दुनिया भर के मीडिया के हालात पर नज़र रखने वाली एक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रेस की आज़ादी और कम हुई है! मीडिया के काम करने की स्वतंत्रता को लेकर उस संस्था द्वारा तैयार किए जाने वाले सूचकांक में भारत पिछले साल के 142वें स्थान से फिसलकर 150वें स्थान पर पहुँच गया है। इस मामले में श्रीलंका में भारत से बेहतर स्थिति है और वह सूचकांक में 146वें स्थान पर है। इसके साथ ही भारत प्रेस की आज़ादी के मामले में पाकिस्तान के क़रीब पहुँच गया है। पाकिस्तान उस सूचकांक में 157वें स्थान पर है। तो सवाल है कि ऐसा क्या हो गया कि भारत 2016 में जहाँ 133वें स्थान पर था वह 2018 में 138वें, 2021 में 142वें और अब 150वें स्थान पर पहुँच गया?
इस सवाल का जवाब बाद में, पहले इस सूचकांक के बार में जानिए। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने यह सूचकांक जारी की है। इसने विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस यानी मंगलवार को यह सूचकांक जारी किया। इस सूचकांक में भारत की स्थिति कैसी है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 180 देशों के सूचकांक में भारत 150वें स्थान पर आ गया है। यानी भारत से बेहतर हालात 149 देशों में हैं और सिर्फ़ 30 देश ही ऐसे हैं जहाँ भारत से भी स्थिति ख़राब है।
तो भारत की ऐसी स्थिति कैसे हुई? इस सवाल का जवाब रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने ही दिया है। अंतरराष्ट्रीय ग़ैर-लाभकारी संगठन ने अपनी वेबसाइट पर एक बयान में कहा, 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और नौ अन्य मानवाधिकार संगठनों ने भारतीय अधिकारियों से पत्रकारों और ऑनलाइन आलोचकों को उनके काम के लिए निशाना बनाना बंद करने के लिए कहा।'
भारत में पत्रकारों के काम करने की आज़ादी को किस तरह बाधित किया जाता है, यह रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की इस टिप्पणी से साफ़ पता चलता है। सैकड़ों ऐसे उदाहरण हैं जहाँ पत्रकारों को इसलिए निशाना बनाया गया कि उन्होंने सवाल उठाए और सचाई बतायी या दिखाई। पत्रकारों पर शारीरिक हमले तो हुए ही, मुक़दमे भी लादे गए।
संस्था की रिपोर्ट में भी साफ़ तौर पर कहा गया है कि 'भारतीय अधिकारियों को आतंकवाद और देशद्रोह क़ानूनों के तहत पत्रकारों पर मुक़दमा चलाना बंद कर देना चाहिए।'
यह टिप्पणी इसलिए अहम है कि केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन, यूपी के बलिया के पत्रकार दिग्विजय सिंह, अजीत ओझा, मनोज गुप्ता जैसे कई पत्रकारों पर मुक़दमे किए गए। सिद्दीक कप्पन तो अभी भी जेल में बंद हैं। विनोद दुआ जैसे पत्रकारों पर तो राजद्रोह का मुक़दमा कर दिया गया था। यदि इस तरह के डराने-धमकाने के प्रयास होंगे तो पत्रकार कितनी आज़ादी के साथ ख़बरें रिपोर्ट करेंगे!
सिद्दीक कप्पन
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स यानी रिपोर्टर्स सेन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) ने कहा है कि भारतीय अधिकारियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करना चाहिए और आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए राजनीति से प्रेरित या ऐसे आरोपों में हिरासत में लिए गए किसी भी पत्रकार को रिहा करना चाहिए। इसके साथ ही इसने कहा है कि उन्हें निशाना बनाना व स्वतंत्र मीडिया का गला घोंटना बंद करना चाहिए।
इसने कहा, 'अधिकारियों द्वारा पत्रकारों को निशाना बनाए जाने के साथ-साथ विरोध पर व्यापक कार्रवाई ने हिंदू राष्ट्रवादियों को ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों तरह से भारत सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को धमकाने, परेशान करने और दुर्व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया है।'
वैश्विक परिदृश्य को लेकर आरएसएफ़ ने कहा कि 20वें विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक से पता चलता है कि 'ध्रुवीकरण' में दो गुना वृद्धि हुई है। इसने कहा है कि मीडिया का ध्रुवीकरण देशों के भीतर तो विभाजन को बढ़ावा देता है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच ध्रुवीकरण को भी बढ़ाता है।
भारत के पड़ोसी नेपाल 30 स्थान ऊपर आया
नेपाल को छोड़कर भारत के पड़ोसियों की रैंकिंग में भी गिरावट आई है। नेपाल 106वें स्थान से 30 स्थान ऊपर 76वें स्थान पर पहुँच गया है। बांग्लादेश 162वें और म्यांमार 176वें स्थान पर है।
इस साल नॉर्वे (प्रथम), डेनमार्क (दूसरा), स्वीडन (तीसरा) एस्टोनिया (चौथा) और फ़िनलैंड (पांचवां) ने शीर्ष स्थान हासिल किया। उत्तर कोरिया 180 देशों की सूची में सबसे नीचे रहा। चीन दो स्थान ऊपर चढ़कर 175वें स्थान पर पहुँच गया है।