मैं पिछले 10-15 दिनों से अख़बारों में लिखता रहा और टीवी चैनलों पर बोलता रहा कि कोरोना से डरो ना। कोरोना भारत में उस तरह नहीं फैल सकता, जिस तरह वह अन्य देशों में फैला है। लेकिन अब मुझे अपनी राय उलटनी पड़ रही है, क्योंकि अब सैकड़ों लोग रोज़ाना कोरोना के जाल में फंस रहे हैं। यह क्यों हो रहा है क्योंकि एक मौलाना ने निहायत आपराधिक लापरवाही की है, जो कई मौतों का कारण बन गई है।
तबलीगी जमात के अधिवेशन में दिल्ली आए हजारों लोग अपने साथ कोरोना वायरस लेकर सारे देश में फैल गए हैं। इनमें लगभग 300 विदेशी लोग भी थे। ये सब लोग धर्म-प्रचार (तबलीग) के नाम पर इकट्ठे हुए थे लेकिन ये मौत के प्रचारक बन गए हैं।
केरल से कश्मीर और अंडमान-निकोबार से गुजरात तक लोग थोक में कोरोना वायरस के शिकार हो रहे हैं। ये शिकार होने वाले लोग कौन हैं इनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं और वे गैर-मुसलमान भी हैं, जो इनके संपर्क में आए हैं। इन तीन हजार तबलीगियों ने मरकज़ से निकलने के बाद अपने-अपने गांवों और शहरों तक पहुंचने से पहले और बाद में क्या लाखों लोगों से संपर्क नहीं किया होगा
तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना साद ने अपनी तकरीरों में कोरोना-प्रतिबंधों का जो मजाक उड़ाया है, वह उन्हें इन सब मौतों के लिए जिम्मेदार बना देता है। उन्होंने अपने अपराध के लिए माफी भी नहीं मांगी और वह फरार भी हो गए हैं। उनका यह कायराना बर्ताव बताता है कि वह कितने धार्मिक हैं उनके इस बर्ताव ने यह सिद्ध किया है कि वह जिसे धर्म-प्रचार कहते हैं, वह उनका पारिवारिक धंधा है। अपने परदादा द्वारा शुरू किए गए इस धंधे को वह मुसलमानों की जान से भी ज्यादा कीमती समझते हैं।
कई देशों की तरह भारत सरकार को भी इस धंधे पर प्रतिबंध लगाने का विचार करना चाहिए। इस तरह के अंधविश्वासी अभियान किसी भी धर्म, मजहब, संप्रदाय और जाति के नाम पर चल रहे हों, उन पर सरकार को बहुत सख्ती बरतनी चाहिए। उसे यह सोचकर डरना नहीं चाहिए कि वह इन पाखंडियों के ख़िलाफ़ सख्ती करेगी तो उस पर सांप्रदायिकता या हिंदूवादिता का बिल्ला चिपका दिया जाएगा।
मुझे खुशी है कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, जो इस्लामी विद्या के पंडित हैं, वह इस जमात के ख़िलाफ़ दो-टूक शब्दों में बोल रहे हैं। मैं देश के सभी मुसलिम नेताओं से अनुरोध करता हूं कि वे धर्म के नाम पर चल रहे इस पाखंड का डटकर विरोध करें।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.inसे साभार)