पूर्वी लद्दाख के चुमार इलाक़े के सीमांत देमचोक गाँव में अपने सैनिक भेजकर चीन ने भारत को दो संदेश दिये हैं। बड़ा संदेश यह कि देमचोक से उसकी बुरी निगाह हटी नहीं है और दूसरा संदेश यह कि भारत दलाई लामा को ज़्यादा अहमियत नहीं दे।
यह वही देमचोक गांव है जहां सितम्बर 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरे के वक़्त ही चीनी सेना घुस गई थी और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शी जिनपिंग से इस बारे में शिकायत करने के एक सप्ताह बाद ही चीनी सेना वहां से पीछे गई थी। देमचोक में चीनी सैन्य घुसपैठ से भारतीय सेना को आगाह हो जाना चाहिये कि मौक़ा पाकर कभी भी चीनी सेना देमचोक पर फिर सैन्य हमला बोल सकती है।
चीन ने 2014 में भारत के एतराज़ के बाद कहा था कि देमचोक गांव चीन के स्वशासी तिब्बत क्षेत्र का इलाक़ा है लेकिन शी जिनपिंग के भारत दौरे के वक़्त दोनों देशों के बीच जिस तरह भाई भाई का रिश्ता बहाल करने की बातें की जाने लगी थीं उसकी वजह से चीन ने विशेष रणनीति और चाल के तहत भाई भाई के बीच प्रत्यक्ष तौर पर खटास पैदा करने से बचने की कोशिश की। अब जब कि भारत और चीन के बीच फिर से रिश्तों में तनातनी पैदा हो गई है, चीन अपनी हिचक तोड़ेगा। इसीलिये राजनयिक पर्यवेक्षक आगाह कर रहे हैं कि देमचोक गांव की रक्षा के लिये भारतीय सेना को हमेशा चौकस रहना होगा।
वास्तव में पूर्वी लद्दाख के घुसपैठ वाले सीमांत इलाक़ों से चीनी सेना के वापस जाने को लेकर गत साल मई से चल रही जद्दोजहद के बीच चीन भारतीय सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व को चिढ़ाने वाली हरकत करने से बाज नहीं आ रहा। दलाई लामा को चीन तोड़क नेता की संज्ञा दे चुका है और भारत उन्हें पूर्ण राजकीय सम्मान प्रदान करता है। भारत और चीन के बीच चल रही मौजूदा सैन्य तनातनी के बीच दलाई लामा को भारत ने बीच में डालकर चीन पर राजनयिक दबाव बढ़ाने की जो नई चाल चली है, उसी के जवाब में चीनी सेना ने देमचोक गांव में घुसपैठ कर दलाई लामा का जन्मदिन मनाने वाले लद्दाखियों को आँखें दिखाईं।
शी जिनपिंग और मोदी। (फ़ाइल फ़ोटो)
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दलाई लामा को शुभकामना संदेश पर चीन कोई सीधी प्रतिक्रिया देने से अब तक बचा है लेकिन माना जा रहा है कि चीनी सेना ने देमचोक में घुसकर भारत को चेतावनी दी है।
गत फ़रवरी माह में पैंगोंग झील के इलाक़ों से सेना के पीछे हटाने की सहमति के बाद चीनी सैन्य घुसपैठ वाले पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों गोगरा-हॉट स्प्रिंग से चीनी सेना की वापसी को लेकर चीन जिस तरह आनाकानी कर रहा है उसी के जवाब में भारत ने आपसी विवाद में तिब्बत और दलाई लामा के मसलों को बीच में डालकर चीन के पुराने घाव को फिर हरा करने की कोशिश की है।
भारत के इस क़दम से तिब्बत फिर एक ज्वलंत अंतरराष्ट्रीय मसला बन सकता है क्योंकि लम्बे अर्से बाद अमेरिका और यूरोप भी तिब्बत व दलाई लामा के मसले से पहले की तरह आँखें नहीं चुरा रहे हैं।
ग़ौरतलब है कि दलाई लामा से सार्वजनिक मेलजोल करने पर भारत सरकार अब तक बचने की कोशिश करती रही है लेकिन माना जा रहा है कि जिस तरह पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों से अपनी सेना पीछे हटाने को लेकर चीन टालमटोल कर रहा है उसी के जवाब में भारत ने तिब्बत और दलाई लामा के मसले को अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बनाने में अपना अहम योगदान दिया है। चीन के लिये शिन्च्यांग के उइगुर विद्रोही जहां पहले ही सिर दर्द बने हुए थे उनके साथ तिब्बत का भी जुड़ना चीन की परेशानी बढ़ाएगा।
चीनी सेना ने देमचोक गांव में छह जुलाई को अपने सैनिक भेजे। देमचोक गांव में कुल 31 घर हैं जहां 78 लद्दाखी रहते हैं। यही लद्दाखी लोग दलाई लामा का जन्मदिन मना रहे थे तब चीनी सैनिक कई वाहनों पर सवार होकर बड़े चीनी झंडे लेकर भारतीय इलाक़े में घुसे और वहां क़रीब आधे घंटे तक रहे।
हालांकि यह घटना छह जुलाई की है लेकिन इस पर सैन्य अधिकारियों द्वारा पर्दा डाले रखा गया। सवाल यही है कि आखिर चीनी सैनिक किस तरह भारतीय इलाक़े में इतने अंदर घुस सके? क्या इस इलाक़े की भारतीय सेना चौकसी नहीं करती है?
रोचक बात है कि छह जुलाई की सुबह ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दलाई लामा को फोन कर उनके 86वें जन्मदिवस पर बधाई और शुभकामनाएँ दी थीं जिसकी उन्होंने ख़ुद ट्वीट कर जानकारी दी थी।
हालाँकि भारतीय सैन्य हलकों में इस घुसपैठ को बहुत चिंताजनक नहीं माना गया है लेकिन सैन्य सूत्रों का कहना है कि चीनी सैनिक अक्सर भारतीय सेना को चिढ़ाने वाली इस तरह की हरकत करते रहते हैं। देमचोक इलाक़े में भी भारतीय सेना द्वारा की जा रही गश्ती पर चीनी सेना एतराज़ कर उन्हें गश्ती करने से रोकती रही है। इस मसले को भी भारत-चीन की सेनाओं के बीच चल रही बातचीत में शामिल किया गया है। चीन का दावा है कि देमचोक के इलाक़े में तिब्बती बौद्ध लोग ही रहते हैं इसलिये स्वाभाविक तौर पर यह तिब्बत यानी चीन का इलाक़ा है।
पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों से चीनी सेना के वापस जाने को लेकर भारत और चीन के बीच पिछली बार सैन्य कमांडरों की 11वें दौर की वार्ता अप्रैल में ही हुई थी। इसके बाद से दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के आला अधिकारियों का आपस में संवाद होता रहा है। लेकिन इस मसले पर पिछली बार औपचारिक वार्ता 26 जून को हुई थी और उसमें सहमति बनी थी कि सैन्य कमांडरों की 12वें दौर की वार्ता जल्द आयोजित होगी। पर आज तक भारतीय विदेश मंत्रालय यह कहने की स्थिति में नहीं है कि सैन्य कमांडरों की 12वीं बैठक कब होगी।
दोनों देशों के बीच सैन्य तनातनी लम्बी खिंचने के बीच चीन द्वारा अपने सैनिकों को देमचोक भेजकर आँखें दिखाना निश्चय ही भड़काने वाली कार्रवाई कही जा सकती है। 26 जून को भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के बीच संयुक्त सचिव स्तर की वार्ता (डब्ल्यू एमसीसी) में भी दोनों पक्षों ने यह वादा किया था कि मसला हल होने तक कोई भी पक्ष उकसाने वाली कार्रवाई नहीं करेगा लेकिन चीन ने एक बार फिर समझौते की भावना को तोड़ा है।