बिहार में बड़बोले नेताओं की भरमार है। अलग अलग पार्टियों के कई नेता ऐसे अभद्र बयान देते रहते हैं जिससे राजनीति तो शर्मसार होती ही है, वो नेता ख़ुद हास्य के पात्र बन जाते हैं। राज्य के एक पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी तथा अन्य पार्टियों के कई बड़े नेता अपनी टिप्पणियों में असभ्य भाषा और प्रतीकों के प्रयोग के लिए बदनाम रहे हैं। लेकिन अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो अपनी शालीनता के लिए भी जाने जाते हैं, ने एक ऐसी ग़लती कर दी जिसने मर्यादा की हर सीमा को लाँघ दिया। बिहार विधानसभा में जाति जनगणना पर बहस के दौरान नीतीश ने विवाह के बाद स्त्री पुरुष के बीच सेक्स संबंध को सांकेतिक रूप और हाव भाव से बताने की ग़लती कर दी। सुशासन बाबू के नाम से मशहूर नीतीश का यह बयान हैरान करने वाला था। सोशल मीडिया पर यह वीडियो तेज़ी से फैल रहा है। नीतीश को अब बीजेपी और अपने विरोधियों के साथ साथ समर्थकों का विरोध सहन करना पड़ रहा है।
दरअसल, नीतीश यह बता रहे थे कि उनकी सरकार के दौरान महिलाओं की शिक्षा का अनुपात बढ़ने के कारण बच्चों के जन्म की दर भी घटी है। इस सीधी सी बात को उन्होंने सेक्स से जोड़ दिया। और ऐसे संकेत भी दिए जिससे लगा कि आबादी बढ़ने के लिए सेक्स ही ज़िम्मेदार है। बाद में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नीतीश के बयान को सेक्स शिक्षा से जोड़ कर उन्हें बचाने की कोशिश की।
विधानसभा की मर्यादा गिरी
जाति जनगणना की रिपोर्ट के आधार पर नीतीश ये बता रहे थे कि उनकी सरकार बनने से पहले बिहार में जनसंख्या वृद्धि दर 4.3 प्रतिशत थी जो कि अब 2.9 प्रतिशत पर आ गयी है। इसमें लड़कियों की शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। यह बात तो पूरी तरह सही है। लेकिन इसके लिए सेक्स का सांकेतिक ज़िक्र करने की ज़रूरत क्या हो सकती है।
नीतीश ने शालीनता की दहलीज़ को पार कर लिया और वो भाषा बोल गए जिसे सड़क छाप कहते हैं। बिहार के नेताओं की यह आम समस्या है। अक्सर कई नेता फूहड़ भाषा का इस्तेमाल करते हैं। बिहार में सामंती संस्कार अब भी हावी है इसलिए नेताओं को फूहड़ बयान पर भी तालियाँ मिल जाती हैं। लोग रस लेकर इसकी चर्चा करते हैं। नेता इसे अपनी लोकप्रियता समझते हैं। लेकिन नीतीश के बयान पर विधायक हक्का बक्का रह गए। कुछ मुँह छिपा कर हंसते नज़र आए तो कुछ शर्मिंदा हो रहे थे। महिला विधायकों की स्थिति और भी बुरी हो रही थी।
नीतीश के बयान से ये भी लग रहा था कि जैसे विवाह के बाद सेक्स की ज़रूरत सिर्फ़ पुरुषों को होती है और महिला तो बस संतान पैदा करने का माध्यम बनती हैं। नीतीश विवाहित हैं। उनका एक बेटा भी है। इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता है कि नीतीश को वैवाहिक जीवन का अनुभव नहीं है।
नीतीश को शायद यह मालूम नहीं है कि जहाँ सेक्स शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा है वहां भी मूलतः यह स्वास्थ्य शिक्षा है जिसमें सेक्स से सम्बंधित कुछ मूलभूत बातों की जानकारी शालीनता से दी जाती है।
विपक्ष को मिल गया मौक़ा
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा इसे एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कई पार्टियों की महिला नेताओं को इस विवाद से जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता सम्राट चौधरी ने इसकी खुली आलोचना की। कई महिला विधायकों और नेताओं ने इसे शर्मनाक कहा। सोशल मीडिया पर आलोचना के बाद नीतीश ने माफ़ी मांग ली और इस बयान को वापस भी ले लिया। लेकिन इसके बाद भी ये मामला थमेगा नहीं। यह बयान विधानसभा के भीतर दिया गया था इसलिए अदालतों या महिला आयोग जैसी संस्थाओं को कोई करवाई करने का अधिकार नहीं है लेकिन नीतीश को सामाजिक मंचों पर आलोचना सहना पड़ेगा।
'इंडिया' गठबंधन में नीतीश कुमार को भावी प्रधानमंत्री का दावेदार माना जा रहा था। नीतीश को बिहार में इसके चलते राजनीतिक नुक़सान भले ही नहीं हो, लेकिन उनकी राष्ट्रीय छवि पर एक दाग़ तो लग ही गया है। सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों ने उन्हें स्त्री विरोधी और पुरुष वर्चस्ववादी भी कहना शुरू कर दिया है। बिहार में स्त्रियों और दलितों को लेकर कई तरह की गालियाँ अक्सर और बिना कारण सुनाई देती है। नीतीश भी इस सामंती प्रवृति के शिकार हो गए लगते हैं। विधानसभा में पिछले दो चुनावों से नीतीश कुमार की जीत का एक बड़ा कारण महिलाओं का समर्थन माना जाता है। राज्य में पूर्ण शराबबंदी ने उन्हें ख़ास तौर पर ग़रीब महिलाओं के बीच लोकप्रिय बना दिया था। स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल और ड्रेस तथा किताब कॉपी बांटने से युवा वर्ग में उन्हें लोकप्रियता मिली। भले ही उन्होंने यह बयान अनजाने में दिया हो परंतु इस एक बयान ने उनकी छवि को गंभीर आघात पहुंचा दिया है।