पाकिस्तान में चुनाव एक साल की देरी से हो रहा है। नाम का चुनाव है। सेना जिसको चाहती है, वही सत्ता में आता है। पाकिस्तान को तमाम तरह की बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है - जिसमें आर्थिक अनिश्चितता, लगातार आतंकवादी हमले खास हैं। पाकिस्तान पर यह धब्बा लगा हुआ है कि वहां लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री ने कभी भी पूर्ण कार्यकाल पूरा नहीं किया है।
71 वर्षीय इमरान खान एक पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टार हैं, जो विवादों के तूफान में सत्ता से बेदखल होने से पहले पाकिस्तान के सर्वोच्च राजनीतिक पद तक पहुंचे थे। लेकिन अब पूर्व प्रधान मंत्री को कई मामलों में सजा सुनाकर जेल में डाल दिया गया है। वो अब चुनाव भी नहीं लड़ सकते।
इमरान के न होने पर चुनाव प्रचार में स्पष्ट रूप से सबसे आगे खान साहब के सबसे बड़े दुश्मन नवाज शरीफ हैं। 74 वर्षीय पूर्व प्रधान मंत्री और कारोबारी नवाज शरीफ चौथे कार्यकाल की तलाश में हैं। भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सजा सुनाए जाने के बाद वो विदेश में रह रहे थे और अब राजनीतिक वापसी करने जा रहे हैं। हालांकि अनुभवी शरीफ को पहली बार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बिलावल भुट्टो जरदारी (35) से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा, जो दिवंगत पूर्व नेता बेनजीर भुट्टो के बेटे हैं। लेकिन नवाज शरीफ का पलड़ा भारी है।
पाकिस्तान का चुनाव एक मजाक बन गया है। पूरी दुनिया में राजनीतिक विश्लेषक वोट की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि इमरान खान के बिना चुनाव कैसा। इमरान संभवतः जिन्ना के बाद देश के सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं, जिनके सहयोगियों पर व्यापक कार्रवाई के कारण अधिकारियों पर "चुनाव पूर्व धांधली" के आरोप लग रहे हैं। सेना और पाकिस्तान की कार्यवाहक सरकार दोनों ने खान या उनकी पार्टी पीटीआई को दबाने से इनकार किया है।
कई युवा मतदाता जो सिर्फ केवल 22.7 वर्ष के हैं, वो जिस नेता को अगले पांच वर्षों के लिए देश को सौंपना चाहते हैं उसे चुनने में असमर्थ हैं। ऐसे ही एक युवा मतदाता ने सीएनएन पर टिप्पणी की है कि “हर कोई देख सकता है कि प्राथमिकता किस नेता के लिए है। मैं अपना पहला वोट इमरान खान को देना चाहता था, लेकिन दुर्भाग्य से, मुझे नहीं लगता कि अब ऐसा हो सकता है।” युवा मतदाता ने कहा- “हमारी संवैधानिक संस्थान काम नहीं कर रहे हैं, ज़िम्मेदार लोग हमारे लिए काम नहीं कर रहे हैं, बोलने की आज़ादी नहीं है। हम बहुत व्यथित हैं।”
इमरान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी (पीटीआई) ने मतदान में उनकी अनुपस्थिति के बावजूद चुनाव लड़ने की कसम खाई है। हालांकि उसके पास पार्टी का अधिकृत चुनाव निशान नहीं है। खान, जिन्होंने 1992 में पाकिस्तान को क्रिकेट विश्व कप का गौरव दिलाया और चार साल बाद राजनीति में प्रवेश किया, भ्रष्टाचार विरोधी लहर पर सत्ता तक पहुंचे। उनकी पार्टी ने 2018 में चुनाव जीता, जो कई विश्लेषकों का कहना है कि तब वहां की सेना का उसे समर्थन था। पाकिस्तान में सेना एक ताकत है जो 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद प्रत्यक्ष शासन के जरिए या पर्दे के पीछे से राजनीति पर हावी रही है।
नेता के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान खान को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा। बढ़ती महंगाई से लेकर कोविड-19 महामारी तक, उनकी सरकार विदेशी मुद्रा में रिकॉर्ड गिरावट से जूझ रही ती, जिससे पाकिस्तान आर्थिक पतन के कगार पर पहुंच गया है। उन पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ कानून पारित करने का भी आरोप लगाया गया, उनके प्रतिष्ठान की आलोचना करने वाले कई पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को विभिन्न आरोपों में जेल में डाल दिया गया। अर्थव्यवस्था के कथित कुप्रबंधन के लिए अप्रैल 2022 में संसदीय अविश्वास मत में नाटकीय रूप से बाहर किए जाने के बाद से खान राजनीतिक विवाद में भी फंस गए हैं।
इमरान खान की पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर युवा मतदाताओं के बीच व्यापक लोकप्रियता है, जो उन्हें उन राजनीतिक परिवारों या सैन्य ताकत से अलग मानते हैं। द रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में एशिया-प्रशांत कार्यक्रम की एसोसिएट फेलो फरजाना शेख ने कहा- “पाकिस्तान में अतीत में संदिग्ध विश्वसनीयता वाले सर्वेक्षण हुए हैं। इस बार वे विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। ऐसी 'चुनाव-पूर्व धांधली' शायद ही कभी पहले हुई हो।"
पीटीआई को मतपत्रों पर अपने प्रसिद्ध क्रिकेट बैट प्रतीक का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है, जिससे उन लाखों अशिक्षित लोगों को झटका लगा है जो इसका उपयोग वोट डालने के लिए कर सकते हैं। टेलीविजन चैनलों पर इमरान खान के भाषणों को चलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस्लामाबाद में चुनाव को लेकर उदासीनता का माहौल साफ दिख रहा है। दर्जनों निवासियों ने सीएनएन से कहा कि इन हालात के लिए पाकिस्तान की सेना जिम्मेदार है, जिसने खान की पार्टी पर एकतरफा कार्रवाई की है। 22 वर्षीय छात्र राजा इकराम ने सीएनएन से कहा, "हम खान को चाहते हैं क्योंकि वह ऐसा व्यक्ति है जो हमारा प्रतिनिधित्व कर सकता है और दुनिया भर में खुलकर बात कर सकता है।" उन्होंने कहा कि उनकी पीढ़ी के लिए एकमात्र मुद्दा इमरान खान की जेल से रिहाई है। उन्होंने कहा, ''हम बिकाऊ प्रधानमंत्री नहीं चाहते।'' यह इशारा नवाज शरीफ की तरफ था।
यही बात इस्लामाबाद से लगभग 370 किलोमीटर दूर खान के गृहनगर लाहौर में, कई युवा मतदाताओं ने कही और समान निराशा दिखाई। पहली बार मतदाता बने 22 वर्षीय अमीर हमजा ने कहा कि कल मतदान के लिए "बहुत उत्साह नहीं है।" छात्र ने कहा, लोगों का मानना है कि चुनाव हमेशा तय होता है। राजनीतिक माहौल "विशेष रूप से हमारे खिलाफ" है। उन्होंने कहा, हम अभिव्यक्ति के बुनियादी अधिकारों, जीवन की गरिमा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की तलाश कर रहे हैं। जबकि इस बार प्रधानमंत्री पद के लिए खड़े लोग ''अभिजात्य और वंशवादी'' परिवारों से हैं। वो हमारी पसंद नहीं हैं।
तीन बार के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ, जिन्होंने एक बार अपना एक कार्यकाल सैन्य तख्तापलट में समाप्त होते देखा था, उनके चुनाव जीतने की प्रबल संभावना है। क्योंकि उनकी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीएमएलएन) पार्टी की चुनावी रूप से महत्वपूर्ण पंजाब प्रांत में लोकप्रियता है। इसके अलावा सेना का भी समर्थन है। नवाज शरीफ लगभग चार साल के आत्म-निर्वासन के बाद पिछले अक्टूबर में पाकिस्तान लौटे। अपनी वापसी तक के वर्षों में शरीफ ने अपनी अधिकांश सजाओं को अदालतों में पलटवा दिया यानी माफ करा लिया। दिसंबर में अंतिम भ्रष्टाचार का आरोप हटा दिया गया, जिससे उनके लिए एक बार फिर चुनाव में खड़े होने का मार्ग साफ हो गया।