उत्तर प्रदेश में बने गठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने की चर्चाओं को बसपा सुप्रीमो मायावती ने ख़त्म कर दिया है। मायावती ने ट्वीट कर कहा है, ‘बीएसपी एक बार फिर साफ़ कर देना चाहती है कि हमारा उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस पार्टी से किसी भी प्रकार का तालमेल व गठबंधन बिल्कुल नहीं है।’ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी मायावती के बयान का समर्थन किया है। अखिलेश ने ट्वीट कर कहा कि उत्तर प्रदेश में एसपी, बीएसपी और आरएलडी का गठबंधन बीजेपी को हराने में सक्षम है और कांग्रेस पार्टी किसी तरह का कन्फ़्यूज़न ना पैदा करे। गठबंधन में कांग्रेस के शामिल न होने से बीजेपी विरोधी वोटों का बंटवारा होगा और ऐसी आशंका है कि इसका फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को मिल सकता है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में बने गठबंधन में एसपी-बीएसपी और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) शामिल हैं। बीएसपी 38, एसपी 37 और आरएलडी 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दो सीटें रायबरेली और अमेठी को कांग्रेस के लिए छोड़ा गया है। इन दलों के आपस में सीटें बाँट लेने के बाद भी इस बात की संभावना जताई जा रही थी कि कांग्रेस अभी भी गठबंधन में शामिल हो सकती है। संभावना थी कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को चुनौती देने के लिए गठबंधन में कांग्रेस के लिए सीटें छोड़ी जा सकती हैं।
बीते रविवार को जब उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर ने एसपी-बीएसपी और आरएलडी के लिए 7 सीटें छोड़ने का एलान किया तो संकेत यह गया कि कांग्रेस ऐसा करके यह दिखाना चाहती है कि वह गठंबधन में शामिल दलों के प्रति पूरा सम्मान रखती है और उनके साथ ही है। राज बब्बर ने भी यह कहा कि क्योंकि गठबंधन ने रायबरेली और अमेठी सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी हैं, उसी क्रम में कांग्रेस पार्टी गठबंधन के लिए 7 सीटें छोड़ रही है।
मायावती के ट्वीट को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। मायावती क़तई नहीं चाहती कि उनके समर्थकों में कांग्रेस के गठबंधन में शामिल होने को लेकर किसी तरह का भ्रम रहे और इस बात को उन्होंने लिखा भी है। मायावती ने ट्वीट में लिखा है कि हमारे लोग कांग्रेस पार्टी द्वारा आए दिन फैलाये जा रहे किस्म-किस्म के भ्रम में क़तई ना आएँ।
कांग्रेस के गठबंधन में 7 सीटों को छोड़ने को लेकर भी मायावती ने कांग्रेस पर तंज कसा है। मायावती ने ट्वीट में लिखा है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से स्वतंत्र है कि वह यहाँ सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करे। मायावती ने आगे लिखा कि हमारा गठबंधन बीजेपी को अकेले पराजित करने में पूरी तरह सक्षम है। मायावती ने आगे लिखा है कि कांग्रेस जबरदस्ती उत्तर प्रदेश में गठबंधन हेतु 7 सीटें छोड़ने का भ्रम न फैलाए।
कांग्रेस इन दिनों उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी ज़मीन को मज़बूत करने में जुटी हुई है। प्रियंका गाँधी को पार्टी का महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर पार्टी ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह पूरे दम-खम के साथ चुनाव लड़ेगी। ग़ौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बेहद कमज़ोर हो गई है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे मात्र 2 सीटें मिली थीं। लेकिन पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को भरोसा दिला रही है कि वह 2009 के लोकसभा चुनाव में किए गए प्रदर्शन को दुहरा सकती है। बता दें कि तब कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं।
2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नज़र डालें तो तब बीजेपी ने अकेले दम पर 71 सीटें हासिल की थीं 42.63 फ़ीसदी वोट हासिल किए थे। एसपी को 22.35 फ़ीसदी वोट मिले थे लेकिन वह कुल पाँच सीटों पर सिमट गई थी। बीएसपी को 19.7 फ़ीसदी वोट तो मिले थे लेकिन वह एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। कांग्रेस को सिर्फ़ 7.53 फ़ीसदी वोट मिले थे और वह अपनी परंपरागत सीटों अमेठी और रायबरेली में ही जीत हासिल कर सकी थी।
2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर भी एक नज़र डालते हैं। विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 39.7 फ़ीसदी मतों के साथ 312 सीटें जीतीं थीं जबकि बीएसपी को 22.2 फ़ीसदी मतों के साथ 19, एसपी को 22 फ़ीसदी मतों के साथ 47 और कांग्रेस को 6.2 फ़ीसदी मतों के साथ सात सीटें मिली थीं। ऐसे में यह माना जा रहा था कि अगर तीनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलना तय है और गठबंधन के कमजोर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन कई बार की कोशिशों के बाद कांग्रेस को उसकी माँगी गई सीटों के हिसाब से हिस्सेदारी नहीं मिल सकी और वह गठबंधन से बाहर रह गई। अगर कांग्रेस भी इस गठबंधन में शामिल होती तो बीजेपी विरोधी वोटों के बंटवारे पर रोक लग जाती।
हाल ही में आए चुनावी सर्वे में भी इस बात को कहा गया था कि तीनों दलों के साथ आने से बीजेपी को उत्तर प्रदेश में ख़ासा नुक़सान हो सकता है। बताया जा रहा था कि अखिलेश यादव कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने के पक्ष में थे लेकिन मायावती का कहना था कि बाक़ी दलों का वोट तो कांग्रेस को ट्रांसफ़र हो जाता है लेकिन कांग्रेस का वोट अन्य दलों को ट्रांसफ़र नहीं होता है। मायावती ने कहा था कि 1996 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को इसका अनुभव हुआ था।