मुकेश सहनी को झटका, सभी विधायकों ने वीआईपी छोड़ी, BJP को समर्थन
बिहार में बुधवार को एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम में विकासशील इंसान पार्टी यानी वाआईपी के तीनों विधायक- राजू सिंह, स्वर्णा सिंह और मिश्री लाल यादव ने पार्टी को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया। बुधवार की शाम तीनों विधायक विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा को बीजेपी के पक्ष में अपना समर्थन पत्र सौंप दिया।
बीजेपी के इस दाँव के बाद बिहार में बीजेपी की स्थिति मज़बूत हो गई है। बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों का समर्थन ज़रूरी है। अब एनडीए के पास 127 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। अपने तीन विधायकों के बल पर ही सहनी अक्सर बीजेपी को आँख दिखाया करते थे। लेकिन, बीजेपी के इस पासे से सहनी को बड़ा नुक़सान हुआ है।
बता दें कि यूपी चुनाव के बाद बिहार के बोचहां उपचुनाव को लेकर बीजेपी और मुकेश सहनी एक बार फिर आमने- सामने आ चुके हैं। बीजेपी ने इस सीट पर उम्मीदवार उतारा तो वीआईपी ने भी अपना प्रत्याशी इसी सीट पर उतार दिया। इससे पहले यूपी चुनाव के दौरान मुकेश सहनी से बीजेपी की तल्खी बढ़ी थी जब सहनी ने चुनाव तो अलग लड़ा ही, इसके साथ ही खुलकर सीएम योगी आदित्यनाथ और पीएम नरेंद्र मोदी पर हमला भी बोला था। इसको लेकर वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने एक दिन पहले ही सोशल मीडिया पर अंदेशा जताया था कि वे एनडीए से आउट हो सकते हैं।
उन्होंने अपने संदेश में कहा था कि बीजेपी के एक सांसद ने यूपी चुनाव में बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए प्रायश्चित करने को कहा था, ऐसा नहीं करने पर उन्होंने इसका बड़ा खामियाजा भुगतने की चेतावनी भी दी थी। अपने संदेश में उन्होंने बिहार एनडीए से खुद के आउट होने की बात भी स्वीकार की थी।
21 जुलाई तक मंत्री बने रहना अब मुश्किल
बीजेपी के नए दांव के बाद वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी का 21 जुलाई तक मंत्री बने रहना अब मुश्किल लग रहा है। उनका एमएलसी का कार्यकाल 21 जुलाई 2022 को ख़त्म हो रहा है। बीजेपी नेता विनोद नारायण झा के इस्तीफे से खाली हुई विधान परिषद सीट पर सहनी एमएलसी बने थे।
दरअसल, विनोद नारायण झा बेनीपट्टी से विधानसभा चुनाव जीते थे और उसके बाद उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता छोड़ दी थी। इसी सीट पर मुकेश सहनी को बीजेपी ने एमएलसी बनाया था, जबकि वह 6 साल यानी पूरे टर्म वाली सीट चाहते थे, लेकिन बीजेपी ने 'छोटे कूपन वाली सीट' से ही उनको रिचार्ज किया था।
बता दें कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अतिपिछड़ा कार्ड खेलते हुए अपने कोटे में आई 121 सीट में से 11 सीट वीआईपी को दी थी। 11 में से चार सीट पर वीआईपी को जीत भी मिली थी। इसी के साथ सहनी की ताक़त राजनीति में बढ़ गई। उनको वह विभाग दिया गया जिस मछुआरे की लड़ाई वे लड़ते रहे और आरक्षण की मांग करते रहे। अब बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में बीजेपी मुकेश सहनी को हटाकर अतिपिछड़ा वोट बैंक को आहत नहीं करना चाहती। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि वो 21 जुलाई तक इंतज़ार करेगी। अब देखना होगा कि वे मंत्री पद छोड़ते हैं या फिर टर्म ख़त्म होने का इंतज़ार करते हैं।
राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी बीजेपी
वीआईपी में टूट के बाद बिहार विधानसभा में दलों का गणित बदल गया है। अब बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। इससे पहले बीजेपी के पास 74 विधायक थे। अब वीआईपी के तीनों विधायकों के विलय के बाद उसके 77 विधायक हो गए हैं। जबकि आरजेडी अब राज्य में दूसरे स्थान पर आ गई है। उनके पास फ़िलहाल विधायकों की संख्या 75 है।