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महाराष्ट्रः क्या दलित-मुस्लिम गठजोड़ ने भाजपा और महायुति की मुश्किलें बढ़ाईं?

महाराष्ट्रः क्या दलित-मुस्लिम गठजोड़ ने भाजपा और महायुति की मुश्किलें बढ़ाईं?

महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दलितों और ओबीसी के वोट लेकर महाराष्ट्र में बाजी पलट दी थी। लेकिन 2024 के आम चुनाव में देखने को यह मिल रहा है कि दलितों और मुसलमानों ने महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के साथ जाने का फैसला कर लिया है। इसका संकेत इस बात से मिला है कि कई सीटों पर प्रकाश अंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने अपने प्रत्याशी समुदाय के दबाव पर हटा लिए। जानिए महाराष्ट्र की राजनीतिः 

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव पांचवें चरण में पहुंच गया है। शिवसेना यूबीटी, कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार के नेतृत्व वाले महाविकास अघाड़ी (एमवीए) ने भाजपा, एनसीपी अजीत पवार, शिवसेना शिंदे गुट के महायुति प्रत्याशियों के लिए तमाम सीटों पर मुश्किलें पैदा कर दी हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं। 2019 के चुनाव में भाजपा ने 42 सीटें जीती थीं। लेकिन कुछ भाजपा सांसदों के बार-बार यह बयान देने के बाद कि हम 400 सीटें इसलिए चाहते हैं ताकि संविधान बदल सकें, इसका सीधा असर महाराष्ट्र में दलित मतदाताओं पर हुआ है। उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं के साथ एक तालमेल बनाकर महाराष्ट्र में एनडीए या महायुति का संकट बढ़ा दिया है। इकोनॉमिक टाइम्स ने गुरुवार को इस संबंध में जमीनी हालात का जायजा लेते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।

कर्नाटक से भाजपा सांसद अनंत हेगड़े से विवादित बयान की शुरुआत हुई थी। उसके बाद अयोध्या से भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह, राजस्थान के नागौर से भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा समेत कई अन्य नेताओं ने इसी लाइन पर बयान दिए कि भाजपा ने 400 पार का नारा ज्यादा सीटें हासिल कर संविधान बदलने के लिए दिया है। हालांकि भाजपा की ओर से खुद पीएम मोदी लगातार सफाई दे रहे हैं कि भाजपा का ऐसा कोई इरादा नहीं है। बल्कि मोदी ने बार-बार एससी, एसटी और ओबीसी पर 'कांग्रेस के अन्याय' का आरोप लगाया है। उन्होंने ध्यान भटकाने और इस मुद्दे को ठंडा करने के लिए कांग्रेस की कथित मुस्लिम तुष्टिकरण नीति को कोसना शुरू कर दिया। भाजपा ने अनंत हेगड़े का टिकट भी काट दिया लेकिन इससे भी बात नहीं बनी और दलितों का विचार बदला।

भाजपा सांसदों और नेताओं के संविधान बदलने के बयानों को कांग्रेस ने जबरदस्त तरीके से उठाया। यह संदेश दलितों के बीच शिद्दत के साथ गया कि भाजपा बाबा साहब के लिखे संविधान को बदलकर आरक्षण खत्म कर देगी। मतदाताओं के दिमाग में अगर कोई बात एक बार बैठ गई तो फिर वो फैसला ले ही लेते हैं। मुस्लिम मतदाता पहले से ही कांग्रेस और एमवीए के अन्य प्रत्याशियों को सीट के हिसाब से समर्थन कर रहे हैं। लेकिन इस बार यह अलग बात हुई कि दोनों समुदायों ने वंचित बहुजन अघाड़ी और ओवैसी के प्रत्याशियों से सीधे चुनाव मैदान से हटने को कहा। कुछ प्रत्याशियों ने समुदाय के नेताओं की बात मानी।

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक शोलापुर में प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) ने अपना प्रत्याशी बैठा दिया। वीबीए ने राहुल गायकवाड़ को कांग्रेस की प्रणीति शिंदे और भाजपा के राम सतपुते के खिलाफ खड़ा किया था। इससे कांग्रेस की प्रणीति शिंदे को परेशानी हो सकती थी। इस सीट पर बड़ी संख्या में दलित मतदाता हैं। 2019 के चुनावों में, अंबेडकर ने वीबीए उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और उन्हें लगभग 1.7 लाख वोट मिले थे, जिससे प्रणीति के पिता सुशील कुमार शिंदे हार गए थे। क्योंकि दलित वोट सुशील शिंदे और अंबेडकर के बीच बंट गए थे। इस बार राहुल गायकवाड़ ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। उन्होंने कहा कि वो नहीं चाहते कि दलित वोट बंटे। बाद में वो कांग्रेस में चले गए।

शोलापुर में एआईएमआईएम ने भी दांव चलाने की कोशिश की। उसने एक योजना के तहत शोलापुर से रमेश कदम को प्रत्याशी घोषित कर दिया। शोलापुर के मुसलमानों को समझ में आ गया कि इससे भाजपा की मदद हो सकती है। वहां ओवैसी के पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने मांग की पार्टी अपना प्रत्याशी हटा ले। हालात को भांप कर रमेश कर्दम खुद ही बैठ गए। दरअसल, चुनाव से पहले ही दलित और मुस्लिम समुदाय के बीच यह राय बन गई थी कि वीबीए और एआईएमआईएम के प्रत्याशी एक तरह से भाजपा की 'बी' टीम हैं और मुस्लिम और दलित वोट बांटने की कोशिश है। लेकिन जब दोनों समुदायों ने संकेत दे दिया तो  AIMIM और VBA अपने-अपने समुदायों की गलतफहमी दूर करने में जुट गए हैं।

शोलापुर की तरह ही जलगांव में भी हुआ। यहां से वीबीए प्रत्याशी प्रफुल्ल लोढ़ा थे। लेकिन इलाके के दलित नेताओं ने उनसे मुलाकात की। इसके पांच दिनों के अंदर लोढ़ा चुनाव मैदान से हट गए। लोढ़ा ने भी राहुल गायकवाड़ के बयान को दोहराया और कहा कि चूंकि वो चुनाव जीत ही नहीं सकते तो समुदाय की भावना का सम्मान करते हुए चुनाव मैदान से हट गए।

ऐसा कई और जगहों पर भी हुआ है। अहमदनगर में ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने परवेज अशरफी को मैदान में उतारा। लेकिन तमाम मुस्लिम नेताओं ने परवेज को समझाया कि वो चुनाव खुद समुदाय के दम पर जीत नहीं पाएंगे लेकिन उनका वोट बंट जाएगा। इसलिए उन्हें हट जाना चाहिए। परवेज अशरफी ने खुद ही चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया। बेशक ओवैसी इस रणनीति के खिलाफ रहे होंगे, लेकिन स्थानीय मुस्लिम नेताओं का दबाव काम कर गया। इस समीकरण के बाद भाजपा के सुजय विखे पाटिल को एनसीपी (शरद पवार) के नीलेश लंके से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है

महाराष्ट्र के औरंगाबाद, मुंबई दक्षिण, मुंबई दक्षिण मध्य, परभणी, धाराशिव, रायगढ़, अकोला, भिवंडी, अमरावती, जालना, रावेर, बीड, बुलढाणा, लातूर, यवतमाल-वाशिम और शोलापुर जैसे कम से कम 14 लोकसभा क्षेत्रों में मुस्लिम वोट मुकाबले को प्रभावित करने के लिए काफी हैं। अब इनके साथ दलित वोटों को जोड़ लिया जाए तो मामला पूरी तरह से पलटता हुआ लग रहा है।

हालांकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एक तरफ तो यह स्वीकार कर रहे हैं कि कांग्रेस ने संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का प्रचार ज्यादा किया, जिसका असर है। लेकिन फडणवीस ने ईटी से यह भी कहा कि कांग्रेस और उसके सहयोगी वोट पाने के लिए 'दलितों और मुसलमानों के बीच भय' पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इसी बात की आड़ लेकर भाजपा के तमाम नेता और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने हिन्दुओं से अपना वोट मजबूत करने को कहा है। 

इकोनॉमिक टाइम्स ने एक विश्लेषक के हवाले से कहा- "भाजपा सांसद अनंत हेगड़े की टिप्पणी के बाद 48 दलित संगठन एमवीए उम्मीदवारों को समर्थन देने के लिए एकजुट हो गए हैं। हमने लातूर और नांदेड़ जैसे कई लोकसभा क्षेत्रों में देखा कि वहां दलित संगठनों ने एमवीए को वोट देने के लिए पोस्टर और पर्चे निकाले।" इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुस्लिमों के अलावा दलितों ने भी इस बार भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। महाराष्ट्र में 13 लोकसभा सीटों के लिए 20 मई को मतदान होगा।

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