+
कैमरे अचानक प्रधानमंत्री के 'प्रचार युद्ध' की तरफ़ क्यों तन गए?

कैमरे अचानक प्रधानमंत्री के 'प्रचार युद्ध' की तरफ़ क्यों तन गए?

राष्ट्रीय मीडिया के कैमरे अब तक यूक्रेन युद्ध पर तने हुए थे, लेकिन शनिवार को एकाएक ये कैमरे वाराणसी में तन गए। रैलियाँ तो कई पार्टियों की थीं, लेकिन कैमरे एक जगह क्यों टीके रहे?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस में प्रचार के अंतिम दौर में जिस तरह सक्रिय हुए, वह उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कहानी का एक बहुत दिलचस्प पहलू है। चुनाव बीच छिड़े यूक्रेन युद्ध की तसवीरें दिन-रात दिखा रहे राष्ट्रीय मीडिया ने अचानक अपने कैमरे मोदी जी के इस प्रचार युद्ध की ओर तान दिये।

भव्य रोड शो, चुनावी सभाएँ, काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा, प्रधानमंत्री का डमरू बजाना और पप्पू की अड़ी पर जाकर कुल्हड़ में चाय पीने की उनकी छवियाँ कुल मिलाकर मीडिया प्रबंधन का ही हिस्सा हैं। 

इस चुनाव में बीजेपी पर शुरू से दबाव दिख रहा है। अब तक के वोट प्रतिशत से ऐसा नहीं लग रहा है कि जनता में बहुत उत्साह है। यह भी आकस्मिक नहीं है कि मोदी जी की इस बनारसी प्रचार मुहिम में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी कहीं नज़र नहीं आये जबकि योगी और मोदी दोनों ही डबल इंजन की सरकार का मंत्र जाप लगातार करते रहे हैं। 

मोदी जी को बीजेपी की हिचकोले खाती नैया पार लगाने के लिए और अपनी साख बचाने के लिए बनारस में डेरा डालना पड़ा है। प्रधानमंत्री ने बनारस के प्रबुद्ध नागरिकों के साथ भी अलग से बातचीत की। 

हैरानी की बात है कि मोदी जी के प्रस्तावक रहे प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्रा कहीं किसी कैमरे में नज़र नहीं आए। हमेशा न्यूज़ चैनल होली के आसपास छन्नूलाल जी को गंगा की लहरों के बीच ले जाकर दिगंबर मसाने में खेलें होली गवाते रहे हैं। 

कोरोना की दूसरी लहर में छन्नूलाल मिश्रा जी ने अपनी बेटी को खो दिया था। कोरोना प्रबंधन पर अपनी पीठ थपथपा रही योगी सरकार उस प्रकरण में स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं की बदइंतज़ामी के लिए बुरी तरह घिर गई थी।

क्या उस समय के कुप्रबंधन की दुखद स्मृतियों को प्रधानमंत्री का मीडिया प्रबंधन निष्प्रभावी कर पाएगा? मोदी जी के अलावा अखिलेश यादव ने भी रोड शो किया, राहुल-प्रियंका भी थे लेकिन मीडिया में वे दिखे नहीं। यह भी मज़ेदार है।

बनारस के लोगों को काशी को क्योतो बनने का भी इंतज़ार होगा। काशी कॉरिडोर के ज़रिये जिस तरह मंदिर को पर्यटन के लिहाज़ से भव्य स्वरूप प्रदान करने का दावा किया जा रहा है, वह बहुत से लोगों को सैकड़ों साल पुरानी काशी की पहचान के साथ खिलवाड़ नज़र आ रहा है।

बनारस के एक शायर हुए हैं नज़ीर बनारसी। उनका एक शेर है- 

रूस्वा है ’नजीर’ अपने ही बुतखाने की हद में 

दीवाना अगर है तो बनारस की गली का

(अमिताभ की फ़ेसबुक वाल से साभार)

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें