उद्धव खेमे के विधायकों को शिंदे गुट का कहा मानना होगा: स्पीकर

04:10 pm Jan 12, 2024 |

महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने कहा है कि उद्धव ठाकरे खेमे के विधायकों को भी अब एकनाथ शिंदे की ही बात माननी होगी। उन्हें विधानसभा में सत्तारुढ़ दल के विधायकों के साथ यानी ट्रेजरी बेंच में बैठना होगा, न कि विपक्षी दल के साथ। उन्होंने शिवसेना विधायकों की अयोग्यता वाले फ़ैसले के एक दिन बाद यह बात कही है।

महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने बुधवार को विधायकों की अयोग्यता की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने उद्धव ठाकरे द्वारा वर्तमान सीएम एकनाथ शिंदे को शिवसेना के समूह नेता के पद से हटाने के फैसले को भी पलट दिया था। उन्होंने साफ़ तौर पर कह दिया था कि शिंदे गुट ही असली शिवसेना है।

महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने बुधवार को कहा, 'मेरा मानना है कि 21 जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे गुट ही असली राजनीतिक पार्टी थी।' नार्वेकर ने आगे कहा था, 'प्रतिद्वंद्वी गुट के उभरने के बाद से सुनील प्रभु पार्टी के सचेतक नहीं रहे। भरत गोगावले को वैध रूप से सचेतक नियुक्त किया गया। एकनाथ शिंदे को वैध रूप से शिव सेना राजनीतिक दल का नेता नियुक्त किया गया।'

इसके बाद स्पीकर राहुल नार्वेकर ने गुरुवार को कहा कि उद्धव ठाकरे खेमे (यूबीटी) के विधायकों को राज्य विधानमंडल में सीएम एकनाथ शिंदे के समूह द्वारा नियुक्त पार्टी सचेतक भरत गोगावले के निर्देशों का पालन करना होगा। इसका मतलब है कि विधानसभा में मतदान जैसे प्रमुख मुद्दों पर सभी 16 यूबीटी सेना विधायकों को गोगावले की रिट के साथ जाना होगा। इन विधायकों के ऐसा नहीं करने पर उनके ख़िलाफ़ अयोग्यता का ख़तरा रहेगा।

इसके अलावा यूबीटी समूह के विधायकों को विपक्ष में होने के बावजूद सीएम के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ सत्ता पक्ष में बैठना होगा। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नार्वेकर ने कहा, 'विधायकों को अपने निर्धारित स्थान पर बैठना होगा। मेरे विचार में शिवसेना सरकार में सत्तारूढ़ दल है। यदि कोई अलग रुख अपनाता है, तो निर्णय उनका है और वे परिणामों के लिए जिम्मेदार होंगे।' नार्वेकर ने गुरुवार को समाचार चैनल एबीपी माज़ा से कहा, 'एक पार्टी के पास दो व्हिप नहीं हो सकते। व्हिप का पालन उस विधायक दल के सभी विधायकों को करना होगा।'

नार्वेकर ने दावा किया कि उनका फ़ैसला 100 प्रतिशत सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार था। उन्होंने उन आरोपों को खारिज कर दिया जिसमें आरोप लगाया गया कि यह एक राजनीतिक फैसला था।

उन्होंने कहा, 'राजनीतिक परिणाम मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। मैं संविधान, विधानसभा नियमों और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार चला।'

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपने आदेश में गोगावाले की सचेतक के रूप में नियुक्ति को अवैध माना था। अपने फैसले का बचाव करते हुए नार्वेकर ने कहा, 'शीर्ष अदालत ने यह नहीं कहा कि गोगावले की नियुक्ति स्थायी रूप से अवैध थी। उसने कहा कि मैंने शिवसेना विधायक दल द्वारा चुने गए व्हिप को मान्यता दी थी, लेकिन मुझे इसे राजनीतिक दल द्वारा चुने गए विकल्प के आधार पर रखना चाहिए था।'

बता दें कि नार्वेकर ने बुधवार को अपने फ़ैसले में 2018 में शिवसेना के संविधान में किए गए संशोधन को मानने से इनकार कर दिया था। स्पीकर ने कहा कि शिवसेना का 2018 का संविधान स्वीकार्य नहीं है और चुनाव आयोग में 1999 में जमा किया गया संविधान ही मान्य होगा। उन्होंने कहा, 'प्रतिद्वंद्वी समूहों के उभरने से पहले ईसीआई को आखिरी बार प्रासंगिक संविधान 1999 में सौंपा गया था। मेरा मानना है कि ईसीआई द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को दिया गया शिवसेना का संविधान यह तय करने के लिए शिवसेना का प्रासंगिक संविधान है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी असली है।'

स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिवसेना के नेतृत्व ढांचे पर कहा, 'मुझे लगता है कि फरवरी 2018 के पत्र में दिखा नेतृत्व ढांचा प्रासंगिक है और यह निर्धारित करने के लिए ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कौन सा गुट वास्तविक राजनीतिक दल है। प्रासंगिक नेतृत्व ढांचे की पहचान करने के लिए शिवसेना का संविधान प्रासंगिक है। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि 21 जून, 2022 से दो गुटों के उभरने का अनुमान था और 22 जून, 2022 को विधानमंडल सचिवालय के आधिकारिक रिकॉर्ड में भी यही बात सामने आई।'

अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने अपने फ़ैसले में कहा कि 2018 में नेतृत्व संरचना शिवसेना के संविधान के अनुरूप नहीं थी। उन्होंने कहा, '2018 नेतृत्व संरचना में शिवसेना पक्ष प्रमुख को सर्वोच्च पद के रूप में वर्णित किया गया है। हालाँकि, शिवसेना संविधान में सर्वोच्च पद शिवसेना प्रमुख है और राष्ट्रीय कार्यकारिणी सर्वोच्च प्राधिकारी है।' महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, 'मेरा मानना है कि 21 जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे गुट ही असली राजनीतिक पार्टी थी। जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे गुट के पास 55 में से 37 विधायकों का भारी बहुमत था।'