फडणवीस की नसीहत- संयम बरतें प्रज्ञा, वीर-ईमानदार थे करकरे

03:33 pm Apr 24, 2019 | संजय राय - सत्य हिन्दी

शहीद हेमंत करकरे पर बीजेपी और प्रज्ञा ठाकुर की स्थिति साँप-छछूंदर जैसी हो गयी है, जो न तो निगलते बन रही है और न ही उगलते। पार्टी कभी उस पर एक क़दम आगे बढ़ती है तो कभी दो क़दम पीछे हटती दिखाई देती है। एक दिन पहले अमित शाह ने कहा था कि प्रज्ञा ठाकुर की बात सही है और आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि प्रज्ञा ठाकुर को संयम बरतना चाहिए। उन्होंने कहा कि हेमंत करकरे एक ईमानदार अधिकारी थे और महाराष्ट्र पुलिस सेवा में उनका योगदान सराहनीय था। फडणवीस ने कहा कि करकरे एक बहादुर पुलिस अधिकारी थे। उन्होंने यह भी कहा कि जहाँ तक गिरफ़्तारी के दौरान प्रज्ञा ठाकुर के साथ अत्याचार की बात है तो उसे ऐसे नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि गिरफ़्तारी के दौरान यदि किसी तरह की मारपीट हुई है तो बिना किसी औपचारिक शिकायत के उस पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है। 

चूँकि प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी एक चुनावी मुद्दा बनाकर हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश में लगी हुई है, ऐसे में फडणवीस का यह बयान काफ़ी अहम है।

29 अप्रैल को चौथे चरण के मतदान में महाराष्ट्र की शेष 17 सीटों पर मतदान होने वाला है। इनमें से दस सीटें मुंबई महानगर और ठाणे ज़िले की हैं, जहाँ प्रज्ञा ठाकुर के बयान को लेकर लोगों में बीजेपी के ख़िलाफ़ हवा बन सकती है। और शायद फडणवीस ने इसी के चलते यह बयान देकर पार्टी की स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की है। लेकिन जिस तरह से बीजेपी या संघ के नेता प्रज्ञा ठाकुर के मुद्दे पर बयानबाज़ी कर रहे हैं उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या बीजेपी इस बार चुनाव प्रचार को लेकर असमंजस में है पार्टी के चुनाव अभियान को देखकर तो कुछ ऐसा ही लगता है।

2014 के चुनाव अभियान में जहाँ पार्टी सिर्फ़ एक ही नारे ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ को लेकर चल रही थी वहीं इस बार चुनाव के हर चरण के साथ उसका नारा बदल रहा है। चुनाव पूर्व के प्रचार की शुरुआत ‘मोदी है तो मुमकिन है’ के साथ शुरू हुई थी, लेकिन उसके बाद ‘मैं भी चौकीदार’, राष्ट्रवाद -बालाकोट पर हवाई हमला और अब हिन्दू आतंकवाद पर पहुँच गया।

मतदान के तीन चरण पूरे हो चुके हैं और चार चरण अभी बाक़ी हैं, लेकिन बीजेपी नेताओं के भाषणों को देखें तो यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उनमें एक दुविधा है वे राष्ट्रवाद और सेना की उपब्धियों के नाम पर वोट माँगें या हिन्दू आतंकवाद के कार्ड के प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर हिन्दू आतंकवाद की बात प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र के वर्धा में अपनी सभा में उठायी थी। तब किसी ने यह नहीं सोचा था कि इस कड़ी में प्रज्ञा ठाकुर होंगी। वर्धा में अपने भाषण में मोदी ने हिन्दू आतंकवाद शब्द गढ़ने को लेकर कांग्रेस को घेरा था, उन्होंने कहा था कि किस तरह कांग्रेस ने आतंकवाद की नयी परिभाषा गढ़कर देश में नयी बहस शुरू कर दी थी। 

जब बीजेपी या यूँ कह लें कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने प्रज्ञा ठाकुर को उतारा तो वह तुरुप का पत्ता साबित होने की बजाय एक पहेली बन गयी जो अब लगता है बीजेपी और संघ को भी समझ में नहीं आ रही।

दरअसल, जेल में अपने ऊपर हुए कथित अन्याय की कहानी सुनाकर प्रज्ञा ठाकुर हिन्दुओं में सहानुभूति की लहर पैदा करना चाहती थी लेकिन उन्हें अपनी बेगुनाही की दास्ताँ सुनाने के लिए महाराष्ट्र के तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे को कठघरे में खड़ा करना था। हेमंत करकरे चूँकि मुंबई में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे, इसलिए जैसे ही प्रज्ञा ठाकुर ने उन पर आरोप लगाया, इस तरह बवाल खड़ा हुआ कि बीजेपी को उससे अपना पल्ला झाड़ना पड़ा।

संघ के बयान से भी नहीं थमा विवाद

विचार-विमर्श के बाद संघ के एम. जी. वैद्य का बयान आया कि प्रज्ञा ठाकुर ने अपने ऊपर हुए अन्याय की आपबीती बतायी है, उसे अलग नज़र से नहीं देखें। लेकिन ऐसे बयानों का भी मामला थमा नहीं। सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया से बीजेपी में बेचैनी बढ़ी है। नरेंद्र मोदी अभी इस पर भाषण देने से थोड़ा बच रहे हैं लेकिन अमित शाह और अन्य नेता प्रज्ञा ठाकुर की अपनी सभाओं में चर्चा कर इस मुद्दे में संभावनाएँ तलाशने से नहीं चूक रहे। लेकिन देवेंद्र फडणवीस को शायद ऐसा लग रहा है कि यह मुद्दा महाराष्ट्र में पार्टी के ख़िलाफ़ जाएगा। 

मुंबई में क्या होगा असर

मुंबई और ठाणे जिले की जिन 10 सीटों पर 29 अप्रैल को चुनाव होने जा रहे हैं वे सभी सीटें साल 2014 के चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने जीती थीं। ये सब शहरी क्षेत्र की सीटें हैं और यहाँ का मतदाता भी सोशल मीडिया से बड़े पैमाने पर जुड़ा है। प्रज्ञा ठाकुर और हेमंत करकरे को लेकर जो सोशल मीडिया पर चल रहा है उससे एक बात तो स्पष्ट है कि जनता प्रज्ञा ठाकुर के बयान से नाराज़ है। यह नाराज़गी अगर मतों में परिवर्तित हो गयी तो बीजेपी को बड़ा नुक़सान हो सकता है। लिहाज़ा मुख्यमंत्री अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बयानों से हटकर प्रज्ञा ठाकुर को ही संयम बरतने की सलाह दे रहे हैं।