आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने का दावा करने वाले भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान नई रणनीति बना रहा है। पाकिस्तान मुसलिम राष्ट्रों के बीच और जनतांत्रिक दुनिया में भारत को अलग-थलग करने में जुट गया है। आये दिन भारतीय विदेश मंत्रालय को अमेरिकी या ब्रिटिश क़ानून निर्माताओं या फिर मुसलिम देशों के भारत विरोधी कड़े बयानों का जवाब और स्पष्टीकरण देना पड़ रहा है।
मानवाधिकार संगठनों और मानवाधिकारों के पुरोधा देश, जो अब तक चीन के शिनच्यांग में मुसलिम अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद कर रहे थे, उनका ध्यान अब भारत की ओर खिंच गया है। अपने व्यक्तिगत आक्रामक कूटनीतिक क़दमों और दुनिया भर के प्रवासी भारतीयों के साथ सीधा संवाद स्थापित करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ब्रांड की चमक अब धूमिल होने लगी है।
भले ही मुसलिम देश चीन के शिन्च्यांग में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचार के आरोपों को नजरअंदाज कर रहे हों लेकिन वे भारत में हाल में हुए दंगों पर टिप्पणी करने से नहीं चूके।
पश्चिम एशियाई मुसलिम मुल्कों के भारत के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं लेकिन खनिज तेल पर भारत की उन पर निर्भरता की वजह से उन्हें भारत को आड़े हाथों लेने में कोई संकोच नहीं होगा।
पश्चिम एशियाई मुसलिम मुल्कों में रहने वाले क़रीब 80 लाख प्रवासी भारतीयों में मुसलमानों का हिस्सा अधिक है। इसके साथ ही उन्हें अपनी घरेलू मुसलिम कौम की भावनाओं का भी ख्याल रखना होगा। इसलिये सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात जैसे मुसलिम मुल्क जो अभी तक मौन हैं वे अधिक दिनों तक चुप नहीं रह सकते। नागरिकता क़ानून को लेकर अब तक मलेशिया, इंडोनेशिया, तुर्की और ईरान से ही भारत की निंदा और चेताने वाले बयान आए हैं।
भारत ने ख़ुद दिया पाक को मौक़ा
भारत को कठघरे में खड़ा करने का इससे अच्छा मौक़ा पाकिस्तान को नहीं मिल सकता था। यदि यह कहा जाए कि भारत ने यह अवसर ख़ुद पाकिस्तान को थाली में रखकर दिया है तो ग़लत नहीं होगा। ऐसे मौक़े पर जब अफ़ग़ानिस्तान में अहम भूमिका को लेकर पाकिस्तान की पूछ बढ़ती जा रही है, दुनिया के कई देशों द्वारा भारत पर अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाए जाने से पाकिस्तान को बिना किसी प्रयास के भारत का नाम ख़राब करने का बहाना हाथ लग गया है। इन वजहों से पाकिस्तान को अपने ऊपर लगी आतंकवाद की कालिख को पोछने का भी अच्छा मौक़ा तो मिल ही गया है, वह मुसलिम और जनतांत्रिक दुनिया में भी भारत का चेहरा यह कह कर काला कर रहा है कि भारत अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ भेदभाव की नीति अपना रहा है और उनके मानवाधिकारों का हनन कर रहा है।
वास्तव में, हाल के भारत के घरेलू घटनाक्रम की वजह से आतंकवाद को लेकर भारत द्वारा पाकिस्तान के ख़िलाफ़ पैदा की गई धारणा अब कमजोर पड़ती लग रही है जिससे भारत के बयानों को अब उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाएगा। जनवरी में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अल-क़ायदा और इसलामिक स्टेट के साथी गुटों की सूची से लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों को बाहर किया जाना इसका उदाहरण है।
खामेनई की टिप्पणी पर भारत चुप
खुद अपने देश में अपने मुसलमान नागरिकों पर कहर ढाने वाले ईरान के विदेश मंत्री ने जब भारत के दंगों पर टिप्पणी की तो भारत ने ईरानी राजदूत को बुलाकर झाड़ लगाई। लेकिन ईरान के निरंकुश सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनई द्वारा दिल्ली दंगों को लेकर ‘मुसलमानों का कथित संहार करने वाला’ अब तक का सबसे कड़ा भारत विरोधी बयान दिये जाने के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने मौन रहना ही बेहतर समझा। इससे पहले भारतीय विदेश मंत्रालय ने तुर्की और मलेशिया को भारत के घरेलू मामलों पर टिप्पणी करने के लिये आड़े हाथों लिया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले शासनकाल में काफी सुविचारित कूटनीति के जरिये मुसलिम दुनिया के अग्रणी शेखों से गले लग कर उन्हें पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपने पाले में करने में कामयाबी पाई थी लेकिन बदले हालात में उनका साथ आगे कब तक मिलेगा, यह कहना मुश्किल है।
संकीर्ण मानसिकता वाली छवि से बचे भारत
यह भारत की आर्थिक और धर्मनिरपेक्ष साख ही थी कि जम्मू-कश्मीर पर भारत द्वारा उठाए गए क़दमों को लेकर इसलामी और जनतांत्रिक दुनिया में विरोध के स्वर नहीं के बराबर सुने गए। लेकिन दिल्ली दंगों और नागरिकता क़ानून को लेकर कुछ नेताओं द्वारा दिये गए उग्र बयानों को जिस तरह पाकिस्तान द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उछाला जा रहा है, उसे बाक़ी दुनिया सुन रही है और इससे पूरी दुनिया में नये भारत की संकीर्ण मानसिकता वाले देश की छवि बनने लगी है।
विश्व समुदाय को भरोसे में लेना ज़रूरी
वास्तव में मुसलिम दुनिया में अपने साथी देशों को भारत विरोधी बयान देने के लिये उकसाने के बाद पाकिस्तान को अब विश्व रंगमंच पर भारत के ख़िलाफ़ माहौल बनाने का सुनहरा मौक़ा हाथ लग गया है। पिछले कुछ सालों से जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत ने जो हवा अपने पक्ष में बनाने में कामयाबी हासिल की थी उसे भारत के ख़िलाफ़ बहने से रोकने के लिये भारत को विश्वसनीय क़दम उठाकर विश्व समुदाय को अपने भरोसे में लेना होगा।