राजस्थान में बीते एक महीने में हिंदू संगठनों का दो बार आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ टकराव हो चुका है। पहला टकराव मीणा और दूसरा भील समुदाय के साथ हुआ है। भील समुदाय के साथ क्यों विवाद हुआ, पहले इस बारे में बात करते हैं। भील समुदाय राणा पूंजा भील को अपना नायक मानता है। 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस था। उदयपुर जिले में रेती स्टैंड के पास राणा पूंजा भील चौराहा है।
विश्व आदिवासी दिवस वाले दिन कुछ लोगों ने वहां भगवा झंडा लगा दिया। आदिवासी समुदाय इसके ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आया और उसने भगवा झंडे को हटा दिया। आदिवासी समुदाय के नेताओं ने आरोप लगाया कि यह भगवा झंडा बीजेपी और संघ परिवार की ओर से लगाया गया है और यह आदिवासी समुदाय की पहचान और संस्कृति के ख़िलाफ़ है।
इस मामले में बीजेपी नेताओं और भील समुदाय के लोगों के बीच तीखी नोक-झोंक भी हुई। हालांकि बीजेपी ने इससे इनकार किया कि उसके या संघ के कार्यकर्ताओं ने यह झंडा लगाया है।
आदिवासी समुदाय के लोगों का कहना है कि यहां पर आदिवासी समुदाय का ही झंडा लगना चाहिए। उन्होंने ‘जय जोहार का नारा है, भारत देश हमारा है’ और ‘राणा पूंजा अमर रहे’ के नारे भी लगाए।
कौन हैं राणा पूंजा भील?
इतिहासकारों के मुताबिक़, 16वीं सदी में मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप ने जब अकबर के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ा था, तब पूंजा भील ने उनकी मदद की थी। पूंजा भील के पास अपनी भील सेना थी, जो गुरिल्ला युद्ध में बहुत कुशल थी।
इतिहासकार रीमा हूजा ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहती हैं कि उस दौरान आदिवासी भील समुदाय ख़ुद ही महाराणा प्रताप की मदद के लिए आगे आया था और उनका नेतृत्व पूंजा भील ने किया था। इसके बाद उन्हें राणा का टाइटल दिया गया था। आदिवासी समुदाय की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों ने बीते कुछ सालों में राणा पूंजा भील को अपने आइकॉन के रूप में सामने रखा है।
इस बीच, अलग भील प्रदेश की मांग भी उठती रही है। भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का कहना है कि भील आबादी के बहुल जिलों को मिलाकर एक भील प्रदेश बनाया जाना चाहिए।
बीजेपी को सियासी नुक़सान
अपने समुदाय के महानायकों की पहचान के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों के इस उभार से बीजेपी को राजस्थान में सियासी नुक़सान हो रहा है। मेवाड़ के इलाक़े में बीजेपी को काफ़ी मजबूत माना जाता था लेकिन बीते कुछ सालों में यहां बीटीपी का जनाधार बढ़ा है और 2018 के विधानसभा चुनाव में उसे दो सीटों पर जीत मिली थी।
मीणा समुदाय के साथ विवाद
अब बात करते हैं मीणा समुदाय के साथ हुए विवाद की। राजस्थान के ही आमागढ़ में स्थित किले पर झंडे को लेकर बीते महीने जबरदस्त विवाद हुआ था। आमागढ़ के किले पर एक भगवा ध्वज लगा हुआ था। लेकिन हिंदू संगठनों ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस से जुड़े पूर्व विधायक रामकेश मीणा और मीणा समुदाय के कुछ लोगों ने इस झंडे को फाड़ दिया था।
इस मामले में आदिवासी समुदाय के लोगों का कहना था कि हिंदू संगठन आदिवासी प्रतीकों और संस्कृति को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। रामकेश मीणा ने भी कहा कि मीणा समुदाय हिंदू नहीं है और उसकी अपनी संस्कृति है।
इसके बाद बीजेपी के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा बीच में कूद गए और उन्होंने वहां मीणा समुदाय के देवता का झंडा फहरा दिया था। मीणा ने कहा था कि आदिवासी हिंदू थे, हिंदू हैं और हिंदू रहेंगे और जो भी इस सत्य को नकारेगा वो इस धरती से मिट जाएगा।
दर्ज हुई थीं चार एफ़आईआर
यह मामला इस क़दर तूल पकड़ गया था कि इसमें चार एफ़आईआर दर्ज हुई थीं। एक एफ़आईआर सुदर्शन टीवी के संपादक सुरेश के चव्हाण के ख़िलाफ़ भी दर्ज हुई थी क्योंकि उनका एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह मीणा समुदाय के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल कर रहे थे।
दोनों ही मामलों में भील और मीणा समुदाय का विवाद बीजेपी, संघ और हिंदू संगठनों से लोगों के साथ हुआ है। क्योंकि इन दोनों मामलों में सोशल मीडिया पर भी जमकर बयानबाज़ी हुई थी। तमाम हिंदू संगठन, बीजेपी और संघ से जुड़े लोग एक तरफ थे और भील और मीणा समुदाय एक तरफ़।
इन दोनों ही मामलों में आदिवासी समुदाय की मांग यही थी कि हिंदू राजनीति करने वाले लोग उनकी संस्कृति के बीच में न आएं और उनकी अलग पहचान रहने दें। हालांकि इन दोनों समुदायों में बीजेपी से जुड़े नेता उन्हें हिंदुओं के साथ जोड़ते हैं।