मध्य प्रदेश सरकार के एक फैसले के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव को पुराने पन्ने पलटने की सलाह दी जा रही है। मुख्यमंत्री को मशविरा दिया गया है, ‘राज्य को 4 लाख करोड़ के कर्ज से मुक्त नहीं करा सकते तो नये कर्ज के बोझ से बचाने की ठोस शुरुआत कर दीजिये।’
बता दें कि मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार ने मंगलवार को कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया है, ‘अब से राज्य सरकार अपने मंत्रियों का इनकम टैक्स नहीं भरेगी।’ राज्य की सरकार लंबे समय से मंत्रियों को मिलने वाले वेतन-भत्तों से जुड़ा टैक्स सरकारी खजाने से अदा करती चली आ रही है। मोहन यादव सरकार का निर्णय सकारात्मक है। इस निर्णय के बाद मध्य प्रदेश के सरकारी खजाने का हर साल 65-70 लाख रुपया बचेगा। सरकार की ओर से बताया गया कि बीते 5 सालों में मंत्रियों के करों पर 5.24 करोड़ रुपयों के लगभग की राशि व्यय हुई।
मोहन यादव सरकार के निर्णय पर विपक्ष स्मरण करवा रहा है, मंत्रियों और सरकार में होने वाली फिजूलखर्ची से जुड़ा लेखा-जोखा एक बार मुख्यमंत्री मोहन यादव बारीकी से पलट लें।
मिश्रा भले ही सलाह दें, लेकिन हकीकत यही है कि सरकार की आय और व्यय में भारी अंतर है। इसी के चलते निरंतर कर्ज लेकर कामकाज करना पड़ रहा है।मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता और मीडिया सेल के पूर्व चीफ के.के.मिश्रा ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘राज्य की सरकार पर कर्ज 4 लाख करोड़ होने जा रहा है। भारी-भरकम ब्याज इस पर अदा करना पड़ता है। प्रदेश के हर शख्स पर 50 हजार से ज्यादा का कर्ज है। बावजूद इसके सरकार बाज नहीं आती। कंबल ओढ़कर घी पीना सरकार को तत्काल बंद करना चाहिए।’ मुख्यमंत्री यादव को मिश्रा सलाह दे रहे हैं, ‘दिसंबर में सत्ता संभालने के बाद से आज तक कितना कर्ज लिया गया है, मुख्यमंत्री जी इसकी तस्दीक कर वास्तविक आंकड़ा राज्य की जनता के सामने रखें।’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘पुराना कर्ज जहां है, वहीं इस सिलसिले को रोककर राज्य की जनता को मुख्यमंत्री राहत देंगे, और फिजूलखर्ची के लिए आगे नया कर्ज नहीं लेंगे तो हम उनका उपकार मानेंगे।’
एमपी में लाड़ली बहना योजना लागू होने और इस योजना के तहत हर महीने 1.31 करोड़ महिलाओं को 1 हजार 250 रुपये देने के चलते 1 हजार 637 करोड़ करोड़ से ज्यादा का बोझ प्रतिमाह सरकारी खजाने पर आ रहा है। साल भर के इस खर्च को जोड़ा जाये तो 19 हजार 650 करोड़ हो रहा है।
इस योजना को विधानसभा चुनाव के ठीक पहले लागू किया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लागू योजना ने भाजपा की सत्ता में वापसी कराने में अहम रोल निभाया था। शिवराज सिंह ने योजना की राशि धीरे-धीरे बढ़ाकर 3 हजार करने की घोषण की हुई। महिला वर्ग राशि में वृद्धि की मांग सरकार से कर रहा है।
यह तो एक योजना या बानगी है। शिवराज सरकार के दौर की मुफ्त वाली अनेक ऐसी योजनाएं हैं, जिन्हें निरंतर रखने में खजाने पर कर्ज का बोझ द्रुत गति से बढ़ते चला जा रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह 12वी में उच्च अंक लाने वाले सरकारी स्कूलों के बच्चों को लैपटॉप के लिए 25 हजार रुपये की राशि खाते में स्थानांतरित करते थे। जाते-जाते वे योजना के लिए अहर्ता के प्रतिशत को घटा गये थे। लाखों बच्चे अहर्ता वाले हैं। इस बार खजाने के खस्ता हाल के कारण मोहन यादव लैपटॉप की राशि अभी तक नहीं दे पाये हैं।
एमपी के सीनियर जर्नलिस्ट अरुण दीक्षित ने भी ‘सत्य हिन्दी’ को दी गई प्रतिक्रिया में कहा, ‘3.24 करोड़ रुपये सरकार के लिए पान-गुटखे के खर्च से भी कम है। मोहन यादव को कुछ ठोस करना होगा। बात तभी बनेगी और प्रदेश की जनता को वास्तविक राहत तभी मिलेगी।’
जेट-हेलीकॉप्टर खरीद पर 487 करोड़ का बोझ
मोहन यादव सरकार एक जेट खरीद रही है। इसकी सभी औपचारिकताएं पूरी हो गई हैं। जेट 250 करोड़ में लिया जा रहा है। इस मूल्य (250 करोड़) पर 30 प्रतिशत टैक्स भी लगना है। यानी 75 करोड़ और कुल 325 करोड़ इस मद पर व्यय हो रहे हैं।
हैरत अंगेज तथ्य यह है कि 325 करोड़ का जेट राज्य के अनेक जिलों में उतर नहीं सकेगा। कुल 10 सीटर जेट को उतारने के लिए माकूल हवाई पट्टियां अभी नहीं हैं। बहुत साफ है, जेट आने के बाद हवाई पट्टियों के विस्तार या नई पट्टियां बनाने पर काफी राशि खर्च करना पड़ेगा।
जेट के अलावा एक नया हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए भी टेंडर तैयार है। कैबिनेट के अप्रूवल की औपचारिकता के बाद 125 करोड़ के आधुनिकतम तकनीकों से लैस हेलीकॉप्टर खरीदी का रास्ता भी जल्दी साफ हो जाने के संकेत सूत्र दे रहे हैं।
मंत्रियों पर अनाप-शनाप व्यय
मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं। इस मान से मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की अधिकतम संख्या 35 हो सकती है। मंत्रियों को मोटी तनख्वाह-भत्ते और बेहिसाब सुख-सुविधाएं विधि अनुसार दी जाती हैं।
कुछ पद रिक्त रखे जाने की परिपाटी बीते काफी वक्त से रही है। यदा-कदा ही पूरी संख्या में पद भरे गये। ऐसे हालात (कम मंत्रियों की संख्या) में भी मंत्रियों ने ऐश्वर्य नहीं छोड़ा है। भोपाल में कई-कई सरकारी गाड़ियां, एकमात्र विभाग वाले मंत्री के पास भी होती है। मंत्री पद मिलते ही सरकारी बंगलों पर करोड़ों की साज-सज्जा बंगला मिलते ही मंत्री कराता है।
भोपाल के अलावा जिले में भी सरकारी घर, सुख-सुविधाएं और स्टाफ का जुगाड़ सरकारी व्यय पर ही कर या करवा लिया जाता है। वाहनों में ईंधन की सीमा है, लेकिन बेहिसाब ईधन और अनगिनत वाहन रखा जाना आम बात हो गई है।
कई विभाग वाले मंत्रियों के पास हर विभाग के वाहन, विभागों से जुड़ी...बड़े बजट वाली संस्थाओं (निगम-मंडल या अन्य उपक्रमों) से सुख-सुविधाएं लूटने संबंधी खबरों को अब मीडिया में बहुत स्पेस मिलना बंद हो चुका है। सरकार, ऐसे समाचारों की कतरनों पर गौर नहीं करती। कार्रवाई नहीं करती।
800 पूर्व विधायकों की पेंशन-भत्तों पर भारी-भरकम खर्च
मध्य प्रदेश में पूर्व विधायकों की संख्या 800 है। विधायक भले ही एक दिन रहा हो, वह पेंशन-भत्ते और सुविधाओं का अधिकारी हो जाता है।
पूर्व विधायक को 20 हजार पेंशन, 15 हजार रुपये स्वास्थ्य भत्ता, राज्य में असीमित यात्राओं के रेल कूपन और राज्य के बाहर जाने यात्राओं पर 16 हजार रुपये साल का भत्ता मिलता है।
वेतन-भत्ते और यात्रा सुविधओं के अलावा पूर्व विधायकों को दिल्ली यात्रा पर मप्र भवन या मध्यांचल में पूरे साल में 30 दिन मुफ्त रुकने की सुविधा है। विधायक यदि भोपाल आता है तो उसे विधायक विश्राम गृह में ठहराने का इंतजाम विधानसभा करती है।
पूर्व विधायक कई बार का है तो उसे हर साल के मान से 800 रुपये दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर गोपाल भार्गव लगातार 9वीं बार विधायक बने हैं। पूर्व विधायक हो जाने पर उन्हें मौजूदा पेंशन और भत्तों के अलावा 9 टर्म (एक टर्म 5 सालों का होता है यानी 45 महीनों के मान से) के 800 गुणित 45 कुल 36 हजार रुपया और देय होगा।
‘महंगाई की मार, पेंशन 75 हजार करो’
मोहन यादव सरकार ने मंगलवार को फैसला किया, टैक्स मंत्री स्वयं भरेंगे। उधर मप्र के पूर्व विधायकों के संगठन ने मंगलवार को ही मप्र विधानसभा के स्पीकर से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपना।
ज्ञापन में भारी महंगाई की दुहाई देते हुए पूर्व विधायकों के संगठन ने मांग की है, ‘मौजूदा पेंशन-भत्ते और सुविधाएं कम हैं। पेंशन-भत्ते को 75 हजार कीजिये और अन्य सुविधाएं भी बढ़ाइये।’
एक नेता ले रहा है कई-कई पेंशन का लाभ
मप्र में नेताओं के लिए कई पेंशनों का मार्ग प्रशस्त है। मसलन विधायक और सांसद रहा है तो दोनों पेंशन लेने का वह हकदार है। यही नहीं यदि कोई पूर्व विधायक-पूर्व सांसद सरकारी सेवा में रहा है तो वह रिटायर्ड (वी.आर.एस. के बाद बनने वाली पात्रतानुसार) अधिकारी-कर्मचारी वाली पेंशन प्राप्त करने का भी अधिकार रखता है।
इन सबके साथ यदि कोई मीसाबंदी (इमरजेंसी में जेल में निरूद्ध रहा) है और उसे वह पेंशन मिल रही है तो उस पेंशन को भी हासिल कर सकता है। मप्र में मीसा वाली पेंशन 30 हजार है।
ये और ऐसी अनेक व्यवस्थाएं हैं, जिनके पन्ने पलटने की सलाह मुख्यमंत्री यादव को दी जा रही है। अनुरोध किया जा रहा है, ‘ऐसी बड़ी मदों वाली फिजूलखर्ची पर सीएम साहब रोक लगाने या पुराने निर्णयों को पलटने की पहल करेंगे, तो सरकारी खजाने का बोझ और जनता की गाड़ी कमाई लूटने से बच पायेगी।’