राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण की घोषणा ऐसे वक्त हुई जब महिला पहलवान विनेश फोगाट का प्रधानमंत्री मोदी को लिखा पत्र सुर्खियों में था। विनेश ने पीएम मोदी को एक पत्र लिखकर उनके घर की बेटी (जैसा कभी मोदीजी ने विनेश को संबोधित किया था) के साथ अन्याय करने वाले का वीडियो देखने के लिए पाँच मिनट निकालने की अपील की थी। महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने के मामले में आरोपी बीजेपी सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के ‘दबदबे’ से आहत विनेश फोगाट ने पीएम को लिखे पत्र में अपना अर्जुन अवार्ड और खेल रत्न पुरस्कार वापस करने की घोषणा भी की थी। इसके पहले साक्षी मलिक ने कुश्ती छोड़ने का ऐलान किया था और बजरंग पुनिया अपना पद्मश्री पीएम आवास के बाहर फुटपाथ पर रख आये थे।
गौर से देखिये तो ये पीड़ित प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित दो जातियों के प्रतिनिधि हैं जो उनसे बुरी तरह निराश हो चुके हैं- महिला और युवा। वैसे किसान और गरीब वर्ग से भी इनका सीधा रिश्ता है। यानी प्रधानमंत्री जी ने जिन चार जातियों के लिए काम करने की घोषणा की है, उसकी हकीक़त सिर्फ इस एक घटना से सामने आ जाती है।
आप पूछ सकते हैं कि इस लेख की शुरुआत तो राहुल गाँधी की यात्रा से हुई थी लेकिन बात पहलवानों के दुखड़े तक कैसे पहुँच गयी। दरअसल, राहुल गाँधी की इस यात्रा का मकसद ही सबको ‘न्याय दिलाना’ है। यह संयोग नहीं कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के दफ्तर में सुबह दस बजे के बाद इस यात्रा का कार्यक्रम घोषित किया गया, उसके पहले राहुल गाँधी भोर में ही हरियाणा के झज्झर के एक गाँव झारा के अखाड़े में पहुँचकर पहलवानों की पीड़ा से खुद को जोड़ रहे थे। उनसे कुश्ती के दाँवपेच समझ रहे थे और उनकी रसोई में बैठकर रोटी-साग और गुड़ खा रहे थे।
नित नये ओपिनियन पोल के ज़रिए बीजेपी का माहौल बनाने में जुटे मीडिया के लिए इसमें कुछ भी खास नहीं था। वैसे, उसने एक दिन पहले चंपारण से पैदल 1100 किलोमीटर चलकर दिल्ली पहुँचे नौजवानों को भी तरजीह कहाँ दी थी। ‘अस्थायी भर्ती’ के लिए लायी गयी अग्निवीर योजना की आड़ में 2019-21 तक चली सेना और एयरफोर्स की ‘स्थायी भर्ती प्रक्रिया’ को रद्द करने के खिलाफ़ आवाज़ उठाने दिल्ली पहुँचे इन नौजवानों की सुध न मीडिया ने ली और न सरकार ने। लेकिन उनकी मुलाकात राहुल गाँधी से हुई जिन्होंने बेरोज़गारी के संघर्ष में पूरा साथ देने का वादा किया।
ओपिनियन पोल वालों के पास कोई तरीका नहीं है कि वे हरियाणा के पहलवानों या बिहार के नौजवानों को राहुल के हाथ मिलाने से मिलने वाली गर्मी को माप सकें या उनके हौसले में हुए इज़ाफ़े को आँक सकें। वे जब तीन राज्यों में मिली हार के आधार पर कांग्रेस या इंडिया गठबंधन का मर्सिया लिखने में व्यस्त हैं, राहुल गाँधी अपनी दूसरी यात्रा के लिए जुट गये हैं जो 6200 किलोमीटर की होगी और 14 राज्यों से गुज़रेगी। यात्रा की शुरुआत उस मणिपुर से होगी जहाँ कुछ दिन पहले 87 शवों को आठ महीने बाद अंतिम संस्कार नसीब हुआ है। जहाँ की हर सड़क पर धुआँ भरा है और हर गली में आँसुओं की नदी बह रही है। लेकिन भारत के मीडिया की नज़रों से यह सब अदृश्य है जैसे किसी दूर देश की बात हो।
राहुल गाँधी एक बार पहले भी मणिपुर के ज़ख्मों पर मरहम लगाने जा चुके हैं और इस बार भी वे 14 जनवरी से मणिपुर का शोक लेकर 20 मार्च को मुंबई पहुँचेंगे जहाँ के आज़ाद मैदान में 1942 में ‘आयडिया ऑफ इंडिया’ का झंडा लेकर ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ की हुंकार भरी गयी थी।
आठ महीनों से जल रहे मणिपुर जाने की फुर्सत भारत के प्रधानमंत्री मोदी को चाहे न मिली हो, राहुल गाँधी ने पीड़ितों को गले लगाकर बताया है कि उसके दुख में ‘भारत’ भी दुखी है। ये किसी बेहद अंधेरे समय में एक चिराग़ के जलने जैसा है। राहुल की यात्राएँ दरअसल ‘आयडिया ऑफ इंडिया’ या उस नव-भारत के प्रति प्रतिबद्धता और संघर्ष का ऐलान हैं जिसने उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चिम की तमाम विविधिताओं को कुछ संकल्पों में एकसार कर दिया था। ये संकल्प था न्याय का। जाति, धर्म, नस्ल, क्षेत्र के भेद से मुक्त न्याय का। जब इस संकल्प पर छाये उन्मादी बादल पूरी दुनिया को चिंता में डाल रहे हैं तो राहुल गाँधी एक बड़े आश्वासन की तरह खड़े हो गये हैं।
पिछले साल 7 सितंबर को कन्याकुमारी से 4080 किलोमीटर चलकर कश्मीर पहुँची भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गाँधी ने आर्थिक विषमता, सामाजिक ध्रुवीकरण औऱ राजनीतिक तानाशाही का मुद्दा उठाया था। ‘नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान’ खोलने की उनकी बात ने लाखों भारतीयों के दिल को छुआ था। इस बार की ‘भारत न्याय यात्रा’ आर्थिक न्याय, सामाजिक न्याय और राजनीतिक न्याय के मुद्दे को लेकर होगी। ये वही मुद्दे हैं जिनके बिना डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में आज़ादी और लोकतंत्र को अधूरा बताया था। इससे यह भी साफ़ हो रहा है कि ‘जितनी आबादी उतना हक़’ का नारा राहुल गाँधी ने कर्नाटक चुनाव जीतने के लिए ही नहीं दिया था, उनकी दृष्टि में यह संविधान निर्माताओं को सपने के पूरा करने की विराट परियोजना है। कांग्रेस उसी तरह इसकी वाहक है जैसे कि भारत को स्वतंत्र कराने के दौर में थी।
राहुल गाँधी की यात्रा ऐसे समय हो रही है जब कॉरपोरेट लूट और सामाजिक-आर्थिक असमानता चरम पर है। आईएमएफ भारत के गले तक क़र्ज में डूब जाने की चेतावनी दे रहा है। भीषण बेरोज़गारी ने नौजवानों को आत्महत्या की कगार पर धकेल दिया है। लेकिन इस खुली लूट को ओझल रखने के लिए पीएम मोदी की सत्ता धार्मिक उन्माद का सहारा ले रही है। मीडिया इस उन्माद को बढ़ाने की सुपारी लेकर चमकदार तमाशे रच रहा है। लोगों की जिंदगी की बेहतरी से जुड़े लौकिक प्रश्नों पर परलोक सुधारने वाले किस्सों की चादर तानी जा रही है। समाज को विभाजित करने वाली शक्तियाँ सम्मानित हैं और भरे चौराहे अट्टहास कर रही हैं। ऐसे में राहुल गाँधी एक ‘स्टेट्समैन’ की तरह सामने हैं जो प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं बल्कि भारतीयों के बीच भारत नाम के प्रकाश का आह्वान करने के लिए हज़ारों किलोमीटर चलने को तैयार हैं। संसाधनों की दृष्टि से यह लड़ाई ‘रावण रथी-विरथ रघुबीरा वाली लगती है।‘ लेकिन अन्याय की सत्ता से न्याय के सवाल के साथ टकराने वाले ही इतिहास रचते हैं।
साम्राज्य का सूरज न डूबने के दंभ से भरे ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने कभी महात्मा गाँधी को नंगा फ़कीर कहा था। लेकिन यह सत्य की ताक़त ही थी कि ब्रिटिश साम्राज के सूरज के लिए बस इंग्लिश चैनल बचा है और महात्मा गाँधी की मूर्तियों को दुनिया के हर महासागर की लहरें प्रणाम करती हैं। इसी तरह झूठ और फरेब से रचे गये क़िस्सों से राहुल गाँधी पर चौतरफा हमला करने वाले इतिहास के फुटनोट में भी जगह नहीं पायेंगे जबकि राहुल की यात्राएँ सदियों बाद भी प्रेरणा देंगी।
14 जनवरी मकर संक्रांति का दिन होता है जब राहुल गाँधी अपनी न्याय यात्रा शुरू करेंगे। इस दिन सूर्य अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण में प्रवेश करता है। आम लोग तमाम मैल छुड़ाने के लिए पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। राहुल की यह न्याययात्रा भी वैसी ही पवित्र नदी साबित होगी जिसमें स्नान करने से तमाम कलुष मिटेंगे और एक न्यायपूर्ण भारत का संकल्प संभव होगा। न्याय के सूर्य का उदय ही भारत के उदय की गारंटी है।