मणिपुर में भीषण संघर्ष चल रहा है। एक लड़ाई मणिपुर की धरती पर हो रही है और दूसरी भारतीय मीडिया के मंच पर। साजिश गहरी है। ग्राउंड पर भी और टेलीविजन स्क्रीन पर भी। बम मणिपुर की घाटी में गिरता है, लेकिन उसका धुआं पहाड़ों से होकर टेलीविजन के स्टूडियो तक पहुंचता है। मणिपुर में जो हो रहा है, वह बेहद दर्दनाक और ख़तरनाक है, लेकिन मीडिया में जो हो रहा है, वह इससे भी अधिक हानिकारक है।
मीडिया का असर गहरा और दूरगामी होता है। जहाँ एक बम हमले में कुछ लोगों की मौत हो सकती है, वहीं मीडिया की ग़लत रिपोर्टिंग से लाखों लोगों के दिमाग और दिल प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए युद्ध जैसी स्थितियों में मीडिया का निष्पक्ष और तटस्थ रहना न केवल आवश्यक है, बल्कि अनिवार्य भी है। दुर्भाग्य से, वर्तमान में मीडिया का व्यवहार इसके विपरीत है। जो हो रहा है, वह न केवल ग़लत है, बल्कि राष्ट्रीय हितों के भी ख़िलाफ़ है।
मणिपुर के ताज़ा हालात
म्यांमार की सीमा पर बसे भारत के अत्यधिक संवेदनशील राज्य मणिपुर के हालात पिछले सवा साल से गंभीर बने हुए हैं। लेकिन बम, बंदूक़ों और गोलाबारी से क्षत विक्षत, त्रस्त, अशांत, भयाक्रांत और आक्रोशित मणिपुर में ताज़ा ड्रोन हमले को लेकर नया और गंभीर विवाद खड़ा हो गया है। 1 सितंबर 2024 को इंफाल पश्चिम ज़िले के कोउत्रुक और सेंजाम चिरांग में ड्रोन से बम फेंके गए, जिससे एक महिला सहित दो लोगों की मौत हो गई और तीन लोग घायल हो गए।
इस घटना के बाद घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय ने पहाड़ी इलाक़ों में रहने वाले कुकी जनजाति को ज़िम्मेदार ठहराया। दूसरी ओर, रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी ने इन हमलों के पीछे विदेशी ताक़तों, ख़ासकर चीन और अमेरिका का हाथ बताया। हालांकि, रिपब्लिक टीवी द्वारा दिखाई गई कुछ तस्वीरों को "द क्विंट" ने 2007 की पुरानी तस्वीरें बताते हुए झूठ का पर्दाफाश किया। द क्विंट ने कहा कि रिपब्लिक टीवी ने मणिपुर हिंसा से जुड़ी पुरानी और असंबंधित तस्वीरें शेयर कीं। द क्विंट के खुलासे का लिंक यहां है-
यह घटना मणिपुर में मीडिया के तथ्यहीन रिपोर्टिंग की समस्या की एक बानगी है।
संघर्ष के पीछे के आरोप-प्रत्यारोप
मणिपुर में जारी जातीय संघर्ष में कई तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे हैं। कुकी समुदाय का एक धड़ा मैतेई समुदाय पर हमलों के लिए उनके ही समुदाय के एक संगठन "आरामबाई तेंगोल" को ज़िम्मेदार ठहराता है। यह वही संगठन है, जिसने कुछ माह पहले राज्य के विधायकों, मंत्रियों और यहाँ तक कि केंद्र की मोदी सरकार के एक राज्य मंत्री को भी बाकायदा मैदान में एक लाइन में खड़ा करके मैतेई समुदाय के पक्ष में शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाए थे। अर्नब गोस्वामी ने अपने शो में इस गुट का नाम तक नहीं लिया, जो मीडिया की असंगतता और पक्षपात का प्रतीक है।
ड्रोन हमलों पर अर्नब गोस्वामी की डिबेट
3 सितंबर को अर्नब गोस्वामी ने अपने कार्यक्रम "#NationsSharpestOpinion with Arnab" में मणिपुर में ड्रोन हमलों और इसमें विदेशी साज़िश के आरोपों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि मणिपुर में ड्रोन ऑपरेशन चलाया जा रहा है और इसमें अमेरिका, बांग्लादेश, म्यांमार और चीन का हाथ है। उन्होंने इस मामले में भारत सरकार की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए और नेशनल मीडिया पर भी इस घटनाक्रम पर चुप रहने का आरोप लगाया।
इस चर्चा में शामिल कांग्रेस नेता श्याम प्रसाद मेका ने अमेरिका और बांग्लादेश पर पूर्वोत्तर में सक्रिय होने का आरोप लगाया जबकि गुवाहाटी स्थित न्यूज़ लाइव के संपादक सैयद ज़रीर हुसैन ने चीन और अमेरिका की भूमिका पर ज़ोर दिया और "गोल्डन ट्रायंगल" का उल्लेख किया। कुकी पीपल्स अलायंस के रिटायर्ड अधिकारी डब्ल्यूएल हैंगशिंग ने कुकी समुदाय पर विदेशी षड्यंत्र में शामिल होने के आरोपों को खारिज किया और इस संघर्ष को जातीय मुद्दा बताया।
वहीं, रक्षा विशेषज्ञ ले. जनरल निशिकांत सिंह ने गल्फ युद्ध का उदाहरण देते हुए कहा कि मणिपुर में भी हथियार अपने ही क्षेत्र में गिर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुकी लोगों पर लगाए गए आरोप ग़लत दिशा में हैं। पीके मिश्रा (रिटायर्ड एडीजी, बीएसएफ़) ने अमेरिकी पत्रकारों की भूमिका का ज़िक्र किया और मणिपुर में एक "ईसाई राज्य" बनाने में चीन की मदद की संभावना बताई। प्रो. भगत ओइनाम (जेएनयू) ने संघर्ष में उन्नत हथियारों के उपयोग की ओर इशारा किया और बाहरी शक्तियों की संलिप्तता का दावा किया।
पाओजाखुप गुइटे (केएसओ दिल्ली अध्यक्ष) ने कुकी लोगों के पास बम होने के आरोपों पर सवाल उठाए और यह दावा किया कि ये हथियार मैतेई लोगों के हो सकते हैं।
मणिपुर के मुख्यमंत्री का बयान और सरकार की भूमिका
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने ड्रोन हमलों की निंदा करते हुए इसे आतंकवाद का कृत्य बताया। उन्होंने इन हमलों की जाँच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।
सरकारी आँकड़ों के अनुसार, 3 मई 2023 से कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जारी हिंसा में अब तक 226 लोगों की मौत हो चुकी है और 65,000 से अधिक लोग बेघर हो चुके हैं। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के एक वायरल ऑडियो क्लिप ने भी विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें वह मणिपुर की हिंसा पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करते सुनाई देते हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री ने इस ऑडियो को फर्जी बताते हुए जांच का आदेश दिया है।
मीडिया की भूमिका और सवाल
मणिपुर में जारी संघर्ष को लेकर मीडिया के एक वर्ग का व्यवहार अत्यधिक चिंताजनक है। "इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम" (आईटीएलएफ) और "कूुकी स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन" (KSO) ने अर्नब गोस्वामी के आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें तथ्यहीन और काल्पनिक बताया। उन्होंने इसे पूरी तरह से एक जातीय संघर्ष बताया और कहा कि म्यांमार, अमेरिका या चीन की कोई भूमिका नहीं है।
रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी के कार्यक्रमों में लगाए गए आरोपों को लेकर आईटीएलएफ़ का विस्तृत प्रेस बयान इस मामले की गहन जांच की तस्दीक करता है। कुकी और मैतेई जातीय संघर्ष को विदेशी हस्तक्षेप से जोड़ने से स्थिति और जटिल हो जाती है। वैसे तो अर्नब गोस्वामी ने स्वयं भी मणिपुर में अशांति की राष्ट्रीय जांच की मांग उठाई है, लेकिन उनके आरोप केन्द्र की मोदी सरकार को ही कठघड़े में खड़ा करते हैं।
यह ठीक है कि मणिपुर समेत पूर्वोत्तर राज्यों पर विदेशी खुफिया एजेंसियों की निगाहें लगी रही हैं। लेकिन ताज़ा जनजातीय संघर्ष में एन बीरेन सरकार की भूमिका पर सवाल उठाने की बजाय अर्नब गोस्वामी ने इसे विदेशी साज़िश क़रार दे दिया। अगर अर्नब गोस्वामी के मुताबिक़ चीन और अमेरिका की खुफिया एजेंसियां वाक़ई मणिपुर में पचास पचास ड्रोन हमले करा रही हैं, तो सवाल उठता है कि मोदी सरकार क्या कर रही है? अर्नब गोस्वामी की मानें तो इसका मतलब क्या यह नहीं हुआ कि मोदी सरकार पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा कर पाने में पूरी तरह नाकाम हो गयी है और मणिपुर पर विदेशी ताक़तें हमला कर रही हैं। अगर मणिपुर में विदेशी ताक़तों का हस्तक्षेप हो रहा है, तो यह भारतीय सुरक्षा तंत्र की विफलता को दर्शाता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से मणिपुर की मौजूदा स्थिति अत्यंत जटिल और संवेदनशील है। इस तरह के हालात में मीडिया को निष्पक्ष और ज़िम्मेदार होना अनिवार्य है। इसीलिए मणिपुर में मीडिया की रिपोर्टिंग, ख़ासकर अर्नब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी द्वारा के खुलासों और आरोपों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। आरोप सही हैं, तो गंभीर चूक है। और अगर ऐसा नहीं है, तो इसके तथ्यों और सत्यता की जाँच होनी चाहिए। उम्मीद है कि मणिपुर सरकार द्वारा गठित जाँच समिति व केन्द्र सरकार भी इस संवेदनशील पहलू पर गौर करेगी।
(लेखक पूर्वोत्तर मामलों के जानकार, लेखक, पत्रकार व कॉमनवेल्थ थॉट लीडर्स फोरम के अध्यक्ष हैं।)