60 साल के एक हिंदू व्यक्ति की मौत हो गई। कोरोना के ख़ौफ़ से अपना भाई और भतीजे भी नहीं आए। लॉकडाउन से पूरा क्षेत्र सील किया हुआ था तो कोई रिश्तेदार भी नहीं आ सका। अंतिम संस्कार तक नहीं हो पा रहा था। तब 10 मुसलिम युवा आगे आए और उन्होंने उनका अंतिम संस्कार कराने में मदद की। मामला कर्नाटक के टुमकारू के केएचबी कॉलोनी का है और यह घटना मंगलवार को हुई।
ऐसे समय में जब बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक नफ़रत फैलाने की कोशिश की जा रही है, हिंदू-मुसलिम एकता की मिसाल पेश करने वाली यह ख़बर सुकून देती है।
हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर साम्प्रदायिक घृणा फैलाने का काम बहुत ही ज़्यादा हुआ है। दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम और इसके कई सदस्यों में कोरोना वायरस की पुष्टि के बाद तो साम्प्रदायिकता का ज़हर ज़बरदस्त तरीक़े से फैलाया गया। इसका असर यह हुआ कि देश भर में कई जगहों पर मुसलिमों पर हमले हुए। मुसलिमों को सब्ज़ियाँ तक बेचने से रोका गया। इसमें तो बीजेपी विधायकों के नाम भी आए। ऐसी घटनाओं के बाद ऐसे आरोप लगाए गए कि मुसलिमों का दानवीकरण किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में तो इसकी याचिका भी डाली गई कि मीडिया का एक तबक़ा भी ग़लत ख़बर चलाकार मुसलिमों का दानवीकरण कर रहा है।
इस बीच मुसीबत में फँसे एक हिंदू परिवार की सहायता के लिए मुसलिमों का आगे आना साम्प्रदायिक नफ़रत फैलाने वालों के लिए ज़बरदस्त झटका है। 'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक के टुमकारू में टेलर का काम करने वाले शारीरिक रूप से विकलांग 60 साल के नारायण राव की मंगलवार को मौत हो गई थी। इसकी वजह बढ़ती उम्र से जुड़ी बीमारियाँ थीं। हालाँकि इनको कोरोना नहीं था फिर भी कई लोग कोरोना के डर से नहीं आए तो कुछ रिश्तेदार लॉकडाउन की वजह से। कॉलोनी में कोरोना की वजह से एक व्यक्ति की मौत होने और एक व्यक्ति के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उस कॉलोनी को सील किया गया था।
नारायण राव का अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा था। जब इनके निधन की जानकारी मुहम्मद खालिद को हुई तो वह दौड़े-भागे आए। मुहम्मद खालिद नारायण राव के बेटे एच.एन. पुनीत कुमार के दोस्त हैं। मुहम्मद खालिद ने अपने दूसरे 9 और साथियों को बुलाया और दुख की घड़ी में उनको ढाढस बंधाया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तिलक पार्क पुलिस थाना क्षेत्र में इन दस युवाओं को 'कोरोना वॉरियर्स' के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने न सिर्फ़ हिंदू परिवार की आर्थिक मदद की, बल्कि अंतिम संस्कार के लिए पूरी तैयारी की और अंतिम संस्कार कराया।
मुहम्मद खालिद ने 'द हिंदू' से कहा, 'हमारे दोस्त इमरान ने 5000 रुपये परिवार को दिए और हम शव को उठाकर एंबुलेंस में ले गए। कॉलोनी में ही रहने वाले मृतक के छोटे भाई और उनके दोनों बेटे कोरोना वायरस फैलने के डर से आने को तैयार नहीं थे।' उन्होंने कहा कि उन्होंने उनको विश्वास दिलाया कि 4 दिन पहले ही कोरोना टेस्ट में उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई थी और इसलिए कोरोना का ख़तरा नहीं है।
पुनीत कुमार ने कहा, 'मेरे मुसलिम भाइयों ने हमारी मदद की और काफ़ी अच्छे से ख़्याल रखा। उन्होंने सभी ज़रूरी व्यवस्था करना सुश्निचित किया और पूरी रात हमारे साथ जागते रहे।'