इराक़ में कुछ श्रीलंका जैसे ही हालात तब बने जब बुधवार को सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारी राजधानी बगदाद में स्थित संसद के अंदर घुस गए। ये प्रदर्शनकारी इराक़ के प्रभावशाली शिया आयतुल्लाह मोक्तदा अल सद्र के समर्थक थे।
इराक़ की संसद के अंदर से जो तस्वीरें सामने आई हैं उनसे कुछ दिन पहले श्रीलंका में जो हालात बने थे उसकी याद ताजा हो उठती है।
श्रीलंका में लोग दूसरी वजह से परेशान थे। वहां पर लंबे वक्त से पेट्रोल-डीजल, बिजली-पानी, दवाइयां, मिट्टी का तेल, खाने-पीने की चीजें लोगों को नहीं मिल पा रही थीं। महंगाई आसमान पर थी और इस वजह से लोग वहां की हुकूमत के खिलाफ सड़क पर उतर आए थे और अंत में राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा था।
लेकिन इराक़ में वजह दूसरी है। आयतुल्लाह सद्र के समर्थक प्रदर्शनकारियों की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि ईरान समर्थित शिया पार्टियों और उनके सहयोगियों के नेतृत्व वाले गठबंधन ने प्रधानमंत्री पद के लिए मोहम्मद अल-सुदानी को अपना उम्मीदवार बनाया है।
आयतुल्लाह सद्र और उनके समर्थक इसलिए मोहम्मद-अल-सुदानी का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनका ऐसा मानना है कि सुदानी ईरान के बेहद करीबी हैं।
हालांकि जब प्रदर्शनकारी संसद में घुसे तो इस दौरान संसद में कोई भी सांसद मौजूद नहीं था और सुरक्षाबलों के जवान ही थे।
प्रदर्शनकारी संसद के भीतर टेबल पर बैठ गए, उन्होंने कुर्सियों पर धमाचौकड़ी की और इराक़ी झंडे लहराए। बता दें कि इराक़ में पिछले 10 महीने से राजनीतिक संघर्ष चल रहा है।
ताकत दिखाने की कोशिश
बीते साल अक्टूबर में हुए चुनाव के बाद यह सबसे बड़ा प्रदर्शन है और इस प्रदर्शन के जरिए आयतुल्लाह सद्र ने अपने राजनीतिक विरोधियों को अपनी ताकत दिखाई है। इससे पहले जुलाई में भी ऐसा ही एक प्रदर्शन हुआ था।
शिया आयतुल्लाह मोक्तदा अल सद्र।
राजनीतिक गतिरोध
इराक़ में राजनीतिक दलों के बीच चल रही उठापटक की वजह से नई सरकार का गठन नहीं हो पाया है।। आयतुल्लाह सद्र चाहते हैं कि इराक़ के आंतरिक मामलों में अमेरिका और ईरान का प्रभाव पूरी तरह खत्म हो। आयतुल्लाह सद्र अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ मिलकर सरकार बनाने को तैयार नहीं हैं और इस वजह से भी नई सरकार के गठन का काम रुका हुआ है। अक्टूबर में हुए चुनाव में आयतुल्लाह सद्र के राजनीतिक दल को 329 सदस्यों वाली संसद में सबसे ज्यादा 74 सीटें मिली थीं।
इससे पहले भी इराक़ में साल 2010 में लंबा राजनीतिक गतिरोध चला था और तब 289 दिन तक नई सरकार का गठन नहीं हो सका था।
प्रदर्शन के बाद आयतुल्लाह सद्र ने एक ट्वीट कर अपने समर्थकों से घर लौट जाने के लिए कहा। साल 2016 में भी उनके समर्थकों ने ऐसा ही एक जोरदार प्रदर्शन किया था और तब भी वह देश की संसद में घुस गए थे और राजनीतिक सुधारों की मांग की थी।
संयुक्त राष्ट्र ने भी इस प्रदर्शन को लेकर प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि प्रदर्शन जरूरी हैं लेकिन यह कानून के मुताबिक और शांतिपूर्ण होने चाहिए।