भीमा कोरेगाँव में हुए युद्ध की 204वीं वर्षगांठ पर शनिवार को वहां हजारों लोग इकट्ठे हुए। महाराष्ट्र में ओमिक्रॉन के खतरे को देखते हुए पुणे के जिला प्रशासन ने तमाम आदेश जारी किए थे और कहा था कि इस इलाके में 30 दिसंबर से 2 जनवरी की सुबह 6 बजे तक धारा 144 लागू रहेगी।
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार, राज्य के गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटिल, सामाजिक कल्याण मंत्री धनंजय मुंडे सहित कई लोग विजय स्तंभ पर पहुंचे।
हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लाखों लोग विजय स्तंभ पर इकट्ठा होते हैं। भीमा कोरेगाँव का नाम तब चर्चा में आया था जब एक जनवरी 2018 को 200वीं वर्षगांठ के मौके पर यहां हिंसा हुई थी।
पुलिस ने कहा था कि एल्गार परिषद की ओर से भड़काऊ भाषण दिए गए और इसके बाद हिंसा हुई। इस संबंध में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिडे और समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे पर आरोप लगे कि उन्होंने मराठा समाज को भड़काया, जिसकी वजह से यह हिंसा हुई।
हिंसा भड़काने के आरोप में पहले तो बड़ी संख्या में दलितों को गिरफ़्तार किया गया और बाद में सामाजिक कार्यकर्ताओं को। यह विवाद अभी भी जारी है।
भीमा कोरेगाँव में विजय स्तंभ के सामने दलित अपना सम्मान प्रकट करते हैं। माना जाता है कि दलित इसे छुआछूत के ख़िलाफ़ अपनी जीत के रूप में मनाते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यह युद्ध महारों के लिए अपनी अस्मिता की लड़ाई था।
1818 में हुए भीमा कोरेगाँव युद्ध में शामिल ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़ी टुकड़ी में ज़्यादातर महार समुदाय के लोग थे, जिन्हें अछूत माना जाता था। यह विजय स्तंभ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था।