विशेष रिपोर्ट: ‘इंटरनेट न होने से कश्मीर में नर्क जैसे हालात’

09:34 am Jan 21, 2020 | अमरीक - सत्य हिन्दी

सुप्रीम कोर्ट के सीधे हस्तक्षेप के बावजूद कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं अभी भी बहाल नहीं हो पाई हैं। ज्यादातर इलाक़ों में ब्रॉडबैंड पांच महीनों (अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद) से पूरी तरह ठप हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस संबंध में दिये गये महत्वपूर्ण निर्देशों की अवहेलना जारी है। कश्मीर के प्रबुद्ध व आम लोगों से बातचीत करने पर पता चलता है कि जिस समीक्षा का आदेश उच्चतम न्यायालय ने सरकार को दिया था, उसकी खानापूर्ति भी उन्हें कहीं दिखाई नहीं दे रही। सब कुछ जस का तस है। इस पत्रकार ने कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंधों की समीक्षा और इंटरनेट बहाल करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश तथा दिशा-निर्देश को लेकर कश्मीर में रह रहे कुछ लोगों से बातचीत की। दिल्ली में सरकार कुछ भी दावा करे लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त से यह पूरी तरह दूर है।

डॉक्टर उमर शाद सलीम यूरोलॉजिस्ट हैं और मुंबई से अच्छी-ख़ासी नौकरी छोड़कर सेवा भावना के साथ श्रीनगर में प्रैक्टिस करने आए थे। उनके माता-पिता भी श्रीनगर के ख्यात डॉक्टर हैं। इस डॉक्टर परिवार को लगता है कि कश्मीर इन दिनों दमन और शीत गृह युद्ध के दौर से गुजर रहा है। डॉक्टर उमर साइकिल से श्रीनगर से सटे गांवों में जाकर बीमारों का प्राथमिक उपचार करते हैं और समकालीन कश्मीर से बखूबी वाकिफ हैं। 

डॉक्टर उमर के मुताबिक़, ‘इंटरनेट के अभाव ने कश्मीर में तमाम स्वास्थ्य सुविधाओं को नाकारा कर दिया है। यहां आकर जानिए कि बहुप्रचारित ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ किस तरह मृत हो गई है और उसका सिर्फ नाम बचा है। इस योजना के कार्ड स्वाइप नहीं हो पा रहे हैं और मरीज मारे-मारे फिर रहे हैं।’

एक अन्य एमबीबीएस डॉक्टर हसन गिलानी कहते हैं, ‘बारूदी गोलियों और दहशत से मरने वाले कश्मीरी आज ज़रूरी दवाइयों के अभाव में दयनीय मौत मर रहे हैं। इसलिए कि दवाइयां और डॉक्टरों के बीच होने वाला चिकित्सीय परामर्श इंटरनेट के जरिए आता-जाता है।’ 

इंटरनेट के बिना ख़ासे परेशान हैं डॉक्टर्स 

सरकारी अस्पतालों में इंटरनेट और ब्रॉडबैंड की सुविधा दी गई है लेकिन किसी डॉक्टर को परामर्श से लेकर बाकी चीजों का आदान-प्रदान इंटरनेट के जरिए करना होता है जबकि उनके घरों में यह सुविधा अभी भी प्रतिबंधित है। अब सब कुछ आपके मूल अधिकारों पर नहीं बल्कि सरकारी मनमर्जी तथा अंकुश पर निर्भर है। गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोग वॉट्सऐप के जरिए डॉक्टर से सलाह नहीं ले सकते। 5 अगस्त के बाद ज़रूरी इलाज के अभाव में जो मरीज मरे हैं, उनके सही आंकड़े सामने आएंं तो इस खौफनाक स्थिति की असली तसवीर पता चलेगी।

‘छलावा है इंटरनेट बहाल करने का दावा’ 

गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर में उच्च पद पर रहे और इंडियन डॉक्टर्स एंड पीस डेवलपमेंट व आईएमए से जुड़े जम्मू-कश्मीर के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने श्रीनगर से फोन पर इस पत्रकार को बताया कि घाटी में इंटरनेट व ब्रॉडबैंड बहाल करने का दावा एक छलावा है। दुनिया के इस सबसे बड़े लॉक डाउन ने अवाम की जिंदगी को और ज्यादा नर्क बना दिया है। 

लंदन से प्रकाशित 200 साल पुराने अति प्रतिष्ठित मेडिकल जनरल 'लेमट' ने अपनी एक हालिया विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में लिखा है कि लॉक डाउन के चलते दुनिया में ऐसे हालात पहले कहीं नहीं हुए, जैसे आज कश्मीर में हैं।

'लेमट' ने रिपोर्ट में लिखा है कि कुछ अस्पतालों में ब्रॉडबैंड शुरू कर दिए गए हैं लेकिन डॉक्टरों को अध्ययन पद्धति से लेकर मरीजों की कुछ जटिल बीमारियों की रिपोर्ट्स को घर पर भी पढ़ना होता है तथा बाहर के डॉक्टरों से संपर्क करके निष्कर्ष पर पहुंचना होता है। इंटरनेट पर प्रतिबंध ने इस सिलसिले को ख़तरनाक हद तक ख़त्म कर दिया है। 

फिलहाल सरकारी दहशत भी इतनी ज्यादा है कि अनेक डॉक्टर इस वजह से सरकार से ब्रॉडबैंड नहीं लेना चाहते कि उनकी एक-एक गतिविधि सरकारी निगाह की क़ैद में आ जाएगी। इंटरनेट स्थगित होने से अस्त-व्यस्त हुईंं मेडिकल सेवाओं के लिहाज से कश्मीर में हालात यकीनन 1947 से भी ज़्यादा बदतर हैं। 

सरकारी मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर में सेवारत एक डॉक्टर के अनुसार, ‘सरकार आखिर इंटरनेट शुरू करने से परहेज क्यों कर रही है। अगर संचार सेवाएं चलती हैं तो लोगों को बुनियादी सुविधाएं तो मिलेंगीं ही, वे व्यस्त भी हो जाएंगे और उनकी मानसिक दुश्वारियां भी कम होंगींं। इंटरनेट पर पाबंदियां और उसके जरिए सूचनाओं का आदान-प्रदान न होना उन्हें मानसिक रोगी बना रहा है।’

सोपोर के एक अध्यापक के अनुसार, ‘सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी आम कश्मीरी इंटरनेट सेवाओं से पूरी तरह वंचित है। इस आदेश के तीन दिन बाद कुछ सरकारी परीक्षाओं के परिणाम आए तो परीक्षार्थी उन्हें नेट पर देख नहीं पाए। सरकारी जगहों पर लगाए गए सूचना पट्टों के जरिए भीड़ का हिस्सा बनकर उन्हें देखा गया। इसके फोटो मीडिया में भी आए। क्या यह मंजर साबित नहीं करता कि कश्मीर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी इंटरनेट सेवाएं बंद हैं?’ एक बैंक कर्मचारी ने बताया कि लोग एटीएम से पैसे निकाल सकते हैं लेकिन खुद ट्रांजैक्शन नहीं कर सकते। कुछ जगह ब्रॉडबैंड भी काम कर रहे हैं। 

अनुच्छेद 370 हटाना नुक़सानदेह!

जम्मू में रहने वाले सीपीआई के राज्य सचिव नरेश मुंशी ने कहा, ‘जम्मू में भी इंटरनेट को लेकर काफी भ्रम है। ज्यादातर सरकारी दफ्तरों और अफसरों के ब्रॉडबैंड तथा इंटरनेट तेज गति से चलते हैं जबकि आम नागरिकों के धीमी रफ्तार से। 5 अगस्त को जम्मूवासियों में जो लड्डू बांटे गए थे वे अब यहां के बाशिंदों को कड़वे लगने लगे हैं। जम्मू का अधिकांश कारोबार कश्मीर घाटी पर निर्भर था। वहां से जम्मू के व्यापारियों को पैसा मिलना बंद हो गया है और इस खित्ते का बहुत बड़ा तबका अब मानता है कि अनुच्छेद 370 हटाना उनके लिए बहुत ज्यादा नुकसानदेह है।’

नरेश मुंशी।

मुंशी कहते हैं, ‘वैसे भी जम्मू को दबाव में लिया गया था। सरकार यह जानकारी भी छुपा रही है कि 5 अगस्त के बाद जम्मू की कठुआ, पुंछ और राजौरी सीमा पर भारत-पाक के बीच लगातार फायरिंग हो रही है जिसमें आम नागरिक, महिलाएं और बच्चे तक मारे जा रहे हैं लेकिन इसे सरकार जगजाहिर नहीं होने दे रही।’

जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट को बैन किये जाने को लेकर कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने सख़्ती दिखाते हुए बेहद कड़ी टिप्पणियां की थीं। कोर्ट ने कहा था कि इंटरनेट का इस्तेमाल करने की आज़ादी लोगों का मूलभूत अधिकार है और इसे अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता है। इसके बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने राज्य के कुछ इलाक़ों में मोबाइल इंटरनेट को चालू करने की अनुमति दी थी। 

इस पूरी रिपोर्ट को पढ़ने के बाद पता चलता है कि अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के हालात बदतर हैं। छात्रों से लेकर कारोबारी और मरीज से लेकर डॉक्टर तक परेशान हैं। सुप्रीम कोर्ट के इंटरनेट को चालू करने के आदेश के बाद भी लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार भले ही दिल्ली में बैठकर राज्य के हालात सामान्य होने का दावा करे लेकिन ज़मीनी हालात पूरी तरह इसके उलट हैं और यह कहा जा सकता है कि लोग निश्चित रूप से नर्क जैसे हालात का सामना कर रहे हैं।