मणिपुर में हिंसा क़रीब डेढ़ साल बाद भी क्यों नहीं रुक पा रही है? क़रीब दो महीने पहले ही राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने वादा किया था कि केंद्र की मदद से छह महीने में राज्य में पूर्ण शांति बहाल कर दी जाएगी? तो सवाल है कि यदि शांति के प्रयास चल रहे हैं तो लगातार हत्याएँ और हिंसा क्यों हो रही हैं?
मुख्यमंत्री भले ही राज्य में शांति बहाली के दावे कर रहे हैं, लेकिन हालात अब और बदतर होते दिख रहे हैं। मणिपुर मुठभेड़ में 10 उग्रवादियों के मारे जाने के एक दिन बाद मंगलवार को 2 मैतेई लोग मृत पाए गए हैं। इसके अलावा राहत शिविर से 6 लोग लापता हैं। पुलिस ने ही यह जानकारी दी है। पुलिस ने बताया कि मणिपुर के जिरीबाम में मंगलवार सुबह दो मैतेई लोगों के शव घरों से बरामद किए गए। एक दिन पहले सुरक्षा बलों ने इलाके में 10 संदिग्ध आतंकवादियों को मार गिराया था। पुलिस ने यह भी बताया कि इलाके में राहत शिविर में रह रहे छह लोग सोमवार को हुई गोलीबारी के बाद से लापता हैं।
जिरीबाम जिले के जकुराधोर और बोरोबेकरा इलाकों में सोमवार दोपहर को हमार समुदाय के माने जाने वाले हथियारबंद लोगों और सुरक्षा बलों के बीच बड़ी गोलीबारी हुई। जकुराधोर में सीआरपीएफ चौकी और पास के बोरोबेकरा पुलिस स्टेशन पर भी गोलीबारी हुई। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय निवासियों ने बताया कि संदिग्ध आतंकवादियों ने दिन में इलाके में मैतेई बस्तियों में घरों और दुकानों पर भी हमला किया था।
पुलिस के अनुसार मंगलवार सुबह पुलिस ने जकुराधोर इलाके के घरों से लैशराम बरेल सिंह (63) और मैबाम केशवो सिंह (71) के शव बरामद किए। दोनों बोरोबेकरा पुलिस स्टेशन के एक राहत शिविर में रह रहे थे और सोमवार की गोलीबारी के बाद से शिविर से लापता हुए 10 लोगों में से थे।
रिपोर्ट में स्थानीय लोगों के हवाले से कहा गया है कि दिन के समय राहत शिविर में रहने वाले लोग बाहर निकल जाते हैं। सोमवार को जब गोलीबारी और आगजनी शुरू हुई तो लोग इधर-उधर भागने लगे और जब यह घटना शांत हुई तो पता चला कि राहत शिविर से 10 लोग लापता हैं। रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार सुबह दो शव बरामद हुए और दो अन्य जीवित पाए गए, तीन महिलाएं और तीन बच्चे अभी भी लापता हैं।
क़रीब दो महीने पहले ही बीरेन सिंह राज्य में जल्द ही शांति लाने का वादा कर चुके हैं। मणिपुर में छह महीने के अंदर शांति बहाली लाने का मुख्यमंत्री का दावा किए एक हफ़्ता भी नहीं हुआ था कि राज्य फिर से दहल उठा। रॉकेट से हमला तक हुआ।
उसके एक दिन बाद मणिपुर के जिरीबाम जिले में कम से कम पांच लोगों की हत्या कर दी गई थी। उससे कुछ दिन पहले एक बीजेपी नेता के घर को जला दिया गया था। फिर अगले कुछ दिनों में ड्रोन से हमले हुए और इम्प्रोवाइज्ड रॉकेट दागे गए। अब तो महिलाओ से बलात्कार और हत्या की कई ख़बरें भी आ गई हैं। यानी मणिपुर में हिंसा नये सिरे से सर उठा रही है।
3 मई 2023 से मणिपुर में मैतेई और कुकी-ज़ो समुदाय के बीच हिंसक संघर्ष जारी है। मार्च 2023 में हाईकोर्ट के आदेश में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को कहा गया था। इस आदेश पर प्रतिक्रिया हुई और 3 मई को कुकी-जो छात्रों द्वारा कैंडल मार्च निकाला गया। इसके बाद हिंसा शुरू हुई और अगले 3 दिनों में ही कम से कम 52 लोगों की मौत हो चुकी थी।
आने वाले दिनों में दो समुदायों के बीच यह हिंसा बढ़ती रही। आज स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि इस संघर्ष में 237 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, 1500 से अधिक लोग घायल हैं, 32 से अधिक लापता हैं, सुरक्षा बलों के 16 जवानों की मौत हो चुकी है, 14 हज़ार से अधिक घर गिराए जा चुके हैं और 60 हज़ार से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा है।
राज्य में यह हिंसा क़रीब डेढ़ साल से जारी है और न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार इसको काबू कर पा रही है। विपक्षी दलों द्वारा तमाम दबाव बनाने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी अब तक राज्य का दौरा तक नहीं कर पाए हैं। उनपर आरोप तो यहाँ तक लगता है कि वह मणिपुर हिंसा का नाम लेने से भी बचते हैं।
देश के गृहमंत्री अमित शाह भी मणिपुर हिंसा को काबू करने में विफल साबित हुए हैं। उन्होंने राज्य में हिंसा रोकने के लिए कई प्रयास किए लेकिन हिंसा बदस्तूर जारी है। भारत के सुदूर पूर्वोत्तर में स्थित और म्यांमार-बांग्लादेश की सीमाओं से जुड़ा मणिपुर, केवल एक राज्य नहीं है, बल्कि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा है।