दुनिया भर में अभी तक यही आँकड़ा आया है कि कोरोना वायरस से महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की ज़्यादा मौत हो रही है। इस पर सीधा सवाल यही कौंधता है कि ऐसा क्यों हो रहा है क्या वायरस पुरुषों को चुन-चुन कर हमला कर रहा है यह सवाल बचकाना लग सकता है, लेकिन गंभीर लोगों के मन में भी एक बार तो यह विचार आ ही जाएगा!
इस सवाल के जवाब में अलग-अलग व्याख्याएँ और तर्क हो सकते हैं। जैसे, महिलाएँ घर से बाहर कम निकलती हैं इसलिए इस वायरस के संपर्क में कम आती हैं। या फिर पुरुष धूम्रपान ज़्यादा करते हैं और महिलाएँ कम। कोरोना वायरस का हमला भी फेफड़े पर होता है। एक यह भी दलील है कि महिलाएँ ज़्यादा स्वच्छता बरतती हैं। ये सब बातें सही हैं। लेकिन इसमें एक और ज़्यादा अहम बात है। और वह यह है कि सिर्फ़ कोरोना वायरस के मामले में ही नहीं, हर बीमारी से लड़ने और बीमारी से जल्दी उबरने में महिलाओं का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर रहा है।
यह इसलिए है कि जब सवाल सर्वाइवल यानी जीने की संभावना का आता है तो महिलाओं से पुरुष कमज़ोर साबित हुए हैं। चाहे शारीरिक रूप से कितने ही ताक़तवर क्यों न हों। चाहे शरीर की लंबाई-चौड़ाई और आकार कितना भी बड़ा क्यों न हो।
यह बात जन्म के समय और बाद में भी लड़का और लड़की के जीवित रहने के आँकड़ों में भी साफ़ दिखती रही है। अमेरिका की सरकारी संस्था यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थ यानी एनसीबीआई की 2014 की एक रिपोर्ट है कि दुनिया के अधिकतर देशों में लड़की के जीवित रहने की संभावना अधिक है। हालाँकि भारत में महिलाओं के प्रति सामाज के नज़रिए के कारण ऐसा नहीं है। भारत में भ्रूण हत्या और लड़की के जन्म लेने पर हत्या जैसे मामलों के कारण भारत में लड़कियों की मृत्यु दर अधिक है। यानी ऐसी हत्याओं को छोड़ दें तो लड़कियों के जीवित रहने की संभावना ज़्यादा रहती है।
बच्चों की बात छोड़ भी दें तो बुजुर्गों में भी यही ट्रेंड दिखता है। रिपोर्टों के अनुसार, 100 साल पूरा करने वाले लोगों में से 80 फ़ीसदी महिलाएँ होती हैं। 110 साल पूरा करने वालों में 95 फ़ीसदी महिलाएँ होती हैं। ऐसा तब है जब पुरुष सामान्य तौर पर महिलाओं की अपेक्षा शारीरिक तौर पर ज़्यादा बलवान होता है। ऐसा अक्सर मान लिया जाता है कि महिलाओं की मृत्यु दर अलग-अलग लाइफ़ स्टाइल, काम और गतिविधियों के कारण है। लेकिन महिलाओं के बीमारी से लड़ने और ज़्यादा लंबे समय तक जीवित रहने के पीछे एक ख़ास वजह है।
एक वैज्ञानिक और चिकित्सक शरॉन मोअलेम ने इसके वैज्ञानिक पहलू को समझाया है। 'द बेटर हाफ़: ऑन द जेनेटिक सुपीरियरिटी ऑफ़ वीमेन' नाम की किताब लिखने वाले शरॉन ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा है कि यह दरअसल पुरुष और महिला के शरीर की अंदरुनी बनावट के कारण ऐसा होता है। यानी यदि सर्वाइवल का सवाल हो तो महिलाएँ ज़्यादा ताक़तवर होती हैं। वह लिखते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरुष और महिलाओं में क्रोमोसोम अलग-अलग होते हैं।
क्रोमोसोम को आसान भाषा में इस तरह समझिए। हर जीवित प्राणी में सेल होता है। और यह सेल जीवन की सबसे छोटी इकाई है। एक मनुष्य के शरीर में अरबों सेल होते हैं। इन सेल के केंद्र में क्रोमोसोम होते हैं। इसमें भी दो तरह के क्रोमोसोम ‘X’ और ‘Y’ होते हैं और यही ‘X’ और ‘Y’ क्रोमोसोम तय करते हैं कि भ्रूण में लड़का होगा या लड़की। बच्चों में ये क्रोमोसोम माता-पिता दोनों से आते हैं। सामान्य तौर पर लड़की में ‘XX’ क्रोमसोम होते हैं और लड़का में ‘XY’। यानी महिलाओं में दो ‘X’ क्रोमसोम होते हैं।
महिलाओं में ‘X’ क्रोमसोम के दो होने का ही फ़ायदा महिलाओं को ज़्यादा मिलता है। शरॉन मोअलेम लिखते हैं कि ‘X’ क्रोमसोम काफ़ी महत्वपूर्ण हैं। यही ‘X’ क्रोमोसोम दिमाग़ और इम्यून सिस्टम यानी बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता को बनाते हैं और इस क्षमता को बनाए रखते हैं। महिला जब बीमार पड़ती है या वायरस, बैक्टिरिया या फंगस का शरीर यानी सेल पर हमला होता है तो महिलाओं में एक ‘X’ क्रोमसोम उससे लड़ता है और यदि पूरा सेल ही उसकी चपेट में हो तो उसको मार भी देता है। यानी महिलाओं में एक ‘X’ क्रोमसोम लड़ते रहता है तो उनका दूसरा ‘X’ क्रोमसोम रिज़र्व में होता है। यही कारण है कि फिर उस बीमारी से महिलाओं को उबरने में पुरुषों की अपेक्षा कम समय लगता है।
लेकिन ऐसा पुरुषों के साथ नहीं है। पुरुषों में सिर्फ़ एक ही ‘X’ क्रोमसोम होता है और दूसरा 'Y'। साधारण भाषा में कहें तो बीमारी की स्थिति में ‘X’ क्रोमसोम उस एक अकेले सैनिक की तरह लड़ते रहता है और जब ख़ुद भी घायल हो जाता है तो फिर युद्ध जीतने से ज़्यादा उसे ख़ुद के स्वस्थ होने में जुटना होता है।
यानी साफ़-साफ़ कहें तो यह महिलाओं में दो ‘X’ क्रोमसोम ही हैं जो उन्हें को बीमारी से लड़ने में ज़्यादा सक्षम और ताक़तवर बनाते हैं। शायद यही कारण है कि कोरोना वायरस को लेकर इटली में जो एक सर्वे आया है उसमें यह ट्रेंड दिखता है। इटली के नेशनल हेल्थ इंस्टीच्यूट के मुताबिक़, कोरोना संक्रमित हुए लोगों में 60 प्रतिशत पुरुष हैं, जबकि कोरोना से मारे गए लोगों में मर्दों की तादाद 70 प्रतिशत है।