लाइव टीवी चैनलों पर अब अक्सर गालियों की भाषा क्यों इस्तेमाल हो रही है क्या टीवी चैनलों पर गालियाँ ही आज की सच्चाई है क्या टीआरपी की जद्दोजहद में चीखना-चिल्लाना और गालियाँ देना टीवी चैनलों की ज़रूरत का नतीजा है या फिर पत्रकारिता को ही तिलांजलि दे दी गई है ये सवाल इसलिए कि अब डिबेट कार्यक्रम हो या लाइव कवरेज, गालियों का लाइव प्रसारण भी अक्सर हो जा रहा है। लाइव डिबेट में कांग्रेस के प्रवक्ता दिवंगत राजीव त्यागी द्वारा अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने से इस पर हंगामा खड़ा हुआ था और फिर जनरल जीडी बख़्शी द्वारा माँ की गाली देने तक यह मामला पहुँच गया था। अब लाइव कवरेज के दौरान एक रिपोर्टर ने भी ऐसी ही गाली निकाल दी है। इस पर काफ़ी हंगामा मचा है।
ताज़ा मामला रिपब्लिक चैनल पर गाली के प्रसारण का है। सुशांत सिंह राजपूत केस में ड्रग्स के इस्तेमाल के आरोपों की जाँच कर रहे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की टीम ने शुक्रवार को रिया चक्रवर्ती के घर और सैमुअल मिरांडा के घर पर छापा मारा। इसी दौरान घटनास्थल पर मौजूद एक रिपोर्टर ने माँ की गालियाँ दे दी। इसका ‘रिपब्लिक टीवी’ पर लाइव प्रसारण हो गया। सोशल मीडिया पर लोग दावा कर रहे हैं कि गाली देना वाला रिपोर्टर ‘रिपब्लिक टीवी’ का है, जबकि चैनल ने इन आरोपों को खारिज किया है।
रिपब्लिक टीवी ने ट्विटर पर बयान जारी कर कहा कि 'अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले एक रिपोर्टर की वीडियो क्लिप वायरल हो रही है। रिपोर्टर रिपब्लिक टीवी का नहीं, बल्कि किसी अन्य चैनल का है और वह हमारी कार में लिफ्ट ले रहा था। सवाल उस रिपोर्टर से पूछे जा सकते हैं। इसे रिपब्लिक का रिपोर्टर बताने वाले के ख़िलाफ़ रिपब्लिक सख़्त क़ानूनी कार्रवाई करेगा।'
बहरहाल, इस सफ़ाई के बावजूद सोशल मीडिया पर लोग रिपब्लिक टीवी पर सवाल उठा रहे हैं। सूरज कुमार बौद्ध ने लिखा, 'अगर वह रिपोर्टर आपकी कार में लिफ्ट ले रहा था और अश्लील बातें कर रहा था तो क्या आप उस चैनल और रिपोर्टर का नाम बताएँगे यदि आप खुलासा नहीं करते हैं तो हमारा पूरा आरोप रिपब्लिक टीवी पर लगेगा।'
वरिष्ठ पत्रकार संकेत उपाध्याय ने तंज कसते हुए ट्वीट किया, 'जल्द ही, न्यूज़ चैनल एज रिस्ट्रिक्शन के साथ आएँगे। U, UA, 7+, 13 + & 18'।
वैसे, रिपब्लिक चैनल पर यह गाली का प्रसारण पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी गाली का प्रसारण हो गया था। चैनल पर लाइव डिबेट चल रही थी। डिबेट का मुद्दा भारत-चीन सीमा विवाद था। लाइव डिबेट के बीच बात इतनी बढ़ गई थी कि एक पैनलिस्ट मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी बख्शी ने माँ की गाली दे दी। उनके सामने बहस पर हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रवक्ता दानिश रिजवान थे। यह मुद्दा काफ़ी विवादों में रहा और इसकी ज़बरदस्त आलोचना की गई।
सोशल मीडिया पर भी लोगों ने लिखा कि जीडी बख़्शी साहब की देश के प्रति जो सेवाएँ हैं उनका हर कोई सम्मान करता है, लेकिन जिस तरह के शब्द उन्होंने लाइव डिबेट में इस्तेमाल किए हैं, वो ग़लत हैं।
लाइव प्रसारण में ऐसी ही गाली-गलौज का मामला न्यूज़ नेशन टीवी पर आया था। मशहूर पत्रकार दीपक चौरसिया राम मंदिर निर्माण पर डिबेट करा रहे थे। इस बीच बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम शुक्ला और इसलामिक स्कॉलर के तौर पर पेश किए गए इलियास शराफुद्दीन के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों तरफ़ से 'कौवे', 'सुअर', 'कुत्ते' जैसे अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया और दोनों तरफ़ से भाषा की मर्यादा लाँघी गई। हालाँकि दीपक चौरसिया ने दोनों को रोकने की कोशिश की, लेकिन इसी बीच इलियास शराफुद्दीन ने लाइव डिबेट में ही बीजेपी प्रवक्ता के लिए गालियाँ दे दीं। इसके बाद दीपक चौरसिया ने उन्हें तुरंत लाइव शो से हटा दिया और इसके लिए उन्होंने माफ़ी भी माँगी थी।
इससे पहले अपशब्दों के प्रयोग का एक मामला ‘न्यूज़ इंडिया 18’ की लाइव डिबेट में भी हुआ था। क़रीब दो साल पहले एंकर अमीश देवगन मॉब लिंचिंग डिबेट शो करा रहे थे और उसमें तब के कांग्रेस प्रवक्ता और अब दिवंगत राजीव त्यागी भी शामिल थे। डिबेट के दौरान राजीव त्यागी ने आरोप लगाया था कि वह एकतरफ़ा एंकरिंग कर रहे थे और इसी को लेकर उन्होंने अमीश देवगन के लिए अपशब्द कहे थे। उसी कार्यक्रम में जब उन शब्दों के लिए अमीश देवगन ने माफ़ी माँगने को कहा तो त्यागी ने कहा कि उन्होंने कुछ भी ग़लत नहीं कहा है और उन्होंने फिर से उन शब्दों को दोहराया।
तब इस मुद्दे पर देश भर में बहस हुई थी कि आख़िर ऐसी स्थिति क्यों आन पड़ी। राजीव त्यागी का पिछले महीने ही दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। निधन से कुछ देर पहले ही उन्होंने आज तक टीवी चैनल में एक डिबेट शो में भाग लिया था। तब राजीव त्यागी के परिवार ने आरोप लगाया था कि उस डिबेट में त्यागी के ख़िलाफ़ ‘अनाप-शनाप’ बोले जाने के कारण उन्हें आघात लगा था।
इसके बाद देश भर में टेलीविजन डिबेट में इस्तेमाल होने वाली भाषा और चीखने-चिल्लाने पर बहस तेज़ हुई। कहा यह जाने लगा कि टीवी में भाषा का स्तर इसलिए गिर रहा है कि कई टीवी चैनलों के लिए टीआरपी के खेल में पत्रकारिता मायने नहीं रखती है। डिबेट में चीखने-चिल्लाने की भाषा, कथित तौर पर नफ़रत फैलाने वाली रिपोर्टें और सांप्रदायिक मुद्दों को भड़काने वाले विषयों ने एक ऐसा घालमेल तैयार किया है जो न सिर्फ़ टीवी डिबेट में शामिल होने वाले कई लोगों को गालियों के लिए उकसाता है, बल्कि ऐसे दर्शक भी तैयार कर रहा है जो ऐसे टीवी चैनलों को टीआरपी देते हैं। वैसे, कई चैनलों पर राजनीतिक संरक्षण का आरोप अलग से लगता रहा है।