ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के बाद ‘वेंटीलेटर’ पर आयी कमलनाथ सरकार और कितने वक़्त ‘सर्वाइव’ कर पायेगी, आज दोपहर तक साफ़ हो जाएगा। इस मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है और इस पर फ़ैसला आने की संभावना है। सिंधिया समर्थक 22 विधायकों के इस्तीफ़ों के बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में है। मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन दो बार मुख्यमंत्री कमलनाथ को विधानसभा में बहुमत साबित करने के निर्देश दे चुके हैं।
कमलनाथ सरकार ने बचने के लिए कोरोना वायरस को ढाल बना लिया है। विधानसभा का बजट सत्र 16 मार्च से शुरू हुआ है। राज्यपाल ने अपने अभिभाषण के ठीक बाद 16 मार्च को ही फ्लोर टेस्ट कराने के निर्देश कमलनाथ सरकार को दिए थे। विधानसभा स्पीकर एनपी प्रजापति ने राज्यपाल के निर्देशों को नहीं माना। उन्होंने सरकार के अनुरोध पर कोरोना महामारी के मद्देनज़र विधानसभा की कार्यवाही 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी।
स्पीकर और सरकार के रूख़ से राज्यपाल खासे नाराज़ हैं। वह पिछले चार दिनों से सरकार से खतो-खिताबत कर रहे हैं। फ्लोर टेस्ट के लिए लिखी गई पहली चिट्ठी राज्यपाल ने विधानसभा स्पीकर और विधानसभा सचिवालय को भी भेजी थी। खतों की ‘शृंखलाओं’ के बीच मुख्यमंत्री भी राज्यपाल के खतों का सिलसिलेवार ‘जवाब’ दे रहे हैं।
बीजेपी सुप्रीम कोर्ट गई है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश के संवैधानिक संकट पर सर्वोच्च न्यायालय से हस्तक्षेप और सरकार को बहुमत साबित करने का निर्देश देने के लिए याचिका लगा रखी है। शिवराज की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई हुई है। इसी बीच कांग्रेस से इस्तीफ़ा देने वाले वे 16 विधायक भी मंगलवार को ही सुप्रीम कोर्ट पहुँच गये। ये विधायक अभी बेंगलुरू में ही हैं। इन विधायकों ने अपने इस्तीफ़े मंजूर करने का आदेश और केन्द्रीय सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश देने की गुहार कोर्ट से लगाई है।
इन विधायकों ने वीडियो बयान भी जारी किए हैं। वीडियो बयानों में खुद के बंधक होने के आरोपों को विधायकों ने नकारा है। उधर कांग्रेस अपने इस आरोप पर अड़ी हुई है कि 16 विधायकों को बीजेपी ने बेंगलुरू में बंधक बनाकर रखा है।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच ‘पत्राचार’ के सिलसिले के बीच स्पीकर ने भी मंगलवार को राज्यपाल को एक खत लिख डाला है। स्पीकर ने अपने इस खत में 16 ‘गायब’ विधायकों से जुड़े ‘अहम मसले’ की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने कहा है, ‘विधायकों का संरक्षक होने के नाते लापता विधायकों को लेकर वह खासे चिंतित हैं।’
तमाम राजनीतिक दांव-पेच और क़ानूनी पहलुओं को खंगालने के क्रम के बीच मंगलवार को मध्य प्रदेश की सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुँची है।
सरकार के याचिका लगा देने के बीच प्रदेश के विधि मंत्री पीसी शर्मा ने कहा है, ‘लापता 16 विधायकों के मध्य प्रदेश वापस आने के बाद ही निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीक़े से फ्लोर टेस्ट हो सकता है।’ शर्मा ने 16 ‘लापता’ विधायकों की वापसी के बिना बहुमत के लिए सरकार द्वारा परीक्षा देना नामुमकिन होने की बात भी कही है।
इस बीच देवास ज़िले के हाटपिपल्या विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक मनोज चौधरी के परिजन भी सुप्रीम कोर्ट पहुँचे हैं। अपने विधायक भाई के पिछले सात दिनों से लापता होने का आरोप लगाते हुए उनकी वापसी कराने की गुहार उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में की है। यहाँ बता दें कि सिंधिया समर्थक चौधरी बेंगलुरू में हैं। सोमवार को वीडियो बयान जारी करते हुए चौधरी ने विधायक पद से स्वेच्छा से इस्तीफा देने और मर्जी से ही बेंगलुरू में होने की बात कही थी।
सभी 16 विधायकों ने मंगलवार को बेंगलुरू में साझा प्रेस कांफ्रेंस करते हुए एक सुर में विधायक पद से स्वेच्छा से त्यागपत्र देने की बात भी दोहराई है। सभी ने कमलनाथ सरकार को जमकर आड़े हाथों लिया है। साफ़ कह दिया है, ‘वे कांग्रेस में किसी भी सूरत में वापसी करने वाले नहीं हैं।’ मीडिया के सवालों के जवाब में बागी विधायकों ने यह भी कहा है, ‘भाजपा में जायेंगे या नहीं, इसका निर्णय इस्तीफे स्वीकार होने और मध्य प्रदेश वापसी के बाद करेंगे।’
सुप्रीम कोर्ट पर देश की नज़र
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत मध्य प्रदेश के संवैधानिक संकट और समूचे घटनाक्रम से जुड़ी कुल चार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज एक साथ सुनवाई करेगी - ऐसा माना जा रहा है। क्या फैसला वह देगी इस पर भी समूचे देश की नज़र है।
आगे क्या हो सकता है
क़ानून के जानकार संभावना जता रहे हैं कि सभी याचिकाओं के गुण-दोष और अपील-दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट निश्चित अवधि (24 से 48 घंटों) में कमलनाथ सरकार को सदन में बहुमत साबित करने का निर्देश दे सकती है। उनका यह भी मानना है कि ‘कोर्ट से यदि कमलनाथ सरकार को कुछ ‘राहत’ मिलती है तो मध्य प्रदेश के राज्यपाल ‘क़ानून का डंडा’ चलाने के लिए तैयार बैठे हुए हैं।
जानकारों का कहना है कि राज्यपाल ने अल्पमत में आ चुकी कमलनाथ सरकार को बर्खास्त करने संबंधी पुख्ता आधार तैयार कर लिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्यपाल अपना अगला क़दम बढ़ा सकते हैं। जानकारों का कहना है कि ये क़दम सरकार की बर्खास्तगी और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने जैसे भी हो सकते हैं।