झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के लिए अगला सप्ताह बहुत भारी साबित हो सकता है। ऐसा आरोप है कि बीजेपी ऑपरेशन लोटस के तहत राज्य में बहुत पहले से सरकार को अस्थिर करने की रणनीति पर काम कर रही है। ऑपरेशन लोटस के तहत ही कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की रणनीति चर्चा में थी मगर वह कांग्रेस के तीन विधायकों के पश्चिम बंगाल में नकदी के साथ गिरफ्तार होने के साथ उस वक्त नाकाम हो गयी थी।
फिलहाल मौजूदा सरकार राजनैतिक रूप से तो उस चक्रव्यूह से बाहर नजर आ रही है लेकिन जल्द ही निर्वाचन आयोग को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला लेना है जिससे उनका विधायक का पद जा सकता है और उनके चुनाव लड़ने पर कुछ समय के लिए पाबंदी लग सकती है।
चुनाव आयोग में मामला
सोरेन पर मुख्यमंत्री रहते हुए अपने नाम खनन की लीज लेने का मामला चल रहा था। सोरेन को कई बार अपना पक्ष रखने का समय देने के बाद चुनाव आयोग इस मामले की सुनवाई पूरी कर चुका है। ऐसा माना जा रहा है कि विधायकी जाने और चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाये जाने की स्थिति में उनके पास इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।
पिता व भाई पर भी हैं मामले
यही नहीं सोरेन के खिलाफ शैल कंपनी चलाने का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इस बारे में भी अगले सप्ताह फैसला आने की संभावना जतायी जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन को कोयला मंत्री रहते हुए आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में लोकपाल में मुकदमे का सामना करना है। हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन पर भी खनन लीज का मामला चुनाव आयोग में चल रहा है।
इस परिस्थिति में राज्य सरकार में शामिल मुख्य दलों यानी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस की 20 अगस्त को बैठक बुलायी गयी है। कांग्रेस ने अपने विधायकों के राज्य से बाहर जाने पर रोक लगा दी है। कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने विधायकों से कहा है कि वे रांची से अधिक दूर न जाएं और ऐसी जगह रहें जहां से चार-पांच घंटे में राजधानी पहुंच जाएं।
इधर, झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रबींद्र नाथ महतो ने 20 अगस्त से शुरू होने वाले कनाडा दौरे को रद्द कर दिया है। वे वहां राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की बैठक में शामिल होने वाले थे।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायकी जाने की स्थिति में भी झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन को सरकार में बने रहने में संख्या बल के लिहाज से कोई दिक्कत नहीं होने वाली है। मगर बीजेपी इस मौके को भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। उसकी नजर 30 अगस्त को होने वाली उस सुनवाई पर लगी है जिसमें विधानसभा अध्यक्ष ट्राइब्यूनल में दल-बदल के सात मामलों पर चर्चा होगी।
झामुमो के पास हैं 30 विधायक
इसमें बीजेपी विधायक दल के नेता बाबू लाल मरांडी, विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की का मामला भी शामिल है। 81 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में इस समय झामुमो के सर्वाधिक 30 विधायक हैं। इसके बाद बाबू लाल मरांडी समेत बीजेपी के 26, प्रदीप यादव समेत कांग्रेस के 18, आजसू के 2 और भाकपा-माले, राकांपा, राजद के एक-एक सदस्य हैं। दो निर्दलीय सदस्य हैं।
नकदी के साथ पकड़े गये तीन विधायकों को हटाकर भी झामुमो के पास पर्याप्त समर्थन है। दूसरी ओर बीजेपी के पास कुल 30 विधायकों का समर्थन माना जा रहा है जो बहुमत से 11 कम है।
बिहार में सत्ता गंवाने के बाद से भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड में अपनी गतिविधि तेज कर दी है और एक जगह सत्ता कम होने की भरपाई वह झारखंड से करने की कोशिश में है। बिहार में नीतीश कुमार के पलटी मारने से पहले से ही बीजेपी झारखंड में सरकार बनाने की कोशिश में थी। ऐसा लग रहा था कि वह कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर अपनी सरकार बना लेगी।
इस मामले में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का नाम भी सामने आया था लेकिन उन्होंने यह कहकर इस मामले से पल्ला झाड़ लिया था कि चूंकि वे 22 साल तक कांग्रेस में रहे हैं, इसलिए पुराने कांग्रेसी उनके संपर्क में रहते हैं।
बीच में हेमंत सोरेन दिल्ली गये, वहां उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और बीजेपी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन भी दिया। इससे ऐसा माहौल बना कि शायद बीजेपी हेमंत सोरेन के खिलाफ कानूनी दांव पेच को ढीला कर दे।
फिर जब प्रधानमंत्री जुलाई में देवघर हवाई अड्डे का उद्घाटन करने पहुंचे तो वहां हेमंत सोरेन ने जिस तरह उनका स्वागत किया, उससे लगने लगा कि फिलहाल बीजेपी ने अपने ऑपरेशन लोटस को विराम दे दिया है।
कांग्रेस या झारखंड मुक्ति मोर्चा को तोड़ने में नाकामी मिलने के कुछ ही दिनों के बाद बीजेपी को बिहार में सत्ता गंवानी पड़ी तो उसने उन रास्तों पर काम करना शुरू किया जिनसे हेमंत सोरेन को परेशानी में डाला जा सके। कहा जा रहा है कि बीजेपी ने अब तय कर लिया है कि हेमंत सरकार को कानूनी दांव पेच से गिराकर वहां अपनी सरकार बनाने के लिए वह पूरा जोर लगाएगी।
अगर हेमंत सोरेन का मुख्यमंत्री बने रहना संभव न हुआ तो उनके परिवार से मां को मुख्यमंत्री बनाने का विकल्प होगा। उनकी अनुपस्थिति में पार्टी के किसी दूसरे सदस्य पर सहमति बनेगी या नहीं, कहना मुश्किल है। वैसे, इस हालत में बीजेपी के पास कांग्रेस या झामुमो को तोड़ने का मौका हाथ लग सकता है।