फैक्ट चेक यूनिट पर मोदी सरकार को बॉम्बे हाईकोर्ट से झटका लगा है। अदालत ने शुक्रवार को आईटी नियमों में 2023 के संशोधन को रद्द कर दिया। इसका मतलब है कि केंद्र सरकार फैक्ट चेक यूनिट नहीं बना सकती है। इन संशोधित नियमों से ही केंद्र सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसके कामकाज के बारे में 'फर्जी और भ्रामक' सूचनाओं की पहचान करने और उन्हें खारिज करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट बनाने की मंजूरी मिली थी।
आईटी नियमों में संशोधन को रद्द करते हुए जस्टिस अतुल चंदुरकर ने कहा, 'मेरा मानना है कि संशोधन भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करते हैं।' इस मामले में दो अन्य जजों की पीठ ने जो फ़ैसला दिया था वह बँटा हुआ था। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2024 में न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ द्वारा बँटा हुआ फैसला सुनाए जाने के बाद एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति अतुल चंदुरकर ने कहा अब कहा है कि ये संशोधन भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन हैं। पहले जस्टिस पटेल ने नियमों को पूरी तरह से खारिज कर दिया था, जबकि जस्टिस गोखले ने नियमों की वैधता को बरकरार रखा था।
संशोधित नियमों के अनुसार एक्स, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया इंटरमीडियरी को या तो सामग्री हटानी होगी या सरकार के एफसीयू द्वारा उनके प्लेटफॉर्म पर सामग्री की पहचान करने के बाद एक डिस्क्लेमर देना होता।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ये दोनों नियम धारा 79 के विरुद्ध हैं जो मध्यस्थों को तीसरे पक्ष की सामग्री के खिलाफ कार्रवाई से बचाता है और आईटी अधिनियम 2000 की धारा 87(2)(जेड) और (जेडजी) के विरुद्ध हैं। इसके अलावा तर्क दिया गया कि वे नियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत नागरिकों को 'कानून के तहत समान सुरक्षा' और अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(जी) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करने वाले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
अपनी याचिका में कुणाल कामरा ने कहा कि वह एक राजनीतिक व्यंग्यकार हैं, जो अपनी सामग्री साझा करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर निर्भर हैं और नियमों के कारण उनकी सामग्री पर मनमाने ढंग से सेंसरशिप हो सकती है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि नियम संशोधन से सामग्रियों पर मनमाने ढंग से सेंसरशिप हो सकती है क्योंकि इन्हें रोका जा सकता है, हटाया जा सकता है, या उनके सोशल मीडिया खातों को निलंबित या निष्क्रिय किया जा सकता है।
हालाँकि, सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने दावा किया है कि यह जनहित में होगा कि सरकार के कामकाज से जुड़ी प्रामाणिक जानकारी का पता लगाया जाए और उसे सरकारी एजेंसी द्वारा फैक्ट चेक के बाद प्रसारित किया जाए ताकि बड़े पैमाने पर जनता को होने वाले संभावित नुकसान को रोका जा सके।
इस मामले में जनवरी में फ़ैसला देने वाली दो जजों की पीठ में शामिल जस्टिस पटेल ने कहा था कि आईटी नियम 2021 में 2023 के संशोधन के तहत प्रस्तावित फैक्ट चेक यूनिट ऑनलाइन और प्रिंट सामग्री के बीच अलग-अलग व्यवहार के कारण अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत मौलिक अधिकारों का सीधे उल्लंघन करते हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(1)(जी) किसी के पेशे या व्यवसाय करने की स्वतंत्रता से संबंधित है और अनुच्छेद 19 (6) प्रतिबंध की प्रकृति को बताता है जिसे लगाया जा सकता है।
दूसरी ओर, न्यायमूर्ति गोखले ने कहा था कि नियम असंवैधानिक नहीं था। उन्होंने कहा था कि याचिकाकर्ता की यह आशंका कि फ़ैक्ट चेक यूनिट एक पक्षपाती यूनिट होगी जिसमें सरकार द्वारा चुने गए लोग शामिल होंगे और उसके इशारे पर काम करेंगे, 'निराधार' है। उन्होंने साफ़ किया था कि 'स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर कोई प्रतिबंध' नहीं है और न ही संशोधन में यूज़र द्वारा सामना किए जाने वाले किसी दंडात्मक परिणाम का सुझाव दिया गया है।
विभाजित फैसले के बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने फरवरी में न्यायमूर्ति चंदुरकर को मामले की सुनवाई करने और याचिकाओं पर अंतिम राय देने के लिए 'टाई-ब्रेकर' न्यायाधीश नियुक्त किया था।