महाराष्ट्र: क्या अब विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त का ‘खेल’ शुरू होगा?

09:48 am Nov 13, 2019 | संजय राय - सत्य हिन्दी

महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर चल रही कवायद के बीच कुछ दिन पहले बीजेपी नेता सुधीर मुनगंटीवार का बयान आया था कि यदि बीजेपी की सरकार नहीं बनी तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग जाएगा। उनके इस बयान पर अच्छी-ख़ासी प्रतिक्रिया आई थी लेकिन अब प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग चुका है। तो क्या वाक़ई में मुनगंटीवार के बयान और राष्ट्रपति शासन के बीच कोई संबंध है क्या मुनगंटीवार यह संकेत देना चाह रहे थे कि प्रदेश में उनके दल की सरकार नहीं बनी तो किसी और पार्टी की सरकार भी नहीं बनेगी 

महाराष्ट्र में राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन यह कहते हुए लगाया कि प्रदेश में सरकार बनाने का कोई विकल्प नहीं है। राज्यपाल के इस निर्णय पर टीका-टिप्पणियों का दौर जारी है जिसमें एक बात प्रमुखता से कही जा रही है कि सभी दलों को अपना दावा रखने के लिए बराबर का समय क्यों नहीं दिया गया। दूसरी बात जो कही जा रही है, वह यह है कि बहुमत सिद्ध करने का स्थान राजभवन नहीं विधानसभा है और वहां प्रयास किये बग़ैर यह कहना कि कोई विकल्प नहीं है, कहां तक जायज है। इनके अलावा एक आशंका जो चर्चा का विषय बनी हुई है वह यह है कि क्या अब विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त का बाजार गरमाने वाला है

राष्ट्रपति शासन लगने के बाद एक लम्बा समय सरकार बनाने के लिए मिल जाएगा। ऐसे में राजनीतिक दलों को अपने विधायकों को होटल में या किसी दूसरे स्थान पर लम्बे समय तक रख पाना भी संभव नहीं हो सकेगा। हालांकि कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और शिवसेना की तरफ़ से इस बात के संकेत मिले हैं कि वे आने वाले दो-तीन दिनों में ही चर्चाओं का दौर पूर्ण कर किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंच जायेंगे। 

शिवसेना ने राष्ट्रपति शासन के खिलाफ अदालत की शरण ली है। राष्ट्रपति शासन की घोषणा के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता नारायण राणे देवेंद्र फडणवीस से मिलने गए। मिलने के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा कि उन्हें बीजेपी की सरकार बनाने का आदेश मिला है और फडणवीस ने उनसे कहा है कि वह इस काम में लग जाएँ। कुछ देर बाद ही फडणवीस का बयान भी आया कि प्रदेश में बीजेपी की स्थिर सरकार बनानी है। 

बताया जाता है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने विधायकों को दिलासा दिया है कि बीजेपी के नेता भी उनसे बातें कर रहे हैं और यदि वे उनकी शर्तें मान लेते हैं तो उनसे चर्चा आगे बढ़ायी जा सकती है। हालांकि यह बात कितनी सही है यह कहा नहीं जा सकता। वैसे, उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इस बात का जिक्र किया कि कांग्रेस और एनसीपी से चर्चा का दौर अब शुरू हो चुका है और शीघ्र ही स्थिर सरकार के लिए मार्ग खुलेगा। 

लेकिन एक अहम बात यह है कि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद बीजेपी की तरफ़ से सरकार बनाने की गतिविधियों में तेजी आना किस ओर इशारा करता है 

48 घंटे पहले बीजेपी ने राज्यपाल के सामने सरकार बनाने में असमर्थता जतायी थी और ऐसा क्या हो गया कि राष्ट्रपति शासन लगते ही उसके नेता यह कहने लगे हैं कि कैसे भी हो सरकार बीजेपी ही बनाएगी! तो क्या अब प्रदेश में विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त का 'खेल' शुरू होगा

मणिपुर, गोवा पैटर्न आयेगा या कर्नाटक की तरह 'ऑपरेशन कमल' चलेगा या फिर कुछ नया प्रयोग होगा इस पर सभी की नज़रें लगी हुई हैं। विधायकों के ख़रीद-फरोख़्त के इस 'खेल' की आशंकाएं राष्ट्रपति शासन लागू होने से पहले भी लगायी जा रही थीं और इसी के चलते शिवसेना ने अपने और कुछ निर्दलीय विधायकों को मुंबई में एक होटल में रखा हुआ था। जबकि कांग्रेस ने अपने विधायकों को जयपुर भेजा हुआ है। 

सबसे बड़ी बात यह है कि जिस तरह से शिवसेना या एनसीपी को सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए अतिरिक्त समय नहीं दिया गया और कांग्रेस को तो आमंत्रण ही नहीं दिया इससे विधायकों पर एक तरह का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का काम भी शुरू हो गया है। 

बीजेपी द्वारा सरकार बनाने का दावा छोड़ने के बाद उसके साथ जिन निर्दलीय और छोटी पार्टियों के विधायक होने की बात कही जाती थी आज उनमें से अधिकाँश शिवसेना और एनसीपी के साथ खड़े हैं। 

ऐसे में एक बड़ा सवाल तो यह है कि बीजेपी की सरकार कैसे बनेगी राष्ट्रपति शासन लग जाने के बाद एक बात तो स्पष्ट है कि सरकार बनाने के मापदंड कठोर हो जाते हैं। किसी भी दल या गठबंधन को पूर्ण बहुमत के आंकड़े यानी महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कम से कम 145 विधायकों के हस्ताक्षर वाला सहमति पत्र राज्यपाल के समक्ष पेश करना होगा। उसी के आधार पर राज्यपाल स्व-विवेक का इस्तेमाल कर सरकार बनाने के लिए किसी दल को आमंत्रित कर सकते हैं।

कैसे बनेगी बीजेपी की सरकार

राष्ट्रपति शासन लग जाने के बाद यह कयास ख़त्म हो जाते हैं कि विधानसभा में कोई दल मतदान के वक्त अनुपस्थित रहकर या बहिष्कार कर किसी दूसरे दल की सरकार बनवा दे। ऐसे में यह बात गौर करने की है कि फडणवीस ने जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया था प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त के आरोपों पर विपक्षी दलों को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी। लेकिन फडणवीस ने इस बात का जवाब नहीं दिया है कि वह ख़ुद सरकार कैसे बनायेंगे उनकी पार्टी के पास 105 विधायक हैं और प्रदेश में इस बार 12 ही निर्दलीय विधायक चुनाव जीते हैं। 

बीजेपी के नेता यह बात जोर-जोर से बोल रहे हैं कि वे बिना किसी दूसरी पार्टी के विधायक तोड़े ही सरकार बना लेंगे! मगर यह संभव कैसे होगा कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना, ये तीनों पार्टियां बीजेपी के ख़िलाफ़ हैं, ऐसे में वह कौन सा फ़ॉर्मूला है या जादू है जो सरकार बनाने में मदद करने वाला है। कर्नाटक में ‘ऑपरेशन कमल’ के बारे में ख़बरें आई हैं कि 100 करोड़ रुपये में विधायक ख़रीदने का आरोप 600 और 1000 करोड़ तक पहुंच गया है। गुजरात में भी दल-बदल का 'खेल' किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में बीजेपी नेता बिना ख़रीद-फरोख़्त के किस आधार पर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं, ये वे ही बता सकते हैं।