नि:संदेह 78 वर्षीय डोनाल्ड ट्रम्प ने इतिहास रच दिया है। चार साल के अंतराल (2020-24) के बाद अभूतपूर्व शान के साथ राष्ट्रपति पद पर वापसी की है। इसके साथ ही अमेरिकी संसद के दोनों सदनों : प्रतिनिधि सभा (निचला सदन यानी लोकसभा) और सीनेट (यानी राज्यसभा) के चुनावों में भी जीत हासिल की है। संयुक्त राज्य अमेरिका के दोनों सत्ता प्रतिष्ठानों (राष्ट्रपति और संसद) पर ट्रम्प के नेतृत्व में देश की सबसे पुरानी रिपब्लिकन पार्टी ने अपनी जीत का परचम लहरा दिया है। ट्रम्प ने बूढ़ी पार्टी में नई जान फूंक दी है। निश्चित ही उपराष्ट्रपति बनने जा रहे सहयोगी जे. डी. वेन्स ने भी ट्रम्प की जीत में प्रभावशाली भूमिका निभाई है। उनकी भारत वंशी पत्नी उषा वेन्स का भी परोक्ष योगदान रहा है। वे पहले डेमोक्रेट की सक्रिय सदस्या थीं। शादी के बाद रिपब्लिकन समर्थक बनी हैं।
दूसरी ओर डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार व निवर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी ज़बरदस्त टक्कर दी। वे पहली भारत वंशी महिला हैं जिन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा। हालाँकि, इससे पहले 2016 के चुनावों में डेमोक्रेट श्वेत उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन भी अपनी क़िस्मत आज़मा चुकी हैं, लेकिन ट्रम्प से हार गई थीं। इसका निष्कर्ष यह निकला कि विश्व का सबसे शक्तिशाली व विकसित राष्ट्र अमेरिका किसी महिला को राष्ट्रपति के पद पर बैठाने के लिए अभी तैयार नहीं है। क्लिंटन की हार के बाद टिप्पणियां थीं कि अमेरिकी समाज मूलतः पुरुष सत्तावादी है। वह पुरुष वर्चस्व और पितृसत्ता को पसंद करता है। इसलिए क्लिंटन रहे या हैरिस, किसी भी महिला का शिखर रोहण लगभग नामुमकिन है।
इसी पिछले महीने के मेरे बोस्टन अल्प प्रवास के दौरान ऐसी शंकाएं व्यक्त की गई थीं। संयोग से 2016 और 24 में भी मैं अमेरिका में रहा हूं। अकादमिक क्षेत्र की महिलाओं ने कमला हैरिस को लेकर इन शंकाओं को साझा किया था। वैसे, समझा जा रहा था कि हैरिस ‘पॉपुलर वोट’ में तो निकल जाएँगी, लेकिन सात स्विंग स्टेट्स के वोटों को जीत नहीं सकेंगी। इलेक्टोरल वोट में हार सकती हैं। पर, वे दोनों प्रकार की वोट व्यवस्था -पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल वोट, दोनों में ट्रम्प से पराजित रही हैं। इसका एक अर्थ यह भी रहा कि अमेरिका का बहुसंख्यक श्वेत समाज मिश्रित नस्ल की भारतवंशी महिला को राष्ट्रपति के रूप में देखने के लिए अभी तैयार नहीं हुआ है। प्रवास के दौरान देखा था कि प्रवासी भारतीय विभाजित है, एक बड़ा हिस्सा कमला समर्थक भी है। लेकिन, ट्रम्प इस क्षेत्र में भी एक कदम आगे दिखाई दे रहे हैं। यह उनकी प्रचार पद्धति की ठोस उपलब्धि है।
निश्चित ही 2024 का चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव इतिहास में विशेष रूप से उल्लेखनीय रहेगा:
1. डेमोक्रेट पार्टी के उम्मीदवार व निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन से चुनाव हारने के तुरंत बाद ट्रम्प ने संकल्प ले लिया था वापसी का। इसे सिद्ध करके दिखला भी दिया;
2. पिछले चार सालों से ट्रम्प अदालतों का सामना करते आ रहे हैं और साथ ही वे नौकरशाही को चुनौती व धमकी भी देते आ रहे हैं, फिर भी जीते;
3. ट्रम्प को चरम दक्षिणपंथी, स्त्री विरोधी, गर्भपात विरोधी और सुपर रिच समर्थक माना जाता है, फिर भी पॉपुलर वोट में जीत दर्ज़ की है;
4. अमेरिका को ग्रेट बनाएंगे और अवैध आप्रवासियों को देश से बाहर करेंगे, इस नारे ने चमत्कार किया;
5. ट्रम्प ने उद्योगपति एलन मस्क की खुलकर तारीफ़ की और उन्हें उभरता सितारा कहा;
6. ट्रम्प ने इसराइली राष्ट्रपति नेतन्याहु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी तारीफ़ की;
7. ट्रम्प ने हैरिस को कम्युनिस्ट व समाजवादी कहा और स्त्री विरोधी गालियां दीं;
8. ट्रम्प को हिटलरवादी -फासीवादी भी कहा गया;
9. ट्रम्प का प्रचार ज़ादू सभी वर्गों के मतदाताओं पर छाया रहा और वे अंत तक आक्रामक मुद्रा में रहे;
9. ट्रम्प पर दो बार जानलेवा हमलों ने भी करिश्मा दिखाया और हमदर्दी की बारीक लकीर खींची;
10. नस्लवादी श्वेत कचरा वर्ग (वाइट ट्रैश) ट्रम्प के साथ चट्टान की भांति खड़ा रहा;
11. आर्थिक मोर्चे पर बाइडन -प्रशासन की विफलताओं ने भी कमला हैरिस के अवसरों को प्रभावित किया और ट्रम्प ने सब्ज़बाग़ दिखा कर मध्य और निचले बर्गों के दिल-दिमाग़ पर कब्ज़ा कर लिया, जिसका प्रभाव पॉपुलर वोट में दिखाई देता है, और कांटे का मुक़ाबला न रह कर, इसे ट्रम्प की प्रभावशाली विजय के रूप में तो देखा जायेगा।
ट्रम्प की जीत का प्रभाव और सन्देश विश्वभर में जायेगा। वज़ह यह है कि कमला हैरिस बनाम ट्रम्प जंग को ‘उदारवादी लोकतंत्र बनाम निरंकुश +रूढ़िवादी लोकतंत्र‘ के रूप में भी देखा जा रहा था।
माना जा रहा था, हैरिस उदारवादी लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं, और ट्रम्प निर्वाचित निरंकुश प्रतिगामी लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि, इतिहास में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। लेकिन, सन्देश तो यही गूंजेगा कि विश्व में अनुदार व चरम दक्षिणपंथी लोकतंत्र लौट रहा है। फ्रांस, इटली, जर्मनी आदि देशों में चरम दक्षिणपंथी सत्ता में हैं। इसके साथ ही ट्रम्प की जीत से कॉर्पोरेट पूंजीवाद और अधिक मज़बूत होगा। उन्होंने तो अपने प्रचार में खुल कर कहा भी था कि वे सुपर रिच और कॉर्पोरेटपतियों पर 20 प्रतिशत से काफी नीचे टैक्स वसूलने के पक्ष में हैं, जबकि कमला हैरिस इस वर्ग से ज़्यादा से ज़्यादा टैक्स लेने के पक्ष में रही हैं। वे चाहती थीं कि निम्न व मध्य वर्ग पर कर-भार कम रहे और आवास निर्माण में सहायता दी जाए। वे ओबामा केयर, चाइल्ड केयर की भी समर्थक थीं। वे यह भी चाहती थीं कि ‘गन पॉलिसी‘ में परिवर्तन किया जाए और जनता को अंधाधुंध फायरिंग से बचाया जाए। ट्रम्प किसी भी तरह की राहत के समर्थक नहीं हैं। वे गन पॉलिसी को बनाये रखना चाहते हैं। उन्हें जलवायु परिवर्तन की चिंता नहीं है।
परमाणु नीति संधि को लेकर वे फिर से ईरान से बात करना चाहेंगे, इसमें गहरा संदेह है। वे घोषित इसराइल समर्थक और ईरान विरोधी हैं। उनके पुनः राष्ट्रपति बनने से ग़ज़ा -इसराइल जंग कितनी प्रभावित होगी, मध्य-पूर्व में शांति क़ायम होगी, अभी कहना मुश्किल है। लेकिन, ट्रम्प के पूर्व कार्यकाल (2016 -20) के मिज़ाज़ को देखते हुए फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि वे ‘इस्लामिक फोबिया’ को पुनर्जीवित करने का प्रयास करेंगे। पाठकों को याद होगा, मुस्लिम इमिग्रेंट्स के बारे में वे काफी सख्त टिप्पणियां कर चुके हैं। इस बार उनके रुख में बुनियादी बदलाव होगा, इसके आसार कम दिखाई देते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प की कोशिश रहेगी कि शेष विश्व में भी चरम दक्षिणपंथ और मुक्त अर्थ व्यवस्था (लेस्सेस फ्रेयर) का राज क़ायम हो। बेशक, इस दृष्टि से भारत भी अपवाद नहीं है। अब मोदी-भक्तों को अमेरिका और भारत में दोहराने का मौक़ा मिल जायेगा: अब की बार फिर ट्रम्प सरकार!