मोदी पीड़ित जमात की एकता में ही कांग्रेस का भविष्य! 

08:09 am Mar 14, 2022 | अखिलेश अखिल

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस में कोहराम है ,मायूसी है और भविष्य की चिंता भी। हालांकि पिछले कई सालों से कांग्रेस लगातार चुनाव में हार रही है लेकिन पांच राज्य के हालिया चुनाव ने पार्टी को तोड़ दिया है, अस्तित्व पर सवाल उठा दिया है। कांग्रेस के भीतर कितनी व्याकुलता है इसकी बानगी जल्द बुलाई गई कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक है। 

इस बैठक के परिणाम चाहे जो भी हो इतना तो साफ़ है कि बीजेपी और पीएम मोदी से सिर्फ राहुल -प्रियंका लड़ नहीं सकते। बीजेपी और पीएम मोदी से अगर लड़ भी लिया जाए तो संघ परिवार से लड़ना मौजूदा कांग्रेस के बूते की बात नहीं।

दरअसल बीजेपी को खाद पानी तो संघ से मिलता है जबकि अब तक कांग्रेस को खाद पानी गाँधी परिवार से ही मिलता रहा है। लेकिन इस चुनाव ने बता दिया है कि गांधी परिवार भी अब वोट उगाहने के लायक नहीं रहा। 

निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए यह संक्रमण काल है। एक तरफ जहां बीजेपी अमृत काल मना रहा है, कांग्रेस रुदाली काल से गुजर रही है। हर बार चुनाव हरने के बाद कांग्रेस के लोग कहते हैं कि हम लौटेंगे। लेकिन सच यही है कि कांग्रेस लौटने की बजाये लगातार अपनी जमीन और जनाधार खोती  जा रही है। यह कांग्रेस की लगातार हार ही है कि बीजेपी के अदना नेता भी पार्टी पर तंज कस्ते हैं और राहुल -प्रियंका की राजनीति को हंसी में उड़ा जाते हैं। इसमें बीजेपी के उन नेताओं की गलती नहीं ,कांग्रेस को खुद के बारे में आत्ममंथन करने की जरूरत है। 

          

दरअसल अब पहले वाली राजनीति रही नहीं। क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस को कमजोर किया लेकिन वही क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी के लिए वरदान बनी। आज बीजेपी का जो मुकाम है उसमे क्षेत्रीय पार्टियों की बड़ी भूमिका है। क्षेत्रीय पार्टियों को कांग्रेस अपना शत्रु मानती रही जबकि उसी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर बीजेपी अपना मकसद पूरा करती रही। 

पूर्वोत्तर में आज बीजेपी की जो जमीन दिखाई पड़ रही है वह सब क्षेत्रीय पार्टियों की बदौलत है। बीजेपी पहले क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे आगे बढ़ती है और फिर बाद में उसे खा जाती है। चाणक्य की नीति में इसे कूटनीति कहा जाता है।

एक बात और। पहले पूर्ण बहुमत की सरकार कांग्रेस भी बनाती थी। लेकिन अब संभव नहीं। इसकी सम्भावना 90 के दशक से ही ख़त्म हो गई। अटल बिहारी वाजपयी के नेतृत्व में तो तीन बार सरकार बनी जो साझी सरकार ही थी। यह तो मोदी का कमाल है कि या फिर बीजेपी के एक अलग रूप का अवतार कि पिछले दो चुनाव से केंद्र में बीजेपी को बहुमत मिल रही है। लेकिन आगे ऐसा ही हो, संभव नहीं। 

        

आज के माहौल में अब कांग्रेस के बारे में दो सवाल उठ रहे हैं। पहला सवाल तो यह है कि क्या बीजेपी अपने कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के तहत उसे किनारा लगाने में लगी है ?और दूसरा क्या कांग्रेस के विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी सामने खड़ी होती जा रही है ? इसका जबाब हाँ में भी हो सकता है और ना में भी। हाँ, में इसलिए कि बीजेपी की विस्तार नीति लगातार जारी है और सफल भी। लेकिन दूसरा अहम् सच तो ये भी है कि देश की जनता को अगर यही पसंद है तो आप क्या करेंगे। अगर जनता पाखंड में ही खुश है तो आप कुछ नहीं कर सकते। सच्ची बातें कड़वी लगती है लेकिन झूठ, पाखंड और धर्म के नाम पर खेल अगर जनता को आकर्षित करते हैं तो कोई क्या करेगा? यह भी सच है कि इस तरह के खेल भी ज्यादा समय नहीं चलते लेकिन यह जल्दी ख़त्म भी तो नहीं होता। 

और जो दूसरा सवाल है कि क्या आप पार्टी कांग्रेस का विकल्प होगी ,यह शायद अभी संभव नहीं। यह बात और है कि आप का ग्राफ लगातार आगे बढ़ रहा है और आगे बढ़ेगा। लेकिन यह कांग्रेस का विकल्प होगा ठीक नहीं। इसके लिए अभी इसे कई साल आग में झुलसने होंगे। संभव है कि कांग्रेस का विकल्प बनने से पहले ही इसकी मौत बीजेपी के हाथ ही न हो जाए। कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को आप से परेशानी है। आप की राह में अभी टीएमसी है तो केसीआर भी। स्टालिन हैं तो बीजद भी। शिवसेना है तो एनसीपी और जदयू भी। बसपा और सपा को भी इसमें शामिल कर सकते हैं। 

आगामी विधानसभा चुनाव      

दो साल के बाद लोक सभा चुनाव है। पांच राज्यों में कांग्रेस की हार जरूर हुई है लेकिन अगर पार्टी को नए सिरे से तैयार किया गया तो आने वाले एक साल में दस से ज्यादा राज्यों में चुनाव है। इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य हैं, जहां बीजेपी और कांग्रेस का सीधा मुकाबला होना है। ये राज्य कांग्रेस और बीजेपी के लिए चुनौती भरे हैं। दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। 

जहां तक आपके विकल्प बनने का सवाल है इस पर कहा जा सकता है कि आप के लिए यह रास्ता आसान नहीं होगा। वजह है कि  गैर-भाजपा गठबंधन का कोई ढांचा तय नहीं है। ममता और केसीआर विपक्ष की ओर से मुख्य खिलाड़ी बनने का दावा ठोंके हुए हैं।  विपक्षी खेमे में अभी भी एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस है और वह अपना रुतबा यूं ही नहीं छोड़ देगी।

आज भी कांग्रेस के पास ही 20 फिसदी के आसपास वोट बैंक है। आम आदमी पार्टी राज्य के लिहाज से महज 20 लोकसभा सीटों पर असरदार होगी। ममता के पास 42 सीटों का असर होगा। यहां तक कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ (कांग्रेसनीत राज्य) में भी कुल मिलाकर 36 सीटें हैं। 

आप अभी तक विधानसभा के प्रदर्शनों को लोकसभा जीतों में बदलने में नाकाम रही है। दिल्ली में अभी तक यह एक भी सीट नहीं जीत पाई है। पंजाब में भी 2014 के चार से गिरकर यह 2019 में एक पर आ गया। गुजरात विधानसभा में प्रदर्शन पर निगाह रखनी होगी।  वह भी तब अगर केजरीवाल गुजरात के दोतरफा मुकाबले को त्रिकोणीय बना पाएं। इस राज्य में दो दशकों से भाजपा एक भी विस या लोस चुनाव नहीं हारी है। कांग्रेस ने 2017 में मुकाबला कड़ा किया था पर 2019 में भाजपा कि किल में यह खरोंच तक नहीं लगा पाई थी। 

इसके साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले जिन 10 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, इनमें से 121 की लोकसभा सीटों पर भाजपा काबिज है। इन सभी राज्यों में भाजपा के मुकाबिल सिर्फ कांग्रेस है। गुजरात, हिमाचल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 95 सीटें हैं। यहां सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। इन राज्यों मे अन्य क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी तकरीबन नगण्य है। ऐसे में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब होगा तो भाजपा को नुक्सान पहुंचा सकने वाली अन्य ताकत दिखेगी भी नहीं।  

पंजाब, असम, कर्नाटक, केरल, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में कांग्रेस निर्णायक भूमिका अदा कर सकती है। इन राज्यों में लोस की 155 सीटें हैं।

कांग्रेस से अलग कोई भी गठबंधन भाजपा विरोधी मतों के बिखराव का सबब बनेगा। याद रखिए, 2019 में कांग्रेस ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 196 पर सेकेंड आई थी। भले ही जीती 52 हो। इसलिए, मोदी का विकल्प बनने की केजरीवाल की महत्वाकांक्षा, कम से कम 2024 के लिए दूर की कौड़ी लगती है।

जरुरत है कि कांग्रेस सभी तरह की जमात की राजनीतिक पार्टियों को एक मंच पर लाने का काम जरूर करे लेकिन उसका नेतृत्व का जिद न पाले। संभव है कि ममता या  कोई और नेता विपक्षी एकता को बेहतर विकल्प देने में सफल हो जाए। कांग्रेस की इसी में भलाई है। और समय के मुताबिक इसी में उसकी ताकत भी है। नेतृत्व के नाम पर आपसी लड़ाई बीजेपी को मजबूती देगी और कांग्रेस की कमजोरी सामने लाएगी।

कांग्रेस को  उन सभी मोदी पीड़ित जमातों को एक मंच पर लाने की जरूरत है जिसकी साझी ताकत से बीजेपी को चुनौती दी जा सकती है और कांग्रेस खुद भी मजबूती पा  सकती है।  अगर कांग्रेस ऐसा करती है और कांग्रेस समेत सभी मोदी पीड़ित पार्टियां मिलकर किसी गैर कोंग्रेसी नेता के  नेतृत्व में  एकजुट होकर बीजेपी को चुनौती देती है तो संभव है कि कांग्रेस का इकबाल लौट आये और देश को एक बेहतर विकल्प मिले। लोकतंत्र में विपक्ष का बेहतर और मजबूत होना सबसे ज्यादा जरुरी है। आज कांग्रेस को इसी राह पर चलने की जरूरत है।