बंबई हाईकोर्ट ने भीम आर्मी को किसी तरह की अंतरिम राहत देने से साफ़ इनकार कर दिया है। अदालत इस मामले की सुनवाई 4 जनवरी को करेगी। इस दलित संगठन ने भीमा कोरेगाँव में कार्यक्रम करने से पुणे पुलिस के इनकार करने के ख़िलाफ़ यह याचिका रविवार को दायर की थी। इस याचिका में यह भी कहा गया था कि भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर 'रावण' और दूसरे दलित कार्यकर्ताओं को ग़ैरक़ानूनी तरीके से गिरफ़्तार करने की वजह से उन्हें 10 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया जाए। चंद्रशेखर और दूसरे लोगोें को मुंबई पुलिस ने गिरफ़्तार किया था।
आयोजकों को रविवार का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा क्योंकि पुणे पुलिस ने इसके लिए अनुमति देने से इंकार कर दिया। वहां बना स्टेज भी हटा दिया गया। पुणे पुलिस ने कहा है कि भीम आर्मी 2 जनवरी तक महाराष्ट्र में कोई भी सभा या कार्यक्रम नहीं कर सकती। इतना ही नहीं, पुलिस ने भीम आर्मी के कई कार्यकर्ताओं और नेताओं को हिरासत में भी लिया है। पुलिस ने हिरासत में लिए गए सभी लोगों से कहा है कि उन्हें से 2 जनवरी तक हर ऱोज थाने में आकर हाज़िरी लगानी होगी। पुलिस ने भीम सेना के सभी पदाधिकारियों पर 2 जनवरी तक भीमा कोरेगाँव में जाने पर पाबँदी लगा दी है।
1200 लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई
इस पूरे मामले में पुलिस ने 1200 से ज़्यादा लोगों के ख़िलाफ़ एहतियाती कार्रवाई की है। पुलिस के मुताबिक़, जिन लोगों के ख़िलाफ कार्रवाई की गई है उनमें दक्षिणपंथी हिन्दू नेता मिलिंद एकबोटे व सांस्कृतिक समूह कबीर कला मंच के सदस्य शामिल हैं।
शुक्रवार को हुई थी चंद्रशेख़र की गिरफ़्तारी
भीम आर्मी के संस्थापक और नेता चंद्रशेख़र आज़ाद उर्फ रावण को पुलिस ने शुक्रवार मुंबई के एक होटल में ही नज़रबंद रखा और शाम को गिरफ्तार कर लिया। दरअसल, चंद्रशेख़र भीम राव आंबेडकर की चैत्य भूमि में दादर जाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते थे लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही उन्हें पकड़ लिया गया था। भीमा कोरेगाँव में सभा करने के लिए पुलिस ने उन्हें इजाज़त नहीं दी थी उसके बावजूद भी वह सभा करने पर आमादा थे। जिसके चलते पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। बता दें कि चंद्रशेखर ने एक वीडियो जारी करके कहा कि वे अपने सहयोगियों से बात करना चाहते थे लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक लिया। उन्होंने सरकार से पूछा कि उन्होंने कौन सा कानून तोड़ा है जिसके लिए उन्हें गिरफ़्तार किया गया है।
पिछले साल भड़क उठी थी हिंसा
पिछले साल 31 दिसंबर 2017 को 'भीमा कोरेगाँव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान' के बैनर तले तमाम संगठनों ने एक साथ आकर भव्य रैली का आयोजन किया था। इस सभा के दौरान 'लोकतंत्र और संविधान बचाने' की बात कही गई थी। इसमें कई नामी गिरामी हस्तियाँ जैसे, प्रकाश आंबेडकर, हाईकोर्ट के पूर्व चीफ़ जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उमर ख़ालिद शामिल हुए थे। इनके भाषणों के साथ-साथ कबीर कला मंच ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी सबके सामने पेश किया था।
पिछले साल भीमा कोरेगाँव में भड़क उठी थी हिंसा (फाइल फोटो)
इसके एक दिन बाद जब भीमा कोरेगाँव में उत्सव मनाया जा रहा था, तो कोरेगाँव के आस-पास के इलाक़ों में हिंसा भड़क उठी थी। हिंसा के शुरुआती दौर में कुछ देर तक पत्थरबाज़ी हुई और बाद में कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। हिंसा में एक शख़्स की मौत हो गई थी। इस मामले में दक्षिणपंथी संस्था समस्त हिंदू अघाड़ी के नेता मिलिंग एकबोटे और शिव प्रतिष्ठान के संस्थापक संभाजी भिड़े के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ की गई। कोरेगाँव हिंसा को लेकर पुणे पुलिस अब भी जाँच कर रही है। इस मामले में दो और एफ़आईआर दर्ज़ की गई थी जिसमें से पहली एफ़आईआर में जिग्नेश मेवानी और उमर ख़ालिद पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था।
दलितों के लिए सालगिरह के मायने
भीमा कोरेगाँव पेशवाओं के नेतृत्व वाले मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए युद्ध के लिए मशहूर है। इस युद्ध में मराठा सेना को क़रारी हार का सामना करना पड़ा था। ऐसी मान्यता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी को महार रेजीमेंट के सैनिकों की बहादुरी की वजह से ही जीत मिली थी। बाद में भीमराव आंबेडकर यहां हर साल आते रहे। इसके बाद यह जगह पेशवाओं पर महारों यानी दलितों की जीत के एक स्मारक के तौर पर स्थापित हो गई। इसके बाद हर साल इस दिन उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।