राम मंदिर निर्माण: नवीन पटनायक की चुप्पी के पीछे की राजनीति

07:10 am Aug 08, 2020 | सतीश शर्मा - सत्य हिन्दी

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जो अक्सर ट्विटर के जरिये देश, जनमानस से जुड़े विभिन्न विषयों पर अपने विचार, प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते रहते हैं, उन्होंने देश ही नहीं विदेश में भी चर्चा का केंद्र बने राम मंदिर भूमि पूजन पर रहस्यमयी चुप्पी साध रखी है जबकि विरोधी दलों ने भी अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। 

राम मंदिर पर बीजेपी के रुख के घोर विरोधी कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी राम मंदिर निर्माण का समर्थन करते ट्वीट किया था। अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों, राजनेताओं ने भी अपने-अपने तरीके से इस भावनात्मक मुद्दे पर अपने विचार साझा किये। परंतु अक्सर प्रभु जगन्नाथ का नाम लेने वाले नवीन पटनायक ने इस विषय पर संपूर्ण मौन धारण कर लिया। उन्होंने भूमि पूजन आयोजन का न तो समर्थन किया और न ही किसी प्रकार की आलोचना की। 

मौन धारण करने के साथ ही उन्होंने उसी दिन शाम को कोरोना योद्धाओं को स्मरण करते हुए राज्य वासियों से एक मिनट की नीरव प्रार्थना करने की भी अपील की। जिसे कइयों ने राम मंदिर भूमि पूजन से ध्यान भटकाने के रूप में देखा। क्या यह अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को बचाये रखने का प्रयास था? कई राजनैतिक विश्लेषक इसे इसी रूप में देख रहे हैं।

नवीन पटनायक ने अभी तक जिस प्रकार की राजनीति की है उससे यह स्पष्ट था कि वे इस मुद्दे पर उदासीन रवैया ही अपनाएंगे। बीजू जनता दल के नेता इसे व्यावहारिक राजनीति मानते हैं जिसमें काल, पात्र, परिस्थिति के अनुसार गोटियां चली जाती हैं।

नवीन पटनायक को जानने वाले कहते हैं कि सौम्य चेहरे और हमेशा धवल कपड़े पहनने वाले नवीन बाबू की छवि एक निष्ठुर और प्रतिशोधपरायण राजनीतिज्ञ की है। वे विरोधी को कठोरता से कुचलने में विश्वास करते हैं। इसी राजनीति का प्रतिफल 2009 के आम चुनाव में देखने को मिला था। तब नवीन पटनायक ने राज्य में अपनी ज़मीन मजबूत करने के बाद बीजेपी से गठबंधन तोड़ने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई थी। 

राज्य में कंधमाल में 2008 के हिंदू-क्रिश्चियन दंगों की आड़ में उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया था। इससे उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि मजबूत हुई थी। गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी को आम चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा था।

राजनीतिक विरोध को नवीन पटनायक व्यक्तिगत सीमा से भी परे ले जाते हैं। बीजेडी के संस्थापक सदस्य बिजय महापात्र इसके जीते-जागते उदाहरण हैं। बिजय महापात्र को विधानसभा में आने से रोकने को उन्होंने व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया है। जिसकी वजह से महापात्र एक विधायक का चुनाव जीतने को तरस गये हैं। उसी प्रकार की स्थिति उनके पूर्व करीबी बैजयंत पांडा की है। 

2018 में पांडा के उद्योगपति पिता बंशीधर पांडा की मृत्यु हुई थी। नवीन पटनायक उनके घर संवेदना प्रकट करने तक नहीं गये। अपने नेता को देखकर बीजेडी के अन्य नेता भी संवेदना व्यक्त करने नहीं गये। पांडा को बीजेपी की शरण में जाना पड़ा था। 

2009 में अपमान का घूंट पीने वाली बीजेपी तब से नवीन पटनायक से हिसाब बराबर करने का प्रयास कर रही है। पर अभी तक वह उन्हें कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकी है।

बीजेपी की जोर-आजमाइश की वजह से कांग्रेस दूसरे से तीसरे स्थान पर खिसक गई है और बीजेपी अब मुख्य विपक्षी दल बन गई है। 

बीजेपी के साथ बढ़ाई दोस्ती 

गत वर्ष के आम चुनाव के बाद नवीन पटनायक ने एक बार फिर पैंतरा बदला है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की अधिक बहुमत से वापसी और राज्य सरकार के बिगड़ते आर्थिक हालात की वजह से नवीन सरकार की केंद्र पर आर्थिक निर्भरता बढ़ गई है। इसलिए वह अब खुलकर मोदी सरकार को बिल पारित करवाने में मददगार बन गई है। धारा 370 हो या तीन तलाक का बिल, बीजेडी ने राज्यसभा में मोदी की सहायता की। बदले में मोदी राज्य को आर्थिक मदद कर रहे हैं। 

धर्म निरपेक्ष छवि बचाने की चाल

मोदी, अमित शाह भी अपने राजनीतिक विरोधियों को भूलने या क्षमा करने वालों में से नहीं हैं। पर जब तक बीजेपी राज्यसभा में आरामदायक स्थिति में नहीं आती है उसे नवीन पटनायक की ज़रूरत है। इसलिये नवीन बाबू अपनी पांचवीं पारी में नरेंद्र मोदी के साथ बड़े सौहार्द्रपूर्ण व्यक्तिगत संबंध बनाये हुए हैं। वे नरेंद्र मोदी के साथ-साथ अपनी धर्म निरपेक्ष छवि को भी बचाये रखना चाहते हैं। इसीलिए वे राम मंदिर के मामले में उदासीन रहे। 

अभी कुछ समय पहले भी पुरी की रथयात्रा को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने रथयात्रा पर रोक लगा दी थी। उस समय नवीन सरकार ने कोई विरोध नहीं किया। बाद में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रथयात्रा के लिये गुहार लगाई और कई प्रतिबंधों के साथ इसकी अनुमति दी तो नवीन सरकार तत्काल इसका श्रेय लेने के प्रयास में जुट गई।

नवीन पटनायक व्यक्तिगत जीवन में धार्मिक कर्मकांड, दिखावा करने वाले लोगों में से नहीं हैं और राजनीति उनके लिए सर्वोपरि है। देश के करोड़ों लोगों की आस्था के प्रतीक राम और उनके मंदिर के भूमि पूजन समारोह के प्रति उनके द्वारा ओढ़े गए उदासीन भाव, मौन से यही प्रमाणित हुआ है।