महाराष्ट्र सरकार ने प्याज़ के किसानों के लिए 150 करोड़ की राहत का एलान किया है। सरकार ने भरोसा दिलाया है कि किसानों को नुक़सान नहीं होने दिया जाएगा और उन्हें 200 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से मुआवज़ा दिया जाएगा। राज्य सरकार ने इसके लिए 150 करोड़ रुपये का कोष तय किया है। इस फ़ैसले से महाराष्ट्र के 22 लाख किसानों को फ़ायदा मिलेगा। लेकिन राज्य के किसान इससे ख़ुश नहीं हैं। उन्हें लगता है कि तीन राज्यों में मिली हार के बाद सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह किसानों की हितैषी है। किसानों की ऐसी राय के पीछे भी दो बड़े कारण हैं।
- किसानों का मानना है कि सिर्फ़ 200 रुपये प्रति क्विंटल से उनके नुक़सान की भरपाई नहीं हो सकती।
- चार साल पूरे हो गए पर किसानों की कर्ज़माफ़ी नहीं हो पाई है तो प्याज़ किसानों को क्या मिलेगा?
इसी साल मई महीने में जब महाराष्ट्र के 40 हजार किसान विधान भवन का घेराव करने के लिए मुंबई पहुंचे थे तो किसी तरह सरकार ने उन्हें समझा-बुझाकर मामला शांत कर दिया था। भरोसा दिलाया था कि उनकी फ़सल का सही दाम मिलेगा और सरकार उनके नुक़सान की भरपाई ज़रूर करेगी। 9 महीने बीत गए हैं, और हालात अब पहले से बदतर दिखाई दे रहे हैं। किसानों को मंडी में दाम नहीं मिल रहा है और गुस्साए किसान अपनी फ़सल सड़क पर फेंकने को मजबूर हैं।
और इधर किसानों ने आत्महत्या कर ली
फ़सल के सही दाम नहीं मिलने से परेशान नाशिक के दो किसानों ने कथित रूप से आत्महत्या कर ली है। मृतक किसानों की पहचान तात्याभाउ खैरनार (44) और मनोज धोंडगे (33) के तौर पर हुई है। खैरनार ने फाँसी लगाई तो धोंडगे ने जहर खाकर जान दे दी। परिजनों के मुताबिक़ मनोज धोंडगे पर 21 लाख रुपये का बैंक कर्ज़ था और उनके द्वारा की गई प्याज़ की खेती में भी उन्हें काफ़ी नुक़सान हो गया था। ऐसी स्थिति सिर्फ़ प्याज़ किसानों की नहीं है, बल्कि दूसरे किसानों की भी है।- पिछले दिनों महाराष्ट्र के एक अनार उगानेवाले किसान बंदू मार्कड का विडियो सामने आया था, जो सही दाम न मिलने पर नाराज़ था और पटक-पटककर खुद ही फ़सल बर्बाद कर रहा था। किसान बंदू ने बताया कि जिस दिन वह अपने अनार लेकर मार्केट गए तो दाम सिर्फ़ 10 रुपये प्रति किलो थे। ऐसे में जब उसकी लागत तक नहीं निकलेगी तो और ख़र्च कर बाजार में माल बेचने क्यों जाए।
इंटेलिजेंस ने क्यों सरकार को आगाह किया?
नाशिक का लासलगाँव प्याज़ की सबसे बड़ी मंडी है। जब किसानों को उनके प्याज़ का सही दाम नहीं मिला तो किसान अपनी गाड़ियों में भर भर कर प्याज़ सड़क पर फेंकने लगे। इसे सरकार के ख़िलाफ़ राजनीतिक षड्यंत्र बताया गया। लेकिन अब इंटेलिजेंस की रिपोर्ट सरकार को बेचैन करने वाली है। रिपोर्ट कहती है कि अगर सरकार ने किसानों की नहीं सुनी तो उनकी हालत शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे सिंधिया से भी बदतर हो सकती है।
राज ठाकरे-शरद पवार कर रहे किसानों की बात
सरकार के ख़िलाफ़ किसानों की लामबंदी ज़बरदस्त है। विपक्ष भी इसको भुनाने में जुट गया है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण दो महीने से संघर्ष यात्रा पर निकले हुए हैं। उनकी इस यात्रा में सबसे ज़्यादा सुनने वाली भीड़ भी खानदेश में थी। खानदेश यानी वही इलाक़ा जहाँ सबसे ज़्यादा किसान सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं। इतना ही नहीं, अब तक मराठी अस्मिता के नाम पर राजनीति करने वाले राज ठाकरे भी लगातार नाशिक और आसपास के ज़िलों में कैम्प कर रहे हैं। इन इलाक़ों में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की सबसे अच्छी पकड़ है।
सूत्र बताते हैं कि किसानों की समस्याओं को लेकर ख़ुद शरद पवार ने राज ठाकरे से बात की है। राज ठाकरे ने महाराष्ट्र के किसानों की माँग उठाते हुए किसानों से कहा कि अगर मंत्री और बाबू उनकी बात नहीं सुनते हैं तो उन पर प्याज़ फेंक दें। राज ठाकरे ने हाल में प्याज़ उत्पादन के एक बड़े स्थल नाशिक जिले के कलवान में प्याज़ किसानों को संबोधित किया था।
किसानों की उपेक्षा का आरोप
चार साल के कार्यकाल में महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार पर किसानों ने उपेक्षा का आरोप लगाया। यही आरोप उनके नेता अनिल गोटे ने भी लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी। अंदरखाने की चर्चा है कि मुख्यमंत्री को विदर्भ की ज़्यादा चिंता है न कि बाक़ी किसानों की। इसीलिए जो भी योजना सरकार लाती है, वह पहले वहीं जाती है। खेती से लेकर मंडी तक पिछड़ी जातियों के साथ भेदभाव के आरोप भी लगते रहे हैं।