जिसका अंदेशा था वही हुआ बुधवार को इंडिया गठबंधन के वरिष्ठ नेताओं की वर्चुअल बैठक होनी थी। इस बैठक में नीतीश कुमार को औपचारिक रूप से गठबंधन का संयोजक बनाए जाने का फ़ैसला होना था। राजनीतिक गलियारों में पिछले दो दिन से इसकी चर्चा जोरों पर थी। बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार को नए साल की मुबारकबाद के साथ-साथ इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाए जाने की भी अग्रिम बधाइयां मिल रही थीं लेकिन इंडिया गठबंधन की वर्चुअल बैठक टल गई है। बैठक की नई तारीख़ भी तय नहीं है।
आख़िर क्यों टली बैठक?
अगर यह बैठक सिर्फ़ नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाने का फ़ैसला करने के लिए होनी थी तो उसका टालना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे कई सवाल खड़े होते हैं। सबसे अहम सवाल यह है कि आखिर नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की राह में आखिर कौन रोड़े अटका रहा है? बताया जा रहा है कि कांग्रेस नीतीश को गठबंधन का संयोजक बनाए जाने के हक में है। लेकिन कुछ सहयोगी दल इसके हक में नहीं हैं। इसी वजह से इस मसले पर अभी तक फ़ैसला नहीं हो पाया है। कांग्रेस इस पर सहमति बनाने का कोशिश कर रही है। लेकिन अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। इसी वजह से बुधवार को होने वाली बैठक टालनी पड़ी।
ममता को है एतराज़?
कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक़ कांग्रेस नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक बनाना चाहती है। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी इसके ख़िलाफ़ हैं। बताया जाता है कि ममता बनर्जी नीतीश को ‘इंडिया’ गठबंधन का संयोजक बनाए जाने के हक में नहीं है। दिसंबर में हुई ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में भी नीतीश को संयोजक बनाए जाने की चर्चा थी। लेकिन बैठक में ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का सुझाव देकर मुद्दा ही बदल दिया। अरविंद केजरीवाल ने भी ममता के सुर में सुर मिलाया था। बताया जाता है कि बैठक में इस पर नीतीश ने कोई टिप्पणी नहीं की थी। बैठक के बाद नीतीश मीडिया से बात किए बगैर चले गए थे। इससे उनके नाराज़ होने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा है। नीतीश ने भी इनका खंडन नहीं किया।
ममता को मनाने की कोशिश जारी
‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक के बाद कांग्रेस की तरफ़ से नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने के मसले पर सहयोगी दलों के नेताओं से बात करके आम सहमति बनाने की कोशिश की गई, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक। शरद पवार और उद्धव ठाकरे को नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने पर कोई एतराज नहीं है लेकिन ममता बनर्जी इसके लिए राजी नहीं हो रहीं। सूत्रों का दावा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस बारे में ममता बनर्जी से बात की थी लेकिन उन्होंने कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया। इसके बाद ममता बनर्जी को राजी करने के लिए राहुल गांधी ने खुद उनसे फोन पर बात की थी। लगता है कि राहुल की मनुहार के बावजूद ममता टस से मस नहीं हुई हैं। इसीलिए नीतीश को संयोजक बनाने का मामला लटका पड़ा है।
ममता-नीतीश के बीच छत्तीस का आँकड़ा
गौरतलब है कि नीतीश कुमार के साथ ममता बनर्जी का छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों ही अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। तब दोनों के बीच रेल मंत्रालय को लेकर खूब खींचतान हुई थी। क़रीब दो दशक से ज़्यादा पुरानी इस खींचतान के जख्म अभी भी ताज़ा लगते हैं। जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़कर विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश शुरू की थी तब भी यह मसला उठा कि शायद नीतीश कुमार की इस मुहिम को ममता बनर्जी झटका दे सकती हैं।
ममता बनर्जी 2021 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस के बगैर ही विपक्षी दलों का गठबंधन बनाने की कोशिश कर चुकी हैं। तब शरद पवार ने और बाद में नीतीश कुमार ने समझाया कि कांग्रेस को बगैर विपक्षी दलों के बीच एकता नहीं हो सकती।
नीतीश को क्यों बनाया जाए संयोजक?
इंडिया गठबंधन में एक सवाल यह भी उठता है कि आखिर नीतीश कुमार को ही संयोजक क्यों बनाया जाए जबकि शरद पवार जैसे उनसे भी वरिष्ठ नेता गठबंधन में मौजूद हैं। इसका सीधा सा जवाब है कि नीतीश कुमार ने ही कांग्रेस के नेतृत्व में एक विपक्षी दलों का एक मजबूत गठबंधन बनाने की पहल की थी। बीजेपी का साथ छोड़ने के बाद वो देश भर में घूम कर समान विचारधारा वाले दलों के नेताओं से मिले थे। उन्होंने ही सभी विपक्षी दलों की पहली बैठक पिछले साल जून में पटना में बुलाई थी। तभी से उन्हें इस गठबंधन का संयोजक बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। नीतीश कुमार ज़रूरत पड़ने पर उन दलों को भी गठबंधन में शामिल करा सके हैं जो सीधे तौर पर कांग्रेस के साथ नहीं आ सकते। नीतीश संयोजक पद के लिए सबसे बेहतर पसंद हैं, इस पर किसी को दो राय नहीं है।
क्या नीतीश वाक़ई नाराज़ हैं?
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि संयोजक नहीं बनाए जाने की वजह से नीतीश कुमार नाराज़ चल रहे हैं। उनकी यह नाराजगी उनके बयानों से झलकती भी है। जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़कर विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम चलाई थी तभी माना गया था कि वो विपक्षी दालों की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन नीतीश कुमार ने तब साफ कर दिया था कि वो न उम्मीदवार हैं और न ही दावेदार। वो पद के लालच में यह काम नहीं कर रहे। बाद में उन्हें संयोजक बनाए जाने की चर्चा हुई, इस पर भी उन्होंने साफ कहा था कि वह संयोजक पद भी नहीं चाहते। लेकिन उनकी पार्टी की तरफ़ से लगातार उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताते हुए पोस्टर निकाले जाते रहे हैं। जाहिर है कि ये पोस्टर नीतीश की मर्जी के बगैर तो नहीं निकलते होंगे।
क्या कहना है जदयू का?
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने बुनियादी सवाल उठाया है। वो पूछते हैं कि अगर नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों का गठबंधन बना रहे हैं और बदले में कांग्रेस ने संयोजक भी नहीं बनया तो फिर गठबंधन में रहने का क्या औचित्य है? उनका कहना है कि अगर कांग्रेस को खुद ही सारे काम करने हैं तो फिर वो गठबंधन कर ही क्यों रही है, अकेले चुनाव क्यों नहीं लड़ती। दरअसल, जदयू नीतीश को गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की उम्मीद लगाए बैठा था लेकिन ममता बनर्जी के खड़गे का नाम आगे करने से उसकी उम्मादों पर पानी फिर गया है। अब वो नीतीश को कम से कम गठबंधन का संयोजक तो देखना ही चाहता है। जदयू के ये सवाल कांग्रेस को चुभ रहे हैं।
यूपीए में नहीं रहा संयोजक का चलन
कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि यूपीए में संयोजक बनाए जाने का चलन नहीं रहा है। केंद्र में 2004 से लेकर 2014 तक यूपीए की सरकार चली है। इस दौरान सोनिया गांधी ही यूपीए की अध्यक्ष थीं। कोई संयोजक नहीं था। संयोजक का काम सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल निभाते थे। लिहाजा इन नेताओं को मानना है कि आज कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इंडिया गठबंधन के भी अध्यक्ष हो सकते हैं। वहीं कांग्रेस में कुछ और नेताओं का मानना है कि इंडिया गठबंधन एक नया प्रयोग है, यह यूपीए से अलग है तो उसका तौर तरीका भी यूपीए से अलग हो सकता है। सभी सहयोगी दलों को साथ जोड़ने और उनके नेताओं से बात करने के लिए एक संयोजन का होना जरूरी है, ऐसे में नीतीश कुमार की संयोजन क्षमता का इस्तेमाल करना चाहिए।
नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने को लेकर बिहार में कांग्रेस विधायक दल के नेता डॉ. शकील अहमद खान कहते हैं कि नीतीश शुरू से ही यह भूमिका निभा रहे हैं और आगे भी निभाते रहेंगे। एक टीवी चैनल से बात करते हुए उन्होंने यहाँ तक उम्मीद जताई है कि बहुत जल्द इस पर फैसला हो जाएगा। इधर, कांग्रेस के साथ बिहार में सीटों के बँटवारे पर भी बातचीत चल रही है। हो सकता है कि कांग्रेस नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने के बदले कुछ ज्यादा सीट झटकने की की फिराक में हो। इस मुद्दे पर होने वाली बैठक की अगली तारीख़ तक इसे लेकर अटकलें लगती रहेंगी। तस्वीर तभी साफ हो पाएगी जब ममता बनर्जी की तरफ से हरी झंडी मिलेगी।