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कोई इतिहास कैसे बदल सकता है- नीतीश; हमें कौन रोकेगा: शाह

कोई इतिहास कैसे बदल सकता है- नीतीश; हमें कौन रोकेगा: शाह

क्या बीजेपी नेता और गृह मंत्री अमित शाह के इतिहास लेखन को जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनौती देंगे? इतिहास फिर से लिखने के अमित शाह के बयान पर नीतीश ने क्यों कहा कि इतिहास कैसे बदल सकता है?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि उन्हें समझ नहीं आता कि कोई इतिहास कैसे बदल सकता है। उनका यह बयान गृह मंत्री अमित शाह के इतिहास को लेकर बयान पर आया है। पत्रकारों ने नीतीश कुमार से अमित शाह के बयान पर प्रतिक्रिया मांगी थी और इसी पर बिहार के सीएम ने जवाब दिया।

पत्रकारों से सवाल-जवाब का यह वीडियो सोशल मीडिया पर भी साझा किया गया है। उसमें नीतीश कुमार को पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए सुना जा सकता है। नीतीश कुमार कहते हैं, 'क्या इतिहास बदल दीजिएगा? हमको तो समझ नहीं आता कि कोई इतिहास बदल जाएगा। जो इतिहास है वह इतिहास है। हमको तो समझ नहीं आता है कि कोई इतिहास कैसे बदलेगा? हमको तो नहीं लगता है कि कोई इतिहास बदल सकता है।'

नीतीश एक अन्य सवाल के जवाब में कहते हैं, 'भाषा लिखने की बात होगी वह अलग बात है, लेकिन मौलिक इतिहास है उसको कोई थोड़े बदल सकता है...।'

नीतीश कुमार ने यह टिप्पणी तब की जब उनसे कहा गया कि वह गृह मंत्री अमित शाह की इतिहास को लेकर की गई टिप्पणी पर बोलें। देश के गृह मंत्री ने तीन दिन पहले ही एक कार्यक्रम में सीधे चुनौती देने के लहजे में कहा था कि 'हमें इतिहास लिखने से कौन रोकेगा'। 

अमित शाह ने कहा था, 'यह एक तथ्य है कि कुछ लोगों ने इतिहास को विकृत कर दिया है। उन्होंने जो कुछ भी चाहा, उन्होंने लिखा है। तो हमें कौन रोक सकता है? हमें कोई नहीं रोक सकता। इतिहास सरकारों द्वारा नहीं रचा जाता है, बल्कि यह सच्ची घटनाओं पर रचा जाता है।' 

उन्होंने कहा था,

हमें टीका टिप्पणी छोड़ कर अपने गौरवशाली इतिहास को जनता के सामने रखना चाहिए, जब हमारा प्रयास बड़ा होगा तो झूठ का प्रयास खुद ही छोटा हो जायेगा। इसलिए हमें हमारा प्रयास बड़ा करने में अधिक ध्यान देना चाहिए।


अमित शाह, गृह मंत्री

बता दें कि आरएसएस और बीजेपी दोनों आरोप लगाते रहे हैं कि इतिहास की किताबें वामपंथी इतिहासकारों द्वारा रची गईं और जिन्होंने हिंदू राजाओं और राज्यों के योगदान को नज़रअंदाज़ किया था। अमित शाह लेखकों और फिल्म निर्माताओं से 'इतिहास का सच सामने लाने' पर काम करने का आग्रह करते रहे हैं। 

उन्होंने लेखकों से पांड्य, अहोम, चालुक्य, मौर्य, गुप्त आदि राजवंशों पर किताबें लिखने का आग्रह करते हुए कहा था कि इतिहास लिखने वालों ने इन राजवंशों की अनदेखी की। उन्होंने कहा, 'कोई संदर्भ पुस्तकें भी नहीं हैं। मैं कहना चाहता हूँ, इस पर टिप्पणी करना छोड़ कर, लोगों के सामने वास्तविक इतिहास को सामने लाने के लिए उन पर लिखना चाहिए। धीरे-धीरे जिस इतिहास को हम झूठा समझते हैं वह अपने आप मिट जाएगा।'

गृह मंत्री ने कहा था कि हालाँकि सरकार ने "वास्तविक इतिहास" के दस्तावेजीकरण की पहल शुरू कर दी है, लेकिन यह अभ्यास तभी सफल होगा जब समाज इसे एक मिशन के रूप में लेगा। उन्होंने कहा, 'अगर वीर सावरकर नहीं होते तो मैं आपको बता दूँ कि 1857 का सच सामने नहीं आता।'

शाह ने कहा था, '... क्रांतियाँ जो उस समय पराजित हो गई होंगी, उनमें समाज और लोगों को जगाने की क्षमता थी। पद्मावती के बलिदान ने महिलाओं और पुरुषों को अपना सिर ऊंचा रखकर जीवन जीने की ऊर्जा दी थी। इतिहास का दस्तावेजीकरण महत्वपूर्ण है क्योंकि घटनाओं या विद्रोहों के परिणाम ठोस नहीं हैं, इसे लोगों पर इसके प्रभाव से तौला जाना चाहिए।'

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