अब तक जितने भी एग्ज़िट पोल के नतीज़े सामने आये हैं, उनसे यह बात साफ़ है कि बीजेपी कर्नाटक में शानदार प्रदर्शन करने जा रही है। इतना ही नहीं, इन नतीजों से यह भी साफ़ हो गया है कि कांग्रेस और जेडीएस यानी जनता दल (सेक्युलर) के बीच राजनीतिक रिश्ता मधुर नहीं है। चुनाव में दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे का साथ नहीं दिया, इसी वजह से बीजेपी को फ़ायदा पहुँचा है। सूत्रों का कहना है कि जेडीएस के नेताओं को शक है कि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने जानबूझकर उनके लोकसभा उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ काम किया है। शक यह भी है कि पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा और उनके दोनों पोतों – निखिल कुमारस्वामी और प्रज्वल रेवन्ना को हराने की भी कोशिश की गयी है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर देवेगौड़ा और उनके दोनों पोतों में से एक की भी हार होती है तो जेडीएस और कांग्रेस का गठबंधन टूट जाएगा और कुमारस्वामी सरकार गिर जाएगी।
कुमारस्वामी सरकार गिरने की स्थिति में या तो जेडीएस, बीजेपी को सरकार बनाने में मदद करेगी या विधानसभा भंग करवा कर दुबारा चुनाव करवाने की माँग करेगी। सूत्रों का कहना है बीजेपी, जेडीएस की मदद से सरकार बनाने के पक्ष में नहीं है।
कांग्रेस और जेडीएस के कुछ बाग़ी विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं और इन्हीं की मदद से वह सरकार बनाने की कोशिश करेगी। लेकिन बीजेपी नेताओं का एक वर्ग विधानसभा भंग करवा कर फिर से चुनाव करवाने के पक्ष में है। इन नेताओं को लगता है कि इस बार चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलेगा। लेकिन इतना तय है कि बीजेपी सरकार नहीं गिराएगी और कुमारस्वामी सरकार के ख़ुद गिर जाने का इंतज़ार करेगी।
कर्नाटक की राजनीति पर गहरी पैठ रखने वाले कुछ लोग यह कहते हैं कि लोकसभा चुनाव नतीजों के आने के बाद कुछ ही दिनों में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन टूट जाएगा और कुमारस्वामी सरकार गिर जाएगी।
बड़ी बात यही है कि कुमारस्वामी सरकार का भविष्य देवेगौड़ा और उनके पोतों की हार-जीत पर निर्भर है। अगर तीनों जीत गये तो सरकार कायम है और इनमें से एक की भी हार हुई तो सरकार का जाना लगभग तय है।
ग़ौर करने वाली बात यह है कि निखिल, मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बेटे हैं और उन्होंने मांड्या की सीट से इस बार का लोकसभा चुनाव लड़ा है। प्रज्वल मंत्री रेवन्ना के बेटे और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के भतीजे हैं। प्रज्वल ने हासन सीट से चुनाव लड़ा है। पिछली बार हासन से देवेगौड़ा ने चुनाव लड़ा था और जीत हासिल कर लोकसभा पहुँचे थे। इस बार उन्होंने यह सीट अपने पोते प्रज्वल के लिए छोड़ी थी।
पहले तो देवेगौड़ा ने चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया था, लेकिन बाद में अपना फ़ैसला बदलकर चुनावी दंगल में कूद पड़े। देवेगौड़ा ने इस बार तुमकुर से चुनाव लड़ा है।
मांड्या से हार सकते हैं निखिल
एग्ज़िट पोल के नतीज़े इशारा कर रहे हैं कि इस बार के लोकसभा चुनाव में देवेगौड़ा और उनके परिवार के लिए सब कुछ अच्छा होने वाला नहीं है।कई एग्ज़िट पोल के नतीज़े यह कह रहे हैं कि मांड्या से निखिल चुनाव हार रहे हैं। निखिल को निर्दलीय उम्मीदवार और जानी-मानी फ़िल्म अभिनेत्री सुमलता हरा सकती हैं। सुमलता कांग्रेस के दिवंगत कद्दावर नेता और फ़िल्मी हस्ती अम्बरीश की पत्नी हैं। वह उम्मीद कर रही थीं कि इस बार कांग्रेस उन्हें मांड्या से टिकट देगी। उनके पति अम्बरीश मांड्या से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। लेकिन कांग्रेस और जेडीएस के बीच हुए समझौते के तहत मांड्या की सीट जेडीएस के खाते में चली गयी। लेकिन सुमलता निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में आ गयीं। बीजेपी ने सुमलता को मदद देने की घोषणा कर दी, इससे जेडीएस की मुसीबत और भी बढ़ गयी।
कर्नाटक में चुनाव कवर करने वाले कई पत्रकारों ने बताया कि मांड्या में कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं ने इस बार सुमलता को वोट दिया है। इन पत्रकारों के मुताबिक़, मतदाता ‘देवेगौड़ा के परिवादवाद की राजनीति’ से गुस्साये हुए हैं।
इतना ही नहीं, मांड्या में कांग्रेस के कई नेता इस बात से भी नाराज़ हैं कि उनकी राय को दरकिनार करते हुए बड़े नेताओं ने धुर विरोधी जेडीएस से गठजोड़ किया। इसी वजह से इन कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने अपने ही नेताओं को सबक सिखाने के मक़सद से जेडीएस के उम्मीदवार को वोट नहीं दिया।यही हाल तुमकुर और हासन में भी है।
राजनीति के जानकार बताते हैं कि हासन से जेडीएस के उम्मीदवार प्रज्वल को तो जीत मिल जाएगी लेकिन तुमकुर से ख़ुद देवेगौड़ा के लिए सीट निकालना मुश्किल हो गया है।वैसे तो देवेगौड़ा और उनके पोतों की क़िस्मत और उनका राजनीतिक भविष्य फिलहाल ईवीएम में बंद है लेकिन राजनीतिक माहौल में यही चर्चा है कि लोकसभा चुनाव के परिणामों से देवेगौड़ा के परिवार को करारा झटका लगेगा और इस झटके की वजह से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन टूटेगा और कुमारस्वामी सरकार गिर जाएगी।
यानी बात बिलकुल साफ़ है। कर्नाटक की तीन लोकसभा सीटों – मांड्या, तुमकुर और हासन के नतीजे तय करेंगे कि कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन रहेगा या नहीं और कुमारस्वामी सरकार टिकेगी या नहीं। ये सीटें प्रतिष्ठा की सीटें हैं और इन्हीं सीटों के नतीजों पर कुमारस्वामी का भविष्य टिका है।राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस और जेडीएस के कुछ नेता तो आपस में मिल गये लेकिन कई नेता और कार्यकर्ताओं को दोनों पार्टियों का गठजोड़ पसंद नहीं आया। दोनों पार्टियों के नेताओं ने हाथ तो मिला लिए, लेकिन उनके दिल नहीं मिले।