मंहगाई पर क्यों तिलमिला उठती है मोदी सरकार!

11:54 am Aug 12, 2022 | रविकान्त

महंगाई को कांग्रेस बड़ा मुद्दा बनाने जा रही है। प्रत्येक विधानसभा में 17 से 23 अगस्त तक कांग्रेस 'महंगाई चौपाल' लगाएगी और 28 अगस्त को दिल्ली में बड़ी रैली आयोजित करेगी। महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेस की सक्रियता से भाजपा तिलमिलाई हुई है। काले कपड़ों में विरोध-प्रदर्शन को प्रधानमंत्री ने 'काला जादू’ कहकर हमला किया है।

गौरतलब है कि नरेन्द्र मोदी लोगों के 'अच्छे दिन' का जुमला छोड़कर कांग्रेस के 'बुरे दिन' को अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। उनके कहने का आशय है कि महंगाई पर कांग्रेस का काले कपड़ों में विरोध उनकी निराशा और दुख को दिखाता है। हालाँकि इसे भी धार्मिक रंग देते हुए राममंदिर निर्माण से जोड़ दिया गया है। लेकिन राहुल गाँधी ने जवाबी हमला किया है। उन्होंने कहा कि मोदी अपने 'काले कारनामों' को छुपाने के लिए 'काला जादू' जैसे अंधविश्वासी शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं।

महंगाई से त्रस्त देश की जनता के लिए प्रधानमंत्री की टिप्पणी अपमानजनक है। महंगाई के मुद्दे पर मुखर कांग्रेस पर भाजपा का हमला मानीखेज है। सबसे मौजूँ सवाल यह है कि बात-बात पर कांग्रेस नेतृत्व का मजाक उड़ाने वाली भाजपा राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को इतनी गंभीरता से क्यों ले रही है?

बहरहाल, उदयपुर चिंतन शिविर में निर्धारित कार्यक्रम के तहत जब कांग्रेस ने 5 अगस्त को महंगाई के ख़िलाफ़ पूरे देश में हल्ला बोल यानी विरोध प्रदर्शन किया तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत सैकड़ों कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया। आम आदमी के सवालों और प्रदर्शनों पर बीजेपी सरकार लंबे समय से खामोश है। संभवतया पहली बार बीजेपी सरकार ने बड़े स्तर पर कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन की आलोचना की है।

हालाँकि महंगाई के विरोध में हुए इस प्रदर्शन पर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन को सामने आकर कांग्रेस के आरोपों को निराधार साबित करना चाहिए था, लेकिन सरकार में नंबर दो अमित शाह ने मोर्चा संभाला। गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेसी नेताओं के काले कपड़ों पर तंज करते हुए इसे मुस्लिमपरस्ती से जोड़ दिया। तिरछी मुस्कान के साथ अमित शाह ने कहा था कि, चूँकि 5 अगस्त को राम मंदिर का शिलान्यास हुआ था, इसलिए कांग्रेस पार्टी ने इस दिन काले कपड़े पहनकर 'शोक' मनाया है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अमित शाह की बात को दोहराते हुए कांग्रेस पर मंदिर विरोधी होने का आरोप चस्पां किया।

अब सवाल उठता है कि क्या मंदिर के नाम पर कमरतोड़ महंगाई को भुलाया जा सकता है? क्या आम आदमी की समस्याओं को हिंदुत्व के मुलम्मे से छिपाया जा सकता है? क्या भाजपा सरकार अभी भी मुतमईन है कि आम आदमी को 'धर्म की अफीम' में बेहोश रखा जा सकता है?

संभव है अमित शाह और आदित्यनाथ के बयान अपने कट्टर समर्थकों के लिए हों। इसके जरिए समर्थकों को संदेश दिया गया है कि महंगाई पर कांग्रेस के विरोध के जवाब में उन्हें आम आदमी के बीच इसी विमर्श को लेकर जाना है।

'कांग्रेस मुक्त' भारत बनाने का ऐलान करने वाली भाजपा का कांग्रेस को घेरने का इरादा क्या है? क्या अभी भी उसकी निगाह में कांग्रेस की कोई अहमियत है?

दरअसल, भाजपा के लिए 'कमजोर' कांग्रेस आज भी चुनौती बनी हुई है। कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है, जिसकी अखिल भारतीय उपस्थिति है। 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल 52 सीटें जीतने के बावजूद कांग्रेस को करीब 19.5 फीसदी और 12 करोड़ वोट मिले। हालाँकि हिंदी बेल्ट में उसका प्रदर्शन बेहद फीका रहा। इसका बड़ा कारण कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण और भ्रष्टाचारी होने के आरोप रहे हैं। विदित है कि करोड़ों रुपए खर्च करके भाजपा ने आईटी सेल और प्रवक्ताओं द्वारा लगातार परोसे गए झूठ के जरिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी की छवि धूमिल की गई।

आजाद भारत में हिंदुत्ववादी राजनीति द्वारा नेहरू परिवार को सबसे ज्यादा लांछित किया गया। जवाहरलाल नेहरू के बाद इस परिवार में सबसे ज्यादा राहुल गांधी की ही छवि खराब की गई। लेकिन पिछले दो-तीन साल में राहुल गांधी की छवि बदली है। एक बौद्धिक, लोगों के प्रति संवेदनशील और देशहित के मुद्दों पर मुखर गंभीर नेता के रूप में राहुल गांधी की छवि बन रही है। कोरोना संकट, आर्थिक बदहाली और सामाजिक वैमनस्य पर चेतावनी भरी उनकी टिप्पणियों के कारण मध्यवर्गीय बौद्धिक तबका राहुल गांधी की ओर उम्मीद से देखने लगा है। जनमानस का झुकाव भी राहुल गांधी की तरफ हो रहा है। हालाँकि मंदिरों में जाते और हिंदू प्रतीकों को धारण करते हुए राहुल गांधी कांग्रेस की नेहरूवादी धर्मनिरपेक्ष विरासत को त्यागते हुए दिखते हैं। लेकिन इसे मुस्लिमपरस्ती के आरोप को खारिज करने की एक पहल के तौर पर देखा जा रहा है। 

वैचारिक स्तर पर राहुल गांधी हिंदू बनाम हिंदुत्व की बहस को भी आमंत्रित कर चुके हैं। इस अकादमिक बहस को भी राहुल ने राजनीतिक मुहावरे में गांधी बनाम गोडसे के 'आइडिया ऑफ़ इंडिया' में प्रस्तुत किया। जाहिर तौर पर राहुल की इस चुनौती को संघ और बीजेपी ने कोई तवज्जो नहीं दी। लेकिन महंगाई के मुद्दे को मंदिर विरोध से जोड़ना भाजपा की रणनीतिक मजबूरी और राजनीतिक एजेंडे को स्पष्ट करता है।

संभवतया भाजपा सरकार इस बात को समझ गई है कि बदहाल अर्थव्यवस्था को संभाल पाना उनके वश में नहीं है। इसलिए आने वाले चुनावों में हिंदुत्व और साम्प्रदायिक विभाजन के जरिए ही जीत हासिल की जा सकती है। जनमानस का कांग्रेस में लौटता विश्वास और राहुल गांधी की बेहतर होती छवि भाजपा के लिए चुनौती पैदा कर रही है। इसलिए आदित्यनाथ से लेकर अमित शाह और अब नरेंद्र मोदी कांग्रेस को लांछित करने की कोशिश कर रहे हैं।