पत्रकार-मित्र सुनील कुमार ने फ़ेसबुक पर डिजिटली-निर्मित अथवा रंगों से उकेरा गया एक चित्र शेयर किया था। चित्र में ‘मोनालिसा’ जैसी दिखने वाली एक महिला आकृति को किसी पुरुष से प्रेम करते हुए प्रस्तुत किया गया है। पुरुष की छवि ‘मोनालिसा’ के रचनाकार लियोनार्डो दा’ विंची की भी मानी जा सकती है। आकर्षण का केंद्र चित्र के साथ दिया गया वर्णन था जिसने इस आलेख के लिए प्रेरित किया। चित्र के एक पंक्ति के कैप्शन या वर्णन में इस आलेख की समूची कहानी बसी हुई है। चित्र के साथ अंग्रेज़ी में दिये गए कैप्शन में कहा गया है :’ This is what happens when the museum gets empty.’’
चित्र को देखते ही मैं साल 1982 के जून महीने में पहुँच गया जब लंदन में ढाई महीने गुजरने के बाद पेरिस और उसके निकट बसे ऐतिहासिक शहर ‘वर्साई’ में बिताए गए दस दिनों में न जाने कितनी बार तो ‘एफ़िल टावर’ को देखा होगा और न जाने कितनी देर तक ‘मोनालिसा’ की अद्भुत कृति को ‘लूवर म्यूज़ियम’ में निहारा होगा ! इसी के साथ 2004 में पढ़ा गया Dan Brown का प्रसिद्ध उपन्यास ‘The Da Vinci Code’ भी स्मृतियों में जीवंत हो उठा । इस पर एक चर्चित फ़िल्म भी बन चुकी है जिसमें टॉम हैंक्स ने अद्भुत अभिनय किया है। उपन्यास ‘मोनालिसा’ के रचनाकार Da Vinci और उसी म्यूजियम पर केंद्रित है जिसमें उनकी ख्यात पेंटिंग प्रदर्शित है।
पेरिस और ‘मोनालिसा’ की बात तो सिर्फ़ 42 साल पुरानी हुई। ‘मोनालिसा’ के बहाने मैं साठ साल पहले की गई मथुरा-वृंदावन-नंदगाँव-बरसाना की यात्राओं की स्मृतियों में भी टहलने लगा। बात यात्राओं की नहीं उनके बहाने कुछ अलग कहने की है!
विचार यह आया कि जिस तरह पेड़-पौधों में प्राण होने और उनके आपस में संवाद करने के आख्यान सुनने में आते हैं, संग्रहालयों में टंगी पेंटिंग्स (जो ख्यात पेंटरों ने जीवित पात्रों को सामने बैठाकर बनाई होंगी) वे भी सब कुछ बंद हो जाने के बाद रात के सन्नाटों में अपनी फ़्रेम्स की चौखटों से बाहर निकलकर आपस में प्रेम करती होंगी, अपने दुख-दर्द आपस में बाँटती होंगी? ‘मोनालिसा’ दा विंची के सांसारिक जीवन का पात्र रही हैं। उनका असली नाम Lisa Gerardini था।
ऐसा ही संवाद विभिन्न कालखंडों में तराशी गई प्राचीन मूर्तियों और गुफाओं की चट्टानों के बीच भी होता होगा? कहा नहीं जा सकता कि सूने जंगलों में पेड़ों के आपस में टकराने से धधकने वाली आग और उसकी लपटों के बस्तियों तक पहुँचने के पीछे क्या रहस्य छुपे हुए होंगे!
बहुत सारे लोग शायद साठ साल पहले के वृंदावन की कल्पना नहीं भी कर पाएँ! मैं यहाँ सिर्फ़ उस ‘कुंज’ या ‘निधि वन’ की चर्चा करना चाहता हूँ जो कई छोटे-छोटे पेड़ों, लताओं से अच्छादित था। निश्चित ही आज भी वैसा ही होगा। ‘कुंज’ में भ्रमण के दौरान मुझे बताया गया था कि भगवान कृष्ण आज भी रात्रि के प्रहरों में राधारानी और गोपियों के साथ रास रचाने अवतरित होते हैं और वहाँ बने महल में विश्राम करते हैं। गाइड ने मुझे चेताया था कि रात्रि के दौरान कोई भी बाहरी व्यक्ति ‘निधि वन’ में प्रवेश नहीं कर पाता है!
सोचता हूँ कि ‘मोनालिसा’ अगर रात के सन्नाटे में पेंटिंग की चौखट से बाहर निकलकर प्रेम करती है, पेड़-पौधे आपस में बातचीत करते हैं, मूर्तियाँ और चट्टानें एक-दूसरे से संवाद करती हैं तो फिर कृष्ण भी रास रचाने अवश्य ही वृंदावन के ‘निधि वन’ में आते होंगे!