मोदी सरकार ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए कृषि क़ानूनों को रद्द कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को इस बात का एलान राष्ट्र के नाम संबोधन में किया। किसान आंदोलन बीजेपी और मोदी सरकार के लिए जी का जंजाल बन चुका था।
मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने किसानों की भलाई के लिए ये क़ानून बनाए थे और इनकी मांग कई सालों से की जा रही थी। लेकिन किसानों का एक वर्ग लगातार इसका विरोध कर रहा था, इसे देखते हुए ही सरकार इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में इन कृषि क़ानूनों को रद्द करने की प्रक्रिया को पूरा कर देगी। बता दें कि 29 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र भी शुरू हो रहा है।
प्रधानमंत्री ने आंदोलन कर रहे किसानों से आह्वान किया कि वे अब अपने घर लौट जाएं और एक नई शुरुआत करें।
बीजेपी को इस बात का डर था कि किसान आंदोलन के कारण उसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव में बड़ा सियासी घाटा हो सकता है।
एक साल का कठिन संघर्ष
26 नवंबर को किसानों के आंदोलन को एक साल का वक़्त पूरा होने जा रहा था। एक साल के दौरान किसान ठंड, गर्मी और भयंकर बरसात से भी नहीं डिगे और खूंटा गाड़कर बैठे रहे। इस दौरान उन्होंने रेल रोको से लेकर भारत बंद तक कई आयोजन किए। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए किसान बैठे हैं जबकि टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर हरियाणा और पंजाब के किसानों का जमावड़ा है।
सियासी माहौल गर्म
किसान आंदोलन को लेकर पिछले एक साल से देश का सियासी माहौल बेहद गर्म है। तमाम विपक्षी दल किसानों की आवाज़ को संसद से लेकर सड़क तक उठा रहे हैं। मरकज़ी सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की बातचीत भी हुई थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला था।किसानों का कहना था कि तीनों कृषि क़ानून रद्द होने और एमएसपी को लेकर गारंटी एक्ट बनाए जाने तक वे अपना आंदोलन जारी रखेंगे। तमाम विपक्षी दलों के किसान आंदोलन को समर्थन देने के बाद भी मोदी सरकार बुरी तरह घिर गई थी।
देखना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस एलान के बाद किसान अपना आंदोलन ख़त्म करते हैं या नहीं।