दिल्ली में काम करते हैं, बीमार यहाँ पड़ेंगे तो इलाज कहाँ कराएँगे!

10:26 am Jun 10, 2020 | डॉ. वेद प्रताप वैदिक - सत्य हिन्दी

दिल्ली में कोरोना का संकट सुरसा के बदन की तरह बढ़ता जा रहा है, ऐसे में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने यह फ़ैसला कर लिया कि दिल्ली के अस्पतालों में बाहरवालों का इलाज नहीं होगा तो उसका यह फ़ैसला दिल्लीवालों को तो अच्छा लगा लेकिन दिल्ली में लाखों लोग ऐसे भी रहते हैं और बरसों से रहते हैं, जिनके आधार-कार्ड और पहचान-पत्रों पर उनके गाँवों के पते जड़े हुए हैं। ऐसा होने से उन्हें कभी किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता। 

ये लोग कौन हैं ये प्रायः वे लोग हैं, जिन्हें हम प्रवासी मज़दूर कहते हैं। वंचित, ग़रीब, पिछड़े, अशिक्षित, मेहनतकश लोग! अगर ये अचानक कोरोना के संकट में फँस जाएँ तो ये क्या करेंगे क्या इलाज के लिए अपने गाँव या प्रदेश में दौड़ेंगे उनके पास इलाज के लिए तो पैसे हैं ही नहीं (खाने के लिए भी नहीं), वे टैक्सी, बस, रेल या जहाज का किराया कहाँ से लाएँगे और उससे बड़ी समस्या यह कि उन्हें इलाज मिलने में तीन-चार दिन की देर भी लग सकती है। 

इसके अलावा जो लोग नोएडा, गुड़गाँव, गाज़ियाबाद वगैरह में रहते हैं और दिल्ली में काम करते हैं और दिल्ली को अपनी कर्मभूमि समझते हैं, उन्हें बीमार पड़ने पर दिल्ली में इलाज नहीं मिलना तो घोर अन्याय है। इस अन्याय के विरुद्ध दिल्ली के उच्च न्यायालय ने 2018 में एक कड़ा फ़ैसला भी दिया था कि जिस रोगी के पास दिल्ली का मतदाता-पहचान पत्र नहीं है, उसे कई सुविधाओं से वंचित किया जाता है। उसे संविधान की धारा 21 का उल्लंघन बताया गया। 

इसीलिए दिल्ली के उप-राज्यपाल ने दिल्ली सरकार के प्रावधान को रद्द करके ठीक ही किया लेकिन इस मामले को बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच राजनीतिक फुटबॉल बनाने से कहीं बेहतर यह होगा कि केंद्र सरकार तहे-दिल से राज्य सरकार के साथ सहयोग करे ताकि दिल्ली में कोई भी व्यक्ति सही समय पर सही इलाज से वंचित न रह जाए। इस राष्ट्रव्यापी संकट के दौरान यदि नेता लोग एक-दूसरे की टांग खींचेंगे तो वे अपनी ही छवि गिराएँगे। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार, दोनों के फ़ैसलों के पीछे सदाशय ही रहा है। उन्हें साथ मिलकर ही इस संकट को हराना है। ज़रूरी है कि दिल्ली और दिल्ली की सरकारों के दिल मिलें।