उपराष्ट्रपति चुनाव में कुछ विपक्षी दलों की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने मंगलवार सुबह एक ट्वीट कर कहा कि ‘बिग ब्रदर’ हमेशा सारी बातचीत को देख और सुन रहा है, इस तरह का डर नए भारत में तमाम दलों के नेताओं के बीच बना हुआ है।
उन्होंने कहा है कि सांसद और तमाम नेता कई फोन रखते हैं, बार-बार नंबर बदलते हैं और मिलने पर फुसफुसा कर बात करते हैं। मार्गरेट अल्वा ने कहा है कि डर लोकतंत्र को खत्म कर देता है।
इससे पहले मार्गरेट अल्वा ने कहा कि बीजेपी में कुछ दोस्तों से बात करने के बाद उनके मोबाइल की सभी कॉल को डायवर्ट कर दिया गया है। अल्वा ने सोमवार रात को कहा कि वह ना तो कॉल कर पा रही हैं और ना ही इन्हें रिसीव कर पा रही हैं।
बता दें कि मार्गरेट अल्वा इन दिनों उपराष्ट्रपति के चुनाव को लेकर प्रचार में जुटी हैं और तमाम विपक्षी पार्टियों के सांसदों और अन्य नेताओं के साथ भी बातचीत कर रही हैं।
जगदीप धनखड़ से है मुक़ाबला
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान 6 अगस्त को होगा और नतीजे उसी दिन आ जाएंगे। मार्गरेट अल्वा के सामने एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ हैं। दोनों ही नेताओं ने नामांकन दाखिल करने के बाद जोर शोर से चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है।
मार्गरेट अल्वा ने ट्वीट कर उनके फोन कॉल को डायवर्ट किए जाने और फोन कॉल न कर पाने और रिसीव न कर पाने की शिकायत की है। उन्होंने ट्वीट कर बीएसएनल और एमटीएनएल से कहा कि अगर वे उनकी फोन सेवाओं को फिर से चालू कर दें तो वह वादा करती हैं कि वह सोमवार रात को बीजेपी, टीएमसी या बीजेपी के किसी भी सांसद को फोन नहीं करेगीं।
यहां याद दिलाना होगा कि टीएमसी ने उपराष्ट्रपति चुनाव से गैरहाजिर रहने का फैसला किया है जबकि बीजेडी ने जगदीप धनखड़ को समर्थन देने का एलान किया है।
निश्चित रूप से उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दलों की उम्मीदवार के फोन कॉल को डायवर्ट कर देना या उनकी फोन सेवाओं को रोक दिया जाना बेहद गंभीर सवाल है। मार्गरेट अल्वा बहुत सीनियर नेता हैं और उनका लंबा राजनीतिक जीवन है। वह केंद्र सरकार में मंत्री रहने के साथ ही कई राज्यों की राज्यपाल भी रह चुकी हैं।
कौन हैं अल्वा?
कुछ विपक्षी दलों की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा राज्यसभा की उपसभापति रही हैं व कांग्रेस की वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं।
अल्वा ने कर्नाटक में कांग्रेस के लिए काफी काम किया है और वह 1972 में कर्नाटक महिला कांग्रेस की संयोजक चुनी गई थीं। अल्वा ने अपना संसदीय जीवन 1974 में शुरू किया था जब वह पहली बार राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं। अल्वा 1999 में लोकसभा की सांसद बनीं।
अल्वा एक नामी वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता होने के साथ ही ट्रेड यूनियन की नेता भी रही हैं। वह चार बार राज्यसभा और एक बार लोकसभा की सांसद रही हैं। अल्वा 1984 से 85 तक केंद्र सरकार में युवा और खेल मंत्रालय के राज्यमंत्री के रूप में काम कर चुकी हैं। 1991 में पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में भी वह मंत्री रह चुकी हैं। वह कांग्रेस की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय संयोजक भी रही हैं और महिला अध्यक्ष अधिकारों की वकालत करती रही हैं। उनके सास और ससुर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।
टिकट बेचने का लगाया था आरोप
अल्वा के कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के साथ रिश्ते तब खराब हुए थे जब साल 2008 में उन्होंने कर्नाटक कांग्रेस पर टिकट बेचने का आरोप लगाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों को चुनने के बजाय सबसे अधिक बोली लगाने वालों को चुनावी टिकट बेचा गया। इसके बाद उन पर कार्रवाई की गई थी और उन्हें पार्टी के पदों से हटा दिया गया था। हालांकि इसके बाद वह राजस्थान, गुजरात और गोवा में राज्यपाल रहीं और बीते कुछ वर्षों से सक्रिय राजनीति से दूर हैं। उनके बेटे निवेदित अल्वा उत्तर कन्नड़ इलाके में राजनीति में सक्रिय हैं।