मणिपुर हिंसा पर कुछ नहीं बोलने के लिए विरोधियों के निशाने पर रहे प्रधानमंत्री मोदी को अपनी ही पार्टी के विधायकों ने अब ज्ञापन दे कर बड़ी चिंता जताई है। मेइती समुदाय से आने वाले नौ विधायकों ने यह ज्ञापन दिया है। इनमें से भाजपा के आठ और मणिपुर सरकार का समर्थन करने वाले एक निर्दलीय विधायक ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक ज्ञापन सौंपा है। उसमें कहा गया है कि 'जनता ने वर्तमान राज्य सरकार में पूरी तरह विश्वास खो दिया है'। जिस दिन यह घटनाक्रम चला उसी दिन अधिकतर बीजेपी विधायकों का ही एक अन्य प्रतिनिधिमंडल भी दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों से मिला। विपक्षी दलों के नेता भी पीएम से मिलना चाहते थे।
यह सब घटनाक्रम तब चल रहा है जब मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है। मणिपुर में 3 मई से मेइती लोगों और एसटी कूकी-ज़ोमी लोगों के बीच लगातार जातीय हिंसा देखी जा रही है। 27 मार्च के एसटी दर्जा देने की वकालत करने वाले विवादास्पद आदेश के खिलाफ आदिवासी विरोध के तुरंत बाद हिंसा शुरू हो गई थी। अब तक 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, सैकड़ों अन्य घायल हो गए हैं और हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं।
बीजेपी विधायकों द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय में सौंपे गए ज्ञापन में भी कहा गया है, 'जारी हिंसा के कारण 100 से अधिक निर्दोष लोगों की जान चली गई है और बहुमूल्य संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए कई कदम उठाए जाने के बावजूद जमीन पर कोई खास सुधार नजर नहीं आ रहा है। राज्य में कानून और व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।'
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार नौ विधायकों में करम श्याम सिंह, थ राधेश्याम सिंह, निशिकांत सिंह सपम, ख रघुमणि सिंह, एस ब्रोजेन सिंह, टी रोबिंद्रो सिंह, एस राजेन सिंह, एस केबी देवी और वाई राधेश्याम शामिल हैं। अप्रैल महीने में उनमें से चार - करम श्याम सिंह, थ राधेश्याम सिंह, एस ब्रोजन सिंह और ख रघुमणि सिंह ने सरकार में विभिन्न प्रशासनिक और सलाहकार पदों से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद अटकलें लगाई गई थीं कि एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में कलह पैदा हो गई। हालाँकि बीजेपी ने इन अटकलों को खारिज कर दिया था।
बहरहाल, ज्ञापन में कहा गया है कि हर समुदाय और हर व्यक्ति शांति की बहाली चाहता है। इसमें यह भी कहा गया है, 'वर्तमान में सरकार और प्रशासन पर कोई भरोसा और विश्वास नहीं है। जनता का वर्तमान राज्य सरकार पर से पूर्ण विश्वास उठ गया है। कानून के शासन का पालन करते हुए सरकार के समुचित प्रशासन और कामकाज के लिए कुछ विशेष उपायों का सहारा लिया जा सकता है ताकि आम जनता का विश्वास बहाल हो सके।'
उन्होंने जिन क़दमों का सुझाव दिया है, उनमें कुकी और मेइती विधायकों के बीच बातचीत और विचारों का आदान-प्रदान करके राज्य के मुद्दों पर समाधान खोजने के लिए एक बैठक करना शामिल है। राज्य पुलिस के साथ केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की उचित तैनाती जैसे उपाय भी सुझाए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी समुदाय द्वारा अलग प्रशासन की मांग (जैसा कि कुकी-ज़ोमी समुदाय द्वारा मांग की जा रही है) किसी भी कीमत पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।
हालाँकि, इन नौ विधायकों ने सोमवार को ज्ञापन दिया था और उसी दिन 30 मेइती विधायकों का एक अलग प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय मंत्रियों से मिला था। इसमें ज्यादातर भाजपा से और एक एनपीपी और जद (यू) से विधायक शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मिला। नौ विधायकों में से एक निशिकांत सिंह सपम ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बीजेपी एक विभाजित पार्टी नहीं है और अलग-अलग कार्रवाइयाँ गलतफहमी के कारण हुईं।
'मणिपुर हिंसा को लेकर पीएम के पास समय नहीं'
कांग्रेस के नेतृत्व में मणिपुर में हिंसा से प्रभावित दस विपक्षी दलों के नेताओं ने भी ज्ञापन सौंपा है। उन्होंने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पूर्वोत्तर राज्य के लोगों की अनदेखी करने और अमेरिकी दौरे पर जाने से पहले विपक्षी नेताओं से मुलाकात नहीं करने का आरोप लगाया।
कांग्रेस नेता अजय कुमार ने दावा किया कि 'आदिपुरुष फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला ने पहले से समय लिए बिना मोदी से मुलाकात की और उनके साथ 45 मिनट तक बात की, जबकि हिंसाग्रस्त राज्य के प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं, यहां तक कि भाजपा के लोगों को भी पीएम मोदी से मिलने के लिए समय नहीं दिया गया'।
कांग्रेस नेता ने कहा कि 10 जून से मणिपुर के कई वरिष्ठ नेता, जिनमें राजनीतिक नेता, नागरिक समाज के लोग शामिल हैं, प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के लिए यहां इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और विधानसभा अध्यक्ष भी समय मिलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नेता इबोबी सिंह, जो 15 साल तक मणिपुर के मुख्यमंत्री रहे और मणिपुर के कई अन्य शीर्ष नेता पीएम से नहीं मिल पा रहे हैं, जबकि एक पटकथा लेखक बिना पूर्व अनुमति के प्रधानमंत्री से मिल सकता है।