‘अगर आधी आबादी से अगला पीएम चुना जाय तो अच्छा हो’, अखिलेश यादव ने कहा। देश के कई प्रमुख मीडिया मंचों पर दिल की बात जुबाँ पर लाते हुए अखिलेश ने धमाका कर दिया। फिर कहा ‘अगला पीएम गठबंधन देगा और वह यूपी से होगा।’ संकेतों में सबकुछ साफ़ करते हुए अखिलेश ने वह सब कह दिया जो मायावती सुनने को प्रतीक्षारत थीं। दो चरणों की वोटिंग के ठीक पहले मायावती और अखिलेश ने अपने बयानों से न सिर्फ़ अपने समर्थकों में नयी ऊर्जा भर दी है वरन बीजेपी और तीसरे-दूसरे मोर्चे वालों को भी साफ़ संदेश दे दिया है।
मायावती आम्बेडकर नगर की सभा में इशारा दे ही चुकी हैं कि इस सीट पर उनके लोग तैयार रहें, यहाँ उप-चुनाव की नौबत आ सकती है। यह सब कुछ बीते दो-तीन दिनों में घटा। हुआ यूँ कि प्रतापगढ़ की जनसभा में मोदी जी ने मायावती जी के लिए एक राजनैतिक फ़िलर छोड़ा। उन्होंने कहा कि मायावती जी, अखिलेश से होशियार रहें क्योंकि वह कांग्रेस से मिला हुआ है। दरअसल, मोदी जी भविष्य की संभावनाओं पर काम कर रहे थे। एक दिन पहले ही वह एक हज़ार करोड़ की मदद लेकर ओडीशा के मुख्यमंत्री के साथ फ़ोनी तूफ़ान से हुए नुक़सान का तख़मीना लगाने के नाम पर नवीन पटनायक के साथ साझा गगन विहार कर चुके थे।
मोदी जी की टीम 23 मई को आने वाले संभावित नतीजों में बहुमत से क़रीब 50 सीटों की कमी की स्थिति का सामना करने की तैयारी में जुट गई है। जगन मोहन रेड्डी, केसीआर, नवीन पटनायक और मायावती उनके राडार पर हैं।
मोदीजी छठे और सातवें राउंड में यूपी की सीटों में गठबंधन की मज़बूत स्थिति से भी चिंतित रहे होंगे, वह प्रयास कर रहे थे कि मायावती जी और अखिलेश के समर्थकों में भ्रम फैले वरना बीजेपी के लिए ये राउंड बहुत विपरीत परिणाम दे सकते हैं।
माया-अखिलेश का परिपक्व व्यवहार
मायावती जी और अखिलेश इधर काफ़ी परिपक्व व्यवहार कर रहे हैं। मायावती जी ने मोदी जी के प्रयास की हवा निकालते हुए तुरंत प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और मोदी जी को फ़ाश कर दिया। उन्होंने साफ़ कहा कि वह अपने मंसूबों में सफल नहीं होंगे। मोदी जी की चाल की काट में इस चुनाव प्रचार में पहली बार उन्होंने अमेठी-रायबरेली में गठबंधन के समर्थक मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की अपील कर डाली। कांग्रेस को संजीवनी मिली और अखिलेश का विश्वास पुख्ता हुआ कि इस बार मायावती जी को ग़लतफ़हमी का शिकार बनाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
दरअसल, बीजेपी के रणनीतिकारों की समझ में देश में अंदर-अंदर शुरू हो रहे दलित-पिछड़े-मुसलिम गठजोड़ की राजनैतिक गर्मी का ठीक-ठीक अहसास नहीं है। मायावती जी और अखिलेश या बिहार के गठबंधन के भागीदार उस आँच को राजनैतिक रूप से नेतृत्व भर दे रहे हैं जो नीचे-नीचे खदबदा रही है। यह देशव्यापी सक्रियता है। पिछड़े और दलित नेतृत्व को एक मंच पर आना ही पड़ेगा वरन वे वजूद खो बैठेंगे। उन्हें वे सवाल भी उठाने ही पड़ेंगे जो नीचे से उभर कर आ रहे हैं। बहुत संभाल-संभाल कर पर्देदारी से बोलने वाले अखिलेश ने कौशाम्बी में राजा भैया को जिस तरह और जिस तर्ज़ पर ललकारा उसमें आने वाले कल की बानगी है।
जातिगत समीकरण
इस खदबदाहट में भविष्य का राजनैतिक पुनर्गठन छुपा है। भविष्य में दलित उत्पीड़न और मंडल कमीशन के तहत पिछड़ों को विभिन्न नौकरियों और शिक्षा केंद्रों में दाखिले के सवाल केन्द्रित होता जाएगा। सवर्ण समुदाय जितना बीजेपी में शरण खोजेगा उतना ही पिछड़े और दलित समुदायों में अपनी पार्टियों की ओर जाने के रुझान घनीभूत होंगे। मुसलिम समाज बैलेंसिंग एक्ट में रहेगा। वह बीजेपी को रोकने के लिए स्वाभाविक तौर पर गठबंधन जैसी कवायदों के साथ खड़ा मिलेगा। केंद्रीय दलों, मसलन, कांग्रेस के लिए भी चुनौती बहुत कड़ी होती जाने वाली है। या तो वह गठबंधनों के पीछे चलना स्वीकार करेगी (जैसे कर्नाटक) या मिट जाने का ख़तरा उठाएगी।
घटनाक्रम के इस अप्रत्याशित बदलाव का नतीजा यह निकला है कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने भदोही के विवादित प्रत्याशी रमेश बिंद के समर्थन में दूसरी सभा, जो हंडिया में प्रायोजित थी, रद्द कर दी है। रमेश बिंद का एक पुराना वीडियो वायरल है जिसमें वह ब्राह्मणों को पीटने की विधियों का बखान करते पाए गए हैं।
2019 सिर्फ़ एक पड़ाव है। अखिलेश प्रतीक्षा कर रहे होंगे कि किसी दिन मायावती जो 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के बारे में कुछ वैसा ही बोल दें जैसा ख़ुद वह उनके दिल्ली के दावे के पक्ष में बोल चुके हैं। यह कभी भी हो सकता है। डिंपल यादव ने कन्नौज में मंच पर मायावती जी का पैर छूकर उनकी पार्टी द्वारा दो दशक से ज़्यादा पहले लखनऊ के सरकारी गेस्ट हाउस में पैदा हुई राजनैतिक कड़वाहट से हमेशा-हमेशा के लिए शक़-शुबहे दूर कर दिए हैं।
यह लंबी लकीर है, इस पर नज़र बनाये रखिये।