होंने अदालत को बताया कि उन्होंने अभियुक्तों से बिल और सिम आईडी जैसे कोई दस्तावेज़ नहीं लिए जिससे पता चल सके कि आरोपी मोबाइल के मालिक थे। फ़ोन भी ज़ब्त नहीं किए गए थे।
पहलू ख़ान के परिवार के वकील का आरोप
पहलू ख़ान के परिवार के वकील एडवोकेट क़ासिम ख़ान ने कहा, ‘वीडियो सबूत अदालत में स्वीकार्य नहीं थे क्योंकि अदालत में सबूत के रूप में उन्हें पेश करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए था। लेकिन जाँच के दौरान पुलिस द्वारा इसका पालन नहीं किया गया और इसी कारण सभी छह अभियुक्त बरी हो गए।’
‘गंभीर लापरवाही’ पर पुलिस को फटकार
अख़बार ने लिखा है कि बुधवार को अपने फ़ैसले में अदालत ने सभी छह आरोपियों को संदेह का लाभ दिया था, लेकिन यह भी कहा कि राजस्थान पुलिस की जाँच में गंभीर कमियाँ थीं। अदालत इस निष्कर्ष पर भी पहुँची कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किया गया एक अन्य वीडियो भी संदिग्ध हो गया जब तीन महत्वपूर्ण गवाह मुकर गए।
फ़ैसले में अदालत ने मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी के लिए पुलिस को भी फटकार लगाते हुए कहा कि इसने जाँच अधिकारी की ओर से ‘गंभीर लापरवाही’ दिखाई। इसमें कहा गया है कि जाँच अधिकारी ने पहलू ख़ान के बयान को 16 घंटे बाद थाने में दिया, यह बड़ी लापरवाही है।
अदालत ने यह भी नोट किया कि जाँच अधिकारी ने अस्पताल में ख़ान के बयान को दर्ज करने से पहले डॉक्टरों से इस बात का प्रमाण पत्र नहीं लिया था कि वह अपना बयान दर्ज कराने की स्थिति में हैं या नहीं।
जाँच अधिकारी बदलने पर भी उठे सवाल
ख़ान के परिवार को क़ानूनी सहायता देने वाले वकील क़ासिम ख़ान ने जाँच पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, 'इस मामले की जाँच करने वाले अधिकारी तीन बार बदले गए- पहली बार बहरोड़ के थानाधिकारी, फिर बहरोड़ के सर्कल ऑफ़िसर और आख़िर में सीआईडी क्राइम ब्रांच। हत्या के मामले में जाँच अधिकारी को इतनी बार बदलने की ज़रूरत क्या थी।'
कोर्ट के फ़ैसले के बाद पहलू ख़ान के बेटा इरशाद ने भी कहा है कि जाँच के स्तर पर ही इस केस को कमज़ोर कर दिया गया।
क़ासिम ख़ान ने कहा कि केस उसी समय कमज़ोर हो गया था जब सीआईडी क्राइम ब्रांच ने उन छह लोगों को क्लीन चिट दे दी थी, जिनके नाम पहलू ख़ान ने मरने से पहले पीटने वाले के रूप में लिया था। उन्होंने कहा, 'यदि मरने वाले व्यक्ति द्वारा नाम लिए गए पीटने वाले 6 लोगों को पुलिस ने दोष मुक्त कर दिया तो केस अपने आप कमज़ोर हो गया।'
इस पूरे मामले में पुलिस की जाँच प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े होते हैं। कोर्ट ही पुलिस पर कई सवाल खड़े करता है। इस फ़ैसले से यह तो साफ़ है कि पहलू ख़ान के परिवार को न्याय नहीं मिला है। लेकिन जिस तरह से ऐसे ‘मज़बूत’ सबूत के बावजूद दोषियों को सज़ा नहीं मिली है तो यह पूरी न्याय प्रक्रिया के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।