क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे कि महिलाएं भी यह मानती हैं कि पुरुष अपनी पत्नियों की पिटाई कर सही काम करते हैं? क्या आप जानते हैं कि तेलंगाना की 83.8 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश की 83.6 प्रतिशत, कर्नाटक की 76.9 प्रतिशत महिलाओं ने स्त्रियों की घर में पिटाई को उचित ठहराया है?
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में ये बातें सामने आई हैं। यह विडंबना ही है कि स्त्रियों की पिटाई को स्त्रियों द्वारा उचित ठहराने की बात जिस सर्वे में है, उसी में यह भी पाया गया है कि स्त्रियों की तादाद पुरुषों से ज़्यादा है और ऐसा पहली बार हुआ है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानी एनएफएचएस में सवाल किया गया था कि 'आपके विचार से कोई पति अपनी पत्नी को पीट कर सही करता है?'
हिमाचल जैसे पारंपरिक समाज में सिर्फ 14.8 प्रतिशत महिलाओं ने औरतों की पिटाई को वाजिब ठहराया है।
सास-ससुर के प्रति सम्मान नहीं दिखाने और घर का कामकाज सही ढंग से नहीं करने पर भी पत्नी की पिटाई को ठीक माना गया है।
सर्वे में लोगों ने कहा कि यदि कोई महिला पति को बताए बगैर घर से बाहर चली जाती है, बच्चों की देखभाल ठीक से नहीं करती है, यदि वह पत्नी से जबान लड़ाती है या सेक्स से इनकार करती है तो उसकी पिटाई की जानी चाहिए।
पूर्वोत्तर
जिस मणिपुर में मातृ सत्तात्मक समाज होने की बात कही जाती है वहां की 65.9 प्रतिशत महिलाओं ने औरतों की पिटाई को उचित ठहराया है।
पूर्वोत्तर के एक और राज्य मिज़ोरम की महिलाओं का मानना है कि यदि पत्नी पति के प्रति वफ़ादार न हो तो उसकी पिटाई की जा सकती है। लेकिन सिर्फ 21 प्रतिशत महिलाओं का ऐसा मानना है।
आखिर इसका कारण क्या है? विश्लेषकों का मानना है कि पुरुषवादी सोच पूरे समाज में व्याप्त है, महिलाएं इसी समाज का हिस्सा है, लिहाजा वे इस सोच से अछूती नहीं रह सकती। ये महिलाएं बचपन से ही इस तरह की घटनाएं होते हुए अपने पास पड़ोस में देखती हैं और यह भी देखती हैं कि उसका विरोध भी नहीं हो रहा है। ऐसें उनके मन में एक तरह का स्वीकार्य का भाव भरने लगता है।
पोपुलशेन फर्स्ट नामक एक गैर सरकारी संस्था की निदशक शारदा ए. एल. ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "इस तरह की मर्दवादी सोच महिलाओं के मन में बैठा दी जाती है जो यह मानन लगती हैं कि परिवार व बच्चों की सेवा महिलाओं का पहला कर्तव्य होना चाहिए।"