केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनपीआर के डाटाबेस को असम के अलावा पूरे देश में अपडेट किए जाने की जरूरत है। मंत्रालय ने कहा है कि जन्म, मृत्यु और पलायन के कारण होने वाले बदलावों को शामिल करने के लिए ऐसा किया जाना जरूरी है और इसके लिए सभी परिवारों और लोगों की जानकारियों को इकट्ठा किया जाएगा।
गृह मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना महामारी की वजह से एनपीआर को अपडेट करने का काम रोकना पड़ा था।
मंत्रालय के मुताबिक, एनपीआर को लोग खुद भी अपडेट कर सकते हैं। मंत्रालय ने कहा है कि अपडेशन के दौरान किसी भी तरह के दस्तावेज या बायोमीट्रिक्स को इकट्ठा नहीं किया जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने इसके लिए 3941 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत कर दिया है।
एनपीआर को साल 2010 में पहली बार तैयार किया गया था और 2015 में इसे अपडेट किया गया था। तब इसका कई विपक्षी दलों ने विरोध किया था और कहा था कि यह नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन यानी एनआरसी बनाने की दिशा में एक कदम है। हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया था कि इसका एनआरसी से कोई लेना-देना नहीं है।
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, एनपीआर को नागरिकता कानून 1955 के तहत बनाए गए नागरिकता नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत बनाया गया है। साल 2015 में इसमें कुछ जानकारियां जैसे नाम, लिंग, जन्म की तारीख और पता, घर का पता और माता और पिता के नाम को अपडेट किया गया था और आधार, मोबाइल और राशन कार्ड के नंबर इकट्ठा किए गए थे। गृह मंत्रालय ने कहा है कि जन्म, मृत्यु और एक जगह से दूसरी जगह जाने की वजह से हुए बदलाव के कारण इसे फिर से अपडेट किए जाने की जरूरत है। एनपीआर में 115 करोड़ लोगों का डाटाबेस है।
बताना होगा कि साल 2019 के आखिर में मोदी सरकार जब सीएए का कानून लेकर आई थी तो इसे लेकर देशभर में जोरदार हंगामा हुआ था। उस दौरान कहा गया था कि मोदी सरकार सीएए के बाद एनआरसी लाने की तैयारी कर रही है। प्रदर्शन शुरू हुआ था सीएए के खिलाफ लेकिन बाद में इसमें एनआरसी और एनपीआर का मुद्दा भी शामिल हो गया था।
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 1 अप्रैल, 2021 से 31 दिसंबर, 2021 तक देश भर में 1414 लोगों को नागरिकता कानून 1955 के तहत नागरिकता के प्रमाण पत्र दिए गए हैं।
सीएए का जिक्र नहीं
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में नागरिकता संशोधन कानून 2019 यानी सीएए को लेकर कोई बात नहीं कही गई है। इस कानून के मुताबिक, पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई आदि समुदायों के ऐसे लोग जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में रह रहे थे, ऐसे लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। लेकिन सीएए के खिलाफ देशभर में जोरदार विरोध प्रदर्शन हुए थे और इस वजह से इसके नियम अभी तक नहीं लागू किए जा सके हैं। सीएए को लेकर विवाद होने पर गृह मंत्रालय ने कहा था कि यह कानून भारत के नागरिकों पर लागू नहीं होता इसलिए यह किसी भी तरह से भारत के किसी भी नागरिक के अधिकारों को नहीं छीनता है।
संसद के दोनों सदनों में सीएए का कानून पास होने के बाद यह सवाल उठा था कि क्या देशभर में एनआरसी को भी लागू किया जाएगा। हालांकि सरकार ने इस बात से इनकार किया था कि सीएए और एनआरसी का आपस में कोई संबंध है।
लेकिन गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि 'आप क्रोनोलॉजी समझिए, पहले नागरिकता क़ानून आएगा, फिर एनआरसी आएगा'। उनके इस बयान का साफ़ मतलब था कि एनआरसी और नागरिकता क़ानून जुड़े हुए हैं। लेकिन बाद में शाह ने कहा था कि एनपीआर के लिए न तो किसी को कोई काग़ज़ दिखाने की ज़रूरत होगी और न ही किसी को संदिग्ध (डाउटफ़ुल या 'डी') श्रेणी में रखा जाएगा।
सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान विपक्षी राजनीतिक दलों ने कहा था कि एनपीआर और कुछ नहीं, एनआरसी को लागू करने के लिए लाया गया है जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है और एनपीआर और एनआरसी, दोनों ही अलग-अलग क़ानूनों से संचालित होते हैं और एनपीआर के आंकड़ों को एनआरसी के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
लेकिन एक अहम तथ्य यह है कि सरकार कम से कम 9 बार संसद में कह चुकी है कि एनआरसी और एनपीआर जुड़े हुए हैं और एनपीआर के डाटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए किया जाएगा। नागरिकता क़ानून 2003 में भी इसका ज़िक्र किया गया है।