महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव के लिए तीन जुलाई की तारीख़ तय की और ओपन वोटिंग सिस्टम या वॉइस वोट (ध्वनि) से बीजेपी और शिवसेना के बागी शिंदे गुट के प्रत्याशी राहुल नार्वेकर अध्यक्ष चुन लिए गए। आप यह जानकर चौंक जाएँगे कि कोश्यारी की इन्हीं दो आपत्तियों की वजह से महाराष्ट्र में क़रीब 1 साल से विधानसभा अध्यक्ष का पद खाली था।
कोश्यारी पहले न तो विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव के लिए तारीख़ तय कर रहे थे और न ही वोटिंग सिस्टम या वॉइस वोट के पक्ष में थे। इसी वजह से पूर्ववर्ती उद्धव ठाकरे सरकार और राज्यपाल कोश्यारी के बीच में तनातनी चलती रही थी। तो सवाल है कि पिछले दो-तीन दिन में ऐसा क्या हो गया कि राज्यपाल ने पहले से सीधे उलट फ़ैसला ले लिया?
राहुल नार्वेकर के विधानसभा अध्यक्ष चुने जाने से पहले तक अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी तत्कालीन डिप्टी स्पीकर यानी उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल निभा रहे थे। उनको यह ज़िम्मेदारी तब मिली थी जब फ़रवरी 2021 में नाना पटोले ने अध्यक्ष पद से इसलिए इस्तीफ़ा दे दिया था कि कांग्रेस ने उन्हें राज्य में पार्टी की कमान सौंप दी थी।
नाना पटोले के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के साथ ही इस पद को भरने की ज़रूरत थी। पिछले साल शीतकालीन सत्र में अध्यक्ष के चुनाव के लिए नियम समिति द्वारा संशोधन किए गए थे और उद्धव ठाकरे सरकार ने चुनाव की तारीख़ 28 दिसंबर तय की थी। नियमों में संशोधन चुनाव की तारीख़ और अध्यक्ष के चयन के तरीक़े से संबंधित थे।
महाराष्ट्र विधानसभा नियम 6 के अनुसार, राज्यपाल चुनाव कराने के लिए एक तारीख़ तय करेगा और सचिव हर सदस्य को इस तरह की तारीख़ की सूचना भेजेगा। ऐसी स्थिति में नियम समिति के संशोधन का मतलब था कि अध्यक्ष के चुनाव की तारीख़ राज्यपाल द्वारा घोषित करने के बजाय मुख्यमंत्री की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा अधिसूचित की जानी थी।
इसके अलावा चुनाव के लिए 'गुप्त मतदान' प्रणाली को 'ओपन' मतदान प्रणाली से बदलना था। इसका मतलब था कि विधानसभा में सदस्यों को मत पेटी में वोट डालने की ज़रूरत नहीं थी और सिर्फ़ 'हाथ उठाने या ध्वनि मत' से ही अध्यक्ष को चुना जा सकता था।
माना जा रहा था कि उद्धव ठाकरे सरकार को गुप्ट मतदान प्रणाली में सदस्यों के क्रॉस वोटिंग का डर था और इसलिए वह ध्वनि मत से चुनाव कराने की पक्षधर थी। हालाँकि, बीजेपी ने उद्धव ठाकरे सरकार पर सबसे असुरक्षित सरकार चलाने का आरोप लगाते हुए इन बदलावों का विरोध किया। यही कारण है कि जब तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार ने पिछले साल दिसंबर महीने में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने का फ़ैसला लिया तो बीजेपी ने विरोध किया।
बीजेपी दिसंबर में चुनाव के ख़िलाफ़ इसलिए भी थी क्योंकि जुलाई में हुए मानसून सत्र के दौरान पार्टी के 12 सांसदों को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया था। तब तो बीजेपी विधायक गिरीश महाजन ने भी बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख करते हुए आरोप लगाया था कि स्पीकर के चुनाव के नियमों में बदलाव 'अवैध और मनमाना' था। अदालत ने राज्य विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के लिए 'खुली मतदान पद्धति' के नए नियमों की वैधता को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद महाजन ने सर्वोच्च न्यायालय में लड़ाई लड़ी थी।
जब इन संशोधनों को लेकर मामला राज्यपाल कोश्यारी तक पहुँचा तो उन्होंने भी नियमों पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि वह जाँच करेंगे कि क्या ये संविधान के अनुसार हैं। इस तरह पिछले साल दिसंबर में चुनाव नहीं हो पाए। जब इस साल मार्च महीने में तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार ने बजट सत्र में अध्यक्ष का चुनाव कराने की अपनी योजना की घोषणा की और राज्यपाल से आगे बढ़ने की मांग की तो कोश्यारी ने यह कहते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया कि मामला विचाराधीन है। और इस तरह विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव अब तक नहीं हो पाया था।
लेकिन जब पिछली उद्धव ठाकरे सरकार संकट में आई तो स्थिति बदल गई। सरकारों के संकट में होने पर राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका सबसे बड़ी हो ही जाती है। एकनाथ शिंदे की सरकार बनने के तीन दिन के अंदर विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव की तारीख़ भी तय हो गई। ओपन वोटिंग सिस्टम यानी ध्वनि मत से चुनाव भी हो गए। पहले जैसी आपत्तियाँ नहीं उठाई गईं और इस तरह शिवसेना के बाग़ी गुट के राहुल नार्वेकर विधानसभा अध्यक्ष बन भी गए।