मोदी का लेख : गाँधी की नज़र में भारतीय राष्ट्रवाद भेदभावपूर्ण नहीं था

04:20 pm Oct 02, 2019 | नरेंद्र मोदी - सत्य हिन्दी

1959 में भारत पहुँचने के बाद डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था, ‘दूसरे देश मैं एक पर्यटक की तरह जाता हूँ, लेकिन भारत आना मेरे लिए तीर्थ यात्रा जैसा है। भारत वह भूमि है, जिसने सामाजिक बदलाव के लिए अहिंसा के तरीके को अपनाया और जिसका प्रयोग हमारे लोगों ने मॉन्टगोमरी, अलाबामा और दक्षिण अमेरिका के दूसरे इलाक़ों में किया और हमें लगा कि यह तरीका बहुत प्रभावी और स्थायी है, यह काम करता है।’

डॉक्टर किंग के प्रेरणा स्रोत मोहनदास कर्मचंद गाँधी है, जिन्हें लोग महात्मा यानी महान आत्मा कहते हैं।  बुधवार को हम उनके जन्म की 150वीं वषगाँठ मना रहे हैं। गाँधी जी यानी बापू पूरी दुनिया में लाखों लोगों को हिम्मत प्रदान करते हैं। 

गाँधीजी के सत्याग्रह के प्रयोग ने कई अफ़्रीकी देशों में उम्मीद की किरण जगाई। डॉक्टर किंग ने कहा था, ‘जब मैं पश्चिम अफ्रीका के घाना की यात्रा कर रहा था, तब प्रधानमंत्री न्क्रोमा ने मुझे बताया, ‘उन्होंने गाँधी को पढ़ा है और यह महसूस करते हैं क वहाँ भी उनके अहिंसात्मक प्रतिरोध को यहाँ अपनाया जा सकता है। हमें याद है कि दक्षिण अफ़्रीका में बस बॉयकॉट भी हुआ था।’

नेल्सन मंडेला ने गाँधी को  ‘पवित्र सिपाही’ कहा था और लिखा था कि उनके असहयोग की रणनीति और उनका यह कहना कि हम पर तभी कोई प्रभावी हो सकता है अगर हम शोषण करने वाले के साथ सहयोग करते हैं। उनके अहिंसात्मक आंदोलन ने हमारी शताब्दी में उपनिवेश विरोधी, नस्ल विरोधी आंदोलनों को मेरे देश समेत पूरी दुनिया में प्रेरणा दी।

नेल्सन मंडेला के लिए गाँधी भारतीय भी थे और दक्षिण अफ्रीकी भी। गाँधी इस बात से सहमत भी थे। गाँधी में उनके अंदर यह अद्भुत गुण था कि वह मानव समाज के सबसे विलक्षण अंतरिवरोधों के बीच में पुल का काम कर लेते थे। 

बग़ैर राष्ट्रवाद के अंतरराष्ट्रीयवादी बनना असंभव है। अंतरराष्ट्रीयवाद तभी सफल होता है जब राष्ट्रीयता एक सच्चाई बन जाती है, जब अलग-अलग देशों के लोग एक होकर काम करते हैं।


‘यंग इंडिया’ में 1925 में महात्मा गाँधी के छपे लेख का हिस्सा

यह उनका विचार था कि भारतीय राष्ट्रवाद कभी संकीर्ण और भेदभाव करने वाला नहीं है, बल्कि वह मानवता के लिए काम करता है। 

महात्मा गाँधी समाज के सभी वर्गों के विश्वास की मूर्ति थे। 1917 में गुजरात के अहमदाबाद में कपड़ा मिलों की एक बड़ी हड़ताल हुई। जब मिल मालिकों और कर्मचारियों के बीच संघर्ष बढ़ गया तो गाँधी ने दोनों के बीच समझौता कराया था।

गाँधी ने मजदूरों के अधिकार के लिए ‘मजूर महाजन संघ’ की स्थापना की थी। पहली दृष्टि में यह लग सकता है कि यह भी दूसरे संगठनों की तरह ही एक दूसरा संगठन था, लेकिन इसे देखने से पता चलता है कि महज एक छोटा कदम कितना प्रभावी हो सकता है। उन दिनों समाज के अभिजात्य वर्गों के लिए ‘महाजन’ शब्द का प्रयोग होता था। गाँधी जी ने मजदूरों को महाजन शब्द देकर सामाजिक संरचना को उलट दिया। इस भाषायी चुनाव से गाँधी ने श्रमिकों का स्वाभिमान बढ़ाने का काम किया था। गाँधी ने छोटी-छोटी चीजों से जनआंदोलनों को जोड़ा। आर्थिक आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय सशक्तीकरण के लिए कौन चरखा और खादी का प्रयोग कर सकता है!

चुटकी भर नमक से कौन जन आंदोलन पैदा कर सकता है! अंग्रेजों के समय में भारतीय नमक पर नए टैक्स सॉल्ट लॉ यानी नमक क़ानून बोझ बन गया था। मार्च 1930 में दांडी यात्रा कर गाँधी ने नमक क़ानून को चुनौती दी। अरब सागर के तट से उठाए गए मुट्ठी भर नमक ने ऐतिहासिक असहयोग आंदोलन को जन्म दिया। दुनिया में बहुत सारे जन आंदोलन हुए हैं, भारत में भी स्वतंत्रता संग्राम में भी कई धाराएँ थीं, लेकिन गाँधीवादी संघर्ष जिस एक चीज में अनूठा था वह था उनकी वजह से ऐसे आंदोलनों में ज़बरदस्त जन हिस्सेदारी। उन्होंने कभी भी कोई प्रशासनिक या चयनित पद नहीं लिया। सत्ता ने कभी उन्हें आकर्षित नहीं किया। 

उनके हिसाब से स्वतंत्रता विदेशी शासन की अनुपस्थिति नहीं थी, वह निजी सशक्तीकरण और  राजनीतिक स्वतंत्रता के बीच मजबूत कड़ी मजबूत देखते थे। वह एक ऐसी दुनिया का सपना देखते थे, जहाँ हर नागरिक सम्मानित और समृद्ध हो। जब विश्व अधिकारों की बात करता था, तब गाँधी ने कर्तव्यों की बात की थी।उन्होने 'यंग इंडिया' में लिखा, ‘अधिकारों की असली जननी कर्तव्य है। अगर हम सब अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें तो अधिकारों को पाने की जद्दोजहद नहीं रोगी।’

उन्होंने 'हरिजन' पत्रिका में लिखा, 'जो अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, अधिकार ख़ुद ब ख़ुद उनके पास चले आते हैं।' 

गाँधी ने ट्रस्टीशिप का सिद्धांत दिया था, जिसका अर्थ था, गरीबों के सामाजिक आर्थिक उन्नति या भलाई। उससे प्रभावित होकर हम स्वामित्व की भावना से ओतप्रोत हो सकते हैं। पृथ्वी के वारिस होने के नाते हम इस धरती पर रहने वाले सभी जीव जन्तुओं समेत इस धरती के कल्याण के लिए उत्तरदायी हैं। हमें गाँधी से बेहतर शिक्षक नहीं मिल सकता। मानवता में विश्वास करने वाले सभी लोगों को एकजुट करने से लेकर स्थायी विकास और आर्थिक आत्मनिर्भरता जैसी सभी समस्याओं का समाधान हमें गाँधी में मिलता है। 

भारत में हम कुछ कुछ करने की कोशिश करते हैं। भारत ग़रीबी मुक्त करने में दुनिया में सबसे अव्वल है, स्वच्छता के हमारे अभियान ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा है। भारत ने इंटरनेशनल सोलर अलायंस के जरिए अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल की दिशा में कदम बढ़ाया है। 

इंटरनेशनल सोलर अलायंस ने सौर ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल के लिए कई राष्ट्रों को एक मंच पर एकत्रित किया। हम इस पर विश्व के लिए और योगदान करना चाहते हैं। गाँधी को श्रद्धांजलि के तौर पर मेरा एक प्रस्ताव है, जिसे मैं आइंस्टाइन चैलेंज कहता हूं। हम गाँधी के बारे में अल्बर्ट आइन्सटाइन की एक मशहूर उक्ति जानते हैं, ‘आने वाली पीढ़ियाँ इस बात पर यकीन नहीं करेंगी कि हाड़ मांस का ऐसा व्यक्ति भी कभी इस धरती पर हुआ था।’

हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि आने वाली पीढियाँ गाँधी के विचारों को याद करें। लिहाज़ा, मैं समस्त चिंतकों, उद्यमियों और तकनीकी के क्षेत्र मे अग्रणी लोगों का आह्वान करता हूँ कि वे नूतन प्रयोगों से गाँधी के विचारों को आगे बढ़ाएँ। आइए, हम सब लोग कंधे से कंधा मिला कर इस दुनिया को समृद्ध और तक़लीफ़, हिंसा और नफ़रत से मुक्त करें। ऐसा तभी होगा जब महात्मा गाँधी के सपनों को हम पूरा करेंगे। उनका सपना उनके प्रिय गीत ‘वैष्णव तो’ में समाहित है, जिसका अर्थ है, असली मनुष्य वही है जो दूसरों की तक़लीफ़ को महसूस करता है, उसके कष्ट को दूर करता है और कभी भी अहंकार नहीं करता है।यह विश्व आपको नमन करता है।  

(न्यूयॉर्क टाइम्स से साभार)