भारत को चारों तरफ़ से घेर रहा है चीन, दूर हो रहे पड़ोसी देश?

07:25 am Oct 19, 2019 | बीना पाण्डेय - सत्य हिन्दी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मामल्लपुरम (महाबलिपुरम) के तट पर कूड़ा उठाने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल ने भारत और चीन देशों के बीच के तमाम मुद्दों को मुख्यधारा में आने से जैसे रोक दिया हो। ख़बरों में चीनी राष्ट्रपति का मेन्यू, कश्मीर, प्रधानमंत्री की लुंगी और उनका टूरिस्ट गाइड बनना सब रहा। लज़ीज़ लाब्स्टर और बिरयानी खिलाने के बीच यह बात देशवासियों को नहीं बतायी गयी कि चीन कैसे भारत के गले में फंदा डालने में लगा है। उसने योजनाबद्ध तरीक़े से भारत के पड़ोसी देशों को ‘अपना’ बना कर भारत को अलग-थलग करने के काम में लगा है।

पाकिस्तान

चीन भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को एक रक्षा निर्यातक देश बनने में मदद कर रहा है जिससे वह म्यांमार और नाइजीरिया जैसे देशों को हथियार बेच सकेगा। 11 अक्टूबर को प्रकाशित ख़बर के अनुसार दोनों देशों के बीच एक रक्षा सौदा अपने अंतिम चरण में है। चीन से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कर पाकिस्तान अपने दम पर सैन्य हार्डवेयर का उत्पादन शुरू कर सकेगा। चीन से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कर इस्लामाबाद की रक्षा रणनीति की रीढ़ 'फ़ाइटर जेट' के ज़रिये पाकिस्तान सेना के लिए टैंक और अन्य उपकरणों के उत्पादन में तेज़ी लाई जा रही है। इसी तरह, चीनी हार्डवेयर के ज़रिये पाकिस्तान अपनी नौसेना का विस्तार भी कर रहा है। पिछले एक साल में चीन की सहायता से पाकिस्तान ने जेएफ़ -17 थंडर लड़ाकू विमानों की बिक्री को दोगुना कर दिया है। जेएफ़-17 के संस्करण जेएफ़-17 ब्लॉक III, जिसे 2020 में रोल आउट किया जाएगा, में अधिक उन्नत रडार, अतिरिक्त हथियार और अन्य आधुनिक प्रौद्योगिकी शामिल होगी।

चीन 2022 तक पाकिस्तान की नौसेना को चार पनडुब्बियाँ देगा और दक्षिणी बंदरगाह के शहर कराची के एक शिपयार्ड पर चार अन्य पनडुब्बियों का निर्माण करेगा जिससे अरब सागर और हिंद महासागर पर नज़र रखी जा सके। पाकिस्तान की मदद करने के पीछे का कारण यह है कि चीन का मानना है कि अमेरिकी और अन्य पश्चिमी देश सैन्य मामलों में भारत की मदद कर रहे हैं। जिसके जवाब में चीन पाकिस्तान को सैन्य रूप से सक्षम बनाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है।

नेपाल 

भारत से सीधे नेपाल पहुँचे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 23 वर्षों में नेपाल का दौरा करने वाले पहले चीनी राष्ट्रपति हैं, उनसे पहले 1996 में राष्ट्रपति जियांग जेमिन ने नेपाल का दौरा किया था। कभी भारत का सबसे नज़दीकी रहा नेपाल आज चीन से नजदीकियाँ बढ़ा रहा है।

इससे पहले वर्ष 2015 में नेपाल में आयी भूकंप की त्रासदी के बाद चीन ने बुनियादी ढाँचों, कृषि, उद्योगों, पनबिजली, शिक्षा और रक्षा को विकसित करने में नेपाल की सहायता की थी। 2013 में चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में नेपाल को शामिल कर भारतीय सीमा के और क़रीब आने की कोशिश की है। बीआरआई के ज़रिये चीन एशिया, अफ़्रीका और यूरोप को बुनियादी ढाँचे के विकास जैसे सड़क, रेलवे, बंदरगाह, संचार लाइनों और सीमा पार आर्थिक क्षेत्र में बड़े निवेश की योजना को कार्यान्वित कर रहा है। बीआरआई में नेपाल-चीन ट्रांस-हिमालयन बहु आयामी कनेक्टिविटी नेटवर्क और नेपाल-चीन क्रॉस-बॉर्डर रेलवे को शामिल किया गया है। इसके तहत जिनपिंग ने नेपाल यात्रा के दौरान नेपाल की भारत पर निर्भरता ख़त्म करने के लिए तिब्बत काठमांडू को जोड़ने वाले रेल मार्ग और टनल पर समझौता किया है।

नेपाल की वर्तमान सरकार कम्युनिस्ट विचारधारा से काफ़ी प्रभावित है इसलिए भी चीन से नज़दीकियाँ बढ़ा रही हैं। जबकि चीन को इससे दोतरफ़ा लाभ है; एक, उसे नेपाल में बढ़िया बाज़ार मिला और दूसरा, नेपाल के ज़रिये वह भारत पर कूटनीतिक व रणनीतिक दबाव बनाने में कामयाब हो रहा है।

भूटान

चीन और भूटान के बीच डोकलाम जैसे सीमा विवाद के अतिरिक्त कोई गतिरोध नहीं है। डोकलाम पठार में चीन के सैन्य दखल को अनदेखा कर भारत ने जिस तरह अपना रणनीतिक हित देखा उसने थिम्पू को बेहद निराश किया है।

आज बीजिंग सॉफ्ट पावर डिप्लोमैसी और बेहतर भविष्य के वादे के ज़रिए भूटान के साथ संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहा है जिससे भारत अपनी ज़मीन खोता नज़र आ रहा है। बेरोज़गारी में बेतहाशा वृद्धि और भूटान पर भारत के बढ़ते क़र्ज़ ने भूटान को चिंतित किया है। हालाँकि भारत भूटान के साथ खड़ा है लेकिन चीन भूटान को अपने पाले में लाने का कोई मौक़ा नहीं गंवाता। चीन के साथ राजनयिक संबंधों में भूटान की रुचि बढ़ रही है। सरकार को चीन के साथ आर्थिक संबंध स्थापित करने के लिए निजी क्षेत्र से बड़े पैमाने पर दबाव का सामना करना पड़ रहा है।

बांग्लादेश

1990 के दशक के बाद, चीन आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा निर्माण में बांग्लादेश का बड़ा सहयोगी और विश्वसनीय भागीदार के रूप में उभरा है। जनवरी 2019 तक चीन 10 बिलियन डॉलर से अधिक द्विपक्षीय व्यापार के साथ बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। अर्थशास्त्रियों ने भविष्यवाणी की है कि अगर मौजूदा दर इसी तरह जारी रही, तो 2021 में द्विपक्षीय व्यापार 18 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा। यही नहीं, बांग्लादेश बेल्ट एंड सिल्क रोड इनिशिएटिव का भागीदार देश है जो भारत के कोलकाता के बेहद क़रीब से होकर गुजरेगा।

म्यांमार

एक तरफ़ जहाँ रोहिंग्या मामले में पूरी दुनिया म्यांमार की आलोचना कर कर रही है वहीं दूसरी तरफ चीन चुपचाप म्यांमार के साथ अपने रिश्ते प्रगाढ़ करने में लगा हुआ है। राखिने राज्य की स्थिति पर मौजूदा अंतरराष्ट्रीय दबाव और आर्थिक प्रतिबंधों के नए ख़तरे ने एक बार फिर कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर म्यांमार में चीन की भागीदारी की आवश्यकता को उजागर किया है। म्यांमार के साथ चीन के रिश्ते अतीत की तुलना में अब बेहतर स्थिति में है। हालाँकि दक्षिण चीन सागर में चीन की स्थिति पर म्यांमार खुश नहीं है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते म्यांमार व चीन के बीच बेहतर आर्थिक संबंधों की भी उम्मीद की जा रही है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत अशांत राखिने राज्य में चीनी मेगा परियोजनाएँ स्थापित की जा सकती हैं।

अफ़ग़ानिस्तान

अफ़ग़ानिस्तान, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट का साझीदार देश है। चीन ने हाल के वर्षों में अफ़ग़ानिस्तान में अपनी भागीदारी में लगातार वृद्धि की है। अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सेना की मौजूदगी के कारण वर्ष 2001 के बाद दो दशकों तक देश में चीन का हस्तक्षेप बहुत सीमित रहा है। लेकिन अब चीन अफ़ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा व्यावसायिक निवेशक है और चीनी कंपनियाँ कई निर्माण परियोजनाओं में शामिल हैं। अफ़ग़ानिस्तान में उइगुर और अन्य आतंकी ख़तरे से वाक़िफ़ चीन ने अपनी सीमा पर सुरक्षा तेज़ कर दी है, कथित तौर पर अफ़ग़ान बल भी उनके साथ संयुक्त गश्त में शामिल है। चीन अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ चतुर्भुज समन्वय और सहयोग तंत्र (क्यूसीसीएम) स्थापित कर बदख्शां प्रांत में एक आधार का निर्माण कर रहा है। साफ़ है कि पहले आतंकवाद और फिर अमेरिकी सेना की मौजूदगी से पीड़ित अफ़ग़ानिस्तान को चीन का यह सहारा किसी संजीवनी से कम नहीं है।

श्रीलंका

मालदीव सहित भारत के अन्य पड़ोसी देशों की तुलना में श्रीलंका में चीन के हित आर्थिक से ज़्यादा रणनीतिक हैं। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति  महिंद्रा राजपक्षे के कार्यकाल के दौरान कोलंबो में एक चीनी परमाणु पनडुब्बी की यात्रा ने भारत के लिए अलार्म की घंटी बजा दी। लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एलटीटीई) के ख़िलाफ़ श्रीलंकाई युद्ध के अंतिम चरण के दौरान चीन-श्रीलंका संबंध चरम पर पहुँच गया। व्यापक मानवाधिकार हनन के मामले में अंतरराष्ट्रीय निंदा के सामने चीन ने कोलंबो को राजनीतिक और रक्षा समर्थन दिया जो कि श्रीलंका के लिए बेहद महत्वपूर्ण था।

हालाँकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत मालदीव की आधिकारिक यात्रा से की और श्रीलंका में समापन किया, यह महज संयोग नहीं था। नई दिल्ली श्रीलंका-भारत की सीमा पर चीन के पैठ बनाने के ख़तरे को समझ रही है। भारत हंबनटोटा पोर्ट के उदाहरण के साथ बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) सहित चीनी दस्तक के जोखिमों को भली भाँति समझता है।

श्रीलंका में एक चीनी युद्धपोत की डिलीवरी इस बात का सबूत है कि भारत के पड़ोस में रणनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज़ हो रही है। चीन आने वाले वर्षों में श्रीलंका के साथ अपने संबंधों से भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती पेश करता रहेगा।

इस तरह हम देखते हैं कि चीन भारतीय सीमा से जुड़े सभी देशों के प्रति बेहद नरम लेकिन कूटनीतिक सम्बन्ध बनाने में कामयाब हो रहा है। चीन जैसे बड़े प्रतिद्वंद्वी देश का इस तरह से भारत को लगभग घेरने का प्रयास नज़रअंदाज़ करने लायक नहीं है। भारत को कूटनीतिक कौशल के ज़रिये अपने पड़ोसी देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाये रखना होगा।