राहुल गांधी ‘सदैव अटल’ पहुंचे तो हंगामा बरप गया। 2018 में दिवंगत हुए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को समाधिस्थल जाकर श्रद्धांजलि देने में कांग्रेस को चार साल लग गये, इस पर तो सवाल उठ सकते हैं। लेकिन, श्रद्धांजलि देने पर सवाल उठे तो यह चिंताजनक बात है।
बीजेपी नेता-प्रवक्ता कह रहे हैं कि यह ‘दोगलापन’ है कि एक तरफ़ राहुल गांधी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि दे रहे हैं और दूसरी तरफ़ उनकी पार्टी के नेता पूर्व प्रधानमंत्री पर सवाल दाग रहे हैं, उन्हें नीचा दिखा रहे हैं। लिहाजा राहुल गांधी और कांग्रेस को माफ़ी मांगनी चाहिए और अपने नेताओं को पार्टी से निष्कासित कर देना चाहिए। काश! ऐसी परंपरा होती कि दिवंगत नेता पर कीचड़ न उछाले जाएँ, लेकिन ऐसी परंपरा है नहीं। सिर्फ़ पंडित जवाहरलाल नेहरू का उदाहरण लें।
चाहे जयंती हो या पुण्यतिथि- बीजेपी के कौन से ऐसे नेता हैं जो उन पर उंगली नहीं उठाते? यह बात अलग है कि आज के बीजेपी नेताओं ने पंडित जवाहरलाल नेहरू की समाधि पर फूल चढ़ाना छोड़ दिया है। मगर, ट्वीट करके श्रद्धांजलि देने की परंपरा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जारी रखा है। क्या बीजेपी के नेता-प्रवक्ता अपने लिए इस आचरण के लिए ‘दोगलापन’का इस्तेमाल करना चाहेंगे?
वाजपेयी का भी गांधी-नेहरू से था अनुराग
अटल बिहारी वाजपेयी ने राजीव गांधी की मौत के बाद यह रहस्योद्घाटन किया था कि “वे जिन्दा हैं तो राजीव गांधी के कारण जिन्दा हैं।“ उन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी ने 29 मई 1964 में पंडित जवाहर लाल नेहरू को संसद में किन शब्दों में श्रद्धांजलि दी थी गौर करें- “आज एक सपना ख़त्म हो गया है, एक गीत खामोश हो गया है, एक लौ हमेशा के लिए बुझ गई है। यह एक ऐसा सपना था, जिसमें भुखमरी, भय, डर नहीं था, यह ऐसा गीत था जिसमें गीता की गूंज थी तो गुलाब की महक थी।”
पंडित नेहरू और राजीव गांधी पर जब बीजेपी के नेता हमला बोलते हैं तो क्या वे अटल बिहारी वाजपेयी की भावना का सम्मान कर रहे होते हैं?
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिवंगत राजीव गांधी पर जिन शब्दों में हमला बोला था क्या उसे भुलाया जा सकता है?
पीएम मोदी ने कहा था- “आपके (राहुल गांधी) पिताजी को आपके राज दरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नम्बर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया। नामदार यह अहंकार आपको खा जाएगा। यह देश ग़लतियां माफ करता है, मगर धोखेबाजी को कभी माफ नहीं करता।”
आडवाणी तो जिन्ना की मजार पर गये थे!
बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी भी कभी पाकिस्तान के दिवंगत प्रधानमंत्री मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर गये थे। उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। फूल चढ़ाए थे। दो शब्द कहने की परंपरा में मोहम्मद अली जिन्ना को ‘धर्मनिरपेक्ष’ बताया था। बीजेपी इस घटना पर हमेशा चुप रही है। विरोधी दलों ने कभी न बीजेपी से इस घटना पर माफी मांगने को कहा और न ही बीजेपी ने इस वैचारिक यू-टर्न पर कभी माफ़ी मांगी।
जब पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री की मजार पर पहुँच कर बीजेपी नेता की ओर से श्रद्धांजलि दी जा सकती है तो दिल्ली में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री के समाधिस्थल पर पहुँचकर विपक्ष का कोई नेता श्रद्धांजलि क्यों नहीं दे सकता?
यह सही है कि विवाद श्रद्धांजलि देने को लेकर नहीं है। विवाद इस बात पर है कि श्रद्धांजलि देते हुए या उसके बाद खुद नेता द्वारा या उनके समर्थकों द्वारा ऐसी बातें क्यों कही जाती हैं जिससे श्रद्धांजलि बेमतलब हो जाए। लेकिन, जब ऐसे विवाद उठेंगे तो एक घटना तक सीमित नहीं रह सकते।
राहुल ने नहीं बनने दी ग़लत परंपरा
राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं। इस संदर्भ में वे सबको गले लगाने की नीति पर चलने का दावा रख रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने दिल्ली स्थित सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के समाधिस्थलों पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देने की ठानी। जाहिर है इसमें गैर कांग्रेसी पूर्व प्रधानमंत्री भी रहे। हालाँकि 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती थी और उस दिन समाधिस्थल पर नहीं पहुंच पाने के कारण अगले दिन यह कार्यक्रम रखा गया।
राहुल गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देकर एक गलत परंपरा को स्थापित होने से रोका है जिसमें अब तक कांग्रेस का कोई शीर्ष नेता ‘सदैव अटल’ नहीं पहुंचा था। इसका स्वागत होना चाहिए।
मगर, राजनीतिक रूप से बीजेपी राहुल गांधी के इस कदम से डर गयी लगती है। इसका कारण है कि खुद बीजेपी अटल-आडवाणी युग से अलग राजनीतिक दल के रूप में प्रतिष्ठित होती दिख रही है। अगर राहुल राजनीतिक रूप से यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि वर्तमान बीजेपी पहले वाली बीजेपी नहीं रही, तो इससे बीजेपी का चिंतित होना लाजिमी है।
राहुल गांधी जब कभी मंदिर जाते हैं तब भी बीजेपी परेशान दिखती है। इसकी वजह यह है कि हिन्दुत्व का जो खेमा भारतीय सियासत में गढ़ा गया है उससे अलग राहुल गांधी की जगह बना दी गयी है। इस जगह पर स्थिर रहना बीजेपी को उपयुक्त लगता है। जैसे ही राहुल इस खाँचे से अलग होने की कोशिश करते हैं उन्हें वापस वहीं भेजने के लिए राजनीतिक प्रहार शुरू हो जाता है।
बात तब भी समझ में नहीं आती जब ‘घर वापसी’ अभियान चलाने वाली बीजेपी और उसके नेता सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के हिन्दू होने पर ही सवाल उठा रहे होते हैं। अगर कोई अपनी मर्जी से कह रहा है कि वह हिन्दू है तो इसे स्वीकार करने के बजाए ‘वह हिन्दू नहीं है’ साबित करने में जुट जाने के पीछे भी वजह सियासत है। यह सियासत गांधी-नेहरू परिवार का खौफ है जो बीजेपी पर हमेशा देखा जा सकता है।
राहुल गांधी ने विपक्ष की सियासत में एक बड़ा वैक्यूम भरने की कोशिश की है। इसमें उनकी भारत जोड़ो यात्रा किसी हद तक सफल होती दिख रही है। सोच के माध्यम से भी राहुल गांधी ने बीजेपी पर बड़ा हमला किया है। इसी का विस्तार नज़र आता है जब अटल बिहारी वाजपेयी के समाधिस्थल में श्रद्धांजलि देते नज़र आते हैं राहुल गांधी। बीजेपी की तीखी प्रतिक्रिया बताती है कि सियासी निशाना सही जगह लगा है।